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Child Labor: राजधानी लखनऊ में कोरोना काल से अब तक हुई कार्रवाईयों में बाल श्रमिकों की संख्या में दोगुना वृद्धि दर्ज की गई है। पढ़ने-लिखने की उम्र में मासूमों को मजदूरी में ढकेला जा रहा है। कोरोना काल के बाद यह समस्या एक बड़ी चुनौती बन गई है। जानकारों का कहना है कि कोरोना काल के बाद लाखों मजदूर बेरोजगार हुए, परिवार पर रोजी-रोटी का संकट खड़ा हुआ तो बच्चों को गृहस्थी की गाड़ी खींचने के लिए मजदूरी में झोंक दिया गया।
कोरोना महामारी के समय वर्ष 2020-21 में श्रम विभाग के निरीक्षणों में 42 बच्चे बाल मजदूरी से रेस्क्यू कराए गए। इसके बाद 2022-23 में होटल, ढाबों, दुकानों, कारखानों आदि से बाल श्रम में लगे 160 बच्चे मुक्त कराए गए। वहीं 2022 -23 में बाल श्रम से मुक्त कराए गए बच्चों की संख्या में दो गुने से अधिक का इजाफा हो गया। वित्तीय वर्ष 2022-23 में लखनऊ में बाल श्रम में लगे 393 बच्चों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया। वहीं चालू वित्तीय वर्ष के इधर दो माह में अभी तक 63 बाल श्रमिकों को मुक्त कराया जा चुका है।
बाल श्रमिक विद्या योजना में बजट का टोटा निराश्रित कामकाजी बच्चों (8 से 18 वर्ष तक) को बाल श्रम से मुक्त करा शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल कराते हुए उनकी आय की क्षतिपूर्ति कराए जाने के उद्देश्य से 2020 में बाल श्रमिक विद्या योजना शुरू की गई। 100 बच्चों का चयन किया गया। बच्चों का स्कूलों में दाखिला हुआ। बालकों को एक हजार, बालिकाओं को 1200 रुपए प्रति माह की आर्थिक सहायता दी जानी थी। 2022-23 में 58 बच्चों को सिर्फ 1.25 लाख मदद मिली।
नया सवेरा में 21 वार्ड बने बाल श्रम मुक्त
यूनिसेफ के सहयोग से चल रही नया सवेरा योजना में अभी तक लखनऊ के 21 वार्डो को बाल श्रम से मुक्त कराया जा चुका है। योजना के तहत इन वार्डो में बाल श्रम में लगे 1973 बच्चों को सर्वे द्वारा चिह्नित किया गया था। जिनमें से 1956 बच्चों को स्कूलों में दाखिला कराया गया है।
वर्ष निरीक्षण रेसक्यू बच्चे दर्ज मामले
2020-21 36 42 70
2021-22 124 160 98
2022-23 305 393 251
2023-24 45 63 31
बच्चों की उम्र बालक बालिका कुल
बाल श्रमिक (6 से 14वर्ष ) 1281 638 1919
स्कूल में दाखिल कराए गए 1275 628 1903
बाल श्रमिक (15 से 18 वर्ष) 29 25 54
स्कूल में दाखिल कराए गए 29 24 53