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देहरादून. उत्तराखंड में गुलदार मानव आबादी के लिए कितना बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 23 सालों में 5 सौ से अधिक लोग गुलदार के हमले में मारे गए, तो 18 सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए. हर साल करीब बीस लोगों को गुलदार अपना शिकार बना लेता है. 2015 में जब गुलदारों की गणना की गई तो इनकी संख्या 2335 काउंट की गई थी. 2021-22 में एक बार फिर भारतीय वन्य जीव संस्थान और उत्तराखंड वन विभाग ने इनकी गणना की, जिसके ताजे आंकडे शुक्रवार को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की मीटिंग में जारी किए गए.चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन समीर सिन्हा ने बताया कि गुलदार की संख्या बढ़कर अब तीन हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है. यानी कि पिछले डेढ़ दशक में उत्तराखंड में करीब आठ सौ गुलदार बढ़े हैं.
वन विभाग के प्रमुख सचिव आरके सुधांशु के अनुसार, गुलदार मानव आबादी के लिए खतरा हैं, तो वहीं बंदर और लंगूर खेती किसानी के दुश्मन बने हुए हैं. पहाड़ में पलायन का एक बड़ा कारण इन्हें माना जाता रहा है. अच्छी बात ये है कि इनकी संख्या नियंत्रित होने लगी है. बंदरों की संख्या में 26 फीसदी तो लंगूरों की संख्या में 44 फीसदी की कमी आई है.
यहां यह बता दें कि वर्ष 2015 में बंदरों की संख्या एक लाख 46 हजार थी, तो लंगूर की संख्या 54 हजार 800. 2021 में बंदरों की संख्या घटकर एक लाख 11 हजार के आसपास पहुंच गई, तो लंगूरों की संख्या भी घटकर 38 हजार हो गई. इसे उत्तराखंड में चल रहे मंकी स्टरलाइजेशन प्रोगाम का असर माना जा रहा है.
बहरहाल, गुलदारों की बढ़ती संख्या मैन एनिमल कॉन्फिलिक्ट के लिए एक बड़ी चुनौती है. स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की मीटिंग में मुख्यमंत्री ने कहा कि वन विभाग जल्द से जल्द जंगलों की धारण क्षमता तय करे. मुख्यमंत्री ने जंगली जानवरों से मृत्यु पर राहत राशि चार लाख से बढ़ाकर छह लाख करते हुए इसे शीघ्र कैबिनेट में लाने के निर्देश भी दिए.
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Tags: Uttarakhand Latest News, Uttarakhand news
FIRST PUBLISHED : August 04, 2023, 17:45 IST
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