भाजपा नेतृत्व ने छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान में भी नए व युवा चेहरों को सत्ता के केंद्र में बिठा कर तीनों राज्यों में नई पीढ़ी को कमान सौंप दी है। दो दशकों बाद तीनों राज्यों में नई राजनीतिक पीढ़ी नेतृत्व संभालने जा रही है। शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे व रमन सिंह की जगह मोहन यादव, भजनलाल शर्मा व विष्णुदेव साय सत्ता के केंद्र में होंगे। राजस्थान में पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा मुख्यमंत्री होंगे, जबकि राजघराने की दीया कुमारी व दलित वर्ग से आने वाले प्रेमचंद बैरवा उप मुख्यमंत्री होंगे। वरिष्ठ नेता वासुदेव देवनानी स्पीकर का दायित्व संभालेंगे। तीनों राज्यों की पूरी कवायद में सामाजिक समीकरणों को नया आयाम दिया गया है।
भाजपा ने इन बड़े फैसलों से तीनों राज्यों में नेतृत्व बदलाव के साथ लोकसभा की रणनीति को भी मजबूत करने की कोशिश की है। ब्राह्मण, राजपूत, आदिवासी, ओबीसी (यादव) और दलित को संदेश दिया गया है कि भाजपा सर्वस्पर्शी व सर्वसमाजी पार्टी है। अन्य समुदायों को राज्यों के मंत्रिमंडल में साधा जाएगा। नए नेतृत्वों के आने से लोकसभा चुनावों में इन राज्यों में सत्ता विरोधी माहौल भी नहीं होगा। राज्यों के क्षत्रपों की राजनीति की धार भी इससे कमजोर पड़ेगी।
संगठन से जुड़े हैं नए चेहरे
भाजपा के मजबूत गढ़ों मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में मोदी की गांरटी पर जनता ने जताया भरोसा तो भाजपा ने भी मोदी के मिशन 2024 के लिए अपनी नई रणनीति पर मुहर लगा दी। तीनों राज्यों में दो दशकों के क्षत्रपों की जगह नई पीढ़ी के नए व युवा चेहरों को सत्ता की कमान सौंप दी है। शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह के उत्तराधिकारी तय करने में सामाजिक संतुलन भी साधा गया है और संगठन की रीति-नीति का भी ध्यान रखा गया है। नए नेता संघ व विद्यार्थी परिषद की राजनीति से उभर तक सत्ता की राजनीति के शीर्ष फलक तक पहुंचे हैं।
वन प्लस टू की दोहरी रणनीति
तीनों राज्यों में भाजपा ने वन प्लस टू के फॉर्मूले यानी एक मुख्यमंत्री व दो मुख्यमंत्री बनाकर राज्यों की राजनीति को साधने की कोशिश की है। उत्तर प्रदेश में भी उसकी इसी तरह की सरकार है। इससे पार्टी एक साथ कई सामाजिक वर्गों को साधती है और उसका राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करती है। बड़े व मजबूत क्षत्रपों को हटाकर नए व युवा नेतृत्व वाली सरकारों को मजबूती देने के लिए भी वन प्लस टू का फॉर्मूला अपनाया गया है।
सामाजिक व राजनीतिक समीकरण
तीनों राज्यों में साधे गए सामाजिक व राजनीतिक समीकरणों में पार्टी ने एक आदिवासी, एक ओबीसी और एक ब्राह्मण यानी सामान्य वर्ग के नेता को मुख्यमंत्री बनाया है। देश में लगभग पांच फीसद आबादी, लेकिन प्रभावी भूमिका वाले ब्राह्मण समुदाय को एक मुख्यमंत्री व दो उप मुख्यमंत्री पद मिले हैं। तीनों राज्यों में सत्ता के शीर्ष क्रम में उसकी बड़ी हिस्सेदारी रहेगी। राजपूत समुदाय से भी तीन चेहरे, दो विधानसभा अध्यक्ष व एक उप मुख्यमंत्री बनाया गया है। ओबीसी से एक मुख्यमंत्री व एक उप मुख्यमंत्री और दलित समुदाय से दो उप मुख्यमंत्री होंगे।
राजस्थान में जयपुर का दबदबा
राजस्थान में भाजपा ने भले ही सामाजिक संतुलन साधा हो, लेकिन क्षेत्रीय असंतुलन दिखाई देता है। मुख्यमंत्री व दोनों उप मुख्यमंत्री जयपुर जिले की सीटों से ही विधायक हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भरतपुर से हैं, लेकिन पहली बार विधायक जयपुर की सांगानेर सीट से बनने के साथ ही मुख्यमंत्री भी बन गए हैं। उप मुख्यमंत्री दीया सिंह जयपुर की विद्याधर नगर व प्रेमचंद बैरवा दुदू से विधायक हैं। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी अजमेर से विधायक हैं।
संतुलन की राजनीति में वसुंधरा के जवाब में दीया
राजस्थान में तीन दशक बाद ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनने जा रहा है। इसके पहले कांग्रेस के हरिदेव जोशी मुख्यमंत्री रहे थे। राजस्थान में करीब 8 फीसदी ब्राह्मण हैं। 19 ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे गए थे, जिसमें से दस जीते हैं। नई उप मुख्यमंत्री बनने जा रही दीया सिंह जयपुर राजघराने से हैं। इसके पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे धोलपुर राजघराने से थीं। इसके अलावा, वह सिंधिया राजघराने की बेटी थीं, जो राजस्थान के रजवाड़ों की राजनीति में सबसे ज्यादा रसूखदार हैं। दीया सिंह दूसरी बार विधायक बनी हैं और एक बार सांसद रही हैं। दूसरे उप मुख्यमंत्री बनने जा रहे प्रेमचंद बैरवा दलित वर्ग से आते हैं।
महिलाओं को भी साधा
भाजपा की चुनावी सफलता में महिलाओं का बड़ा समर्थन भी है। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री न बनाने के बाद भाजपा नेतृत्व ने दीया सिंह को उप मुख्यमंत्री बना कर महिलाओं को भी संदेश दिया है कि वह उनको आगे लाने के लिए प्रतिबद्ध है। भाजपा ने इन चुनावों में महिला आरक्षण लागू करने का अपना फैसला भी जोरदार ढंग से रखा था।