कर्नाटक में भाजपा सरकार आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को मिलने वाले 10 फीसदी आरक्षण में से एक हिस्सा वोक्कालिगा और पंचमसाली लिंगायत समुदायों को देने पर विचार कर रही है। सरकार का मानना है कि सामान्य वर्ग के जिन लोगों के लिए यह 10 फीसदी आरक्षण तय किया गया है, उनकी संख्या कम है। ऐसे में इस आरक्षण में से एक हिस्सा लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय को दे दिया जाए। हालांकि इसे लेकर पार्टी खुद ही मुश्किल में फंसती दिख रही है। इसकी वजह यह है कि उसे उन सीटों पर परेशानी हो सकती है, जहां ब्राह्मण, वैश्य, जैन और मुदलियार समुदाय की अच्छी खासी आबादी है। ये सभी वर्ग कर्नाटक में जनरल कैटिगरी में आते हैं।
इन वर्गों को ओबीसी, एससी या एसटी के लिए तय आरक्षण नहीं मिलता है। ऐसे में इनके लिए ईडब्ल्यूएस आरक्षण अहम है। इसलिए यह कोटा यदि कम होता है तो इन वर्गों में सरकार को लेकर नाराजगी हो सकती है। EWS कोटे की वजह से सामान्य वर्ग के गरीब तबके को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दाखिल पाने में मदद मिली है। इसका क्रेडिट भी भाजपा की ओर से पीएम नरेंद्र मोदी को दिया जाता रहा है। लेकिन अब यदि यह आरक्षण कम होता है तो उसकी नाराजगी भी झेलनी ही होगी।
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दरअसल कर्नाटक सरकार का मत है कि 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस कोटा सामान्य वर्ग के लोगों की आबादी के मुताबिक अधिक है। ऐसे में इसका अनुपात सही करते हुए इसमें से कुछ हिस्सा वोक्कालिगा और पंचमसाली लिंगायतों को दिया जा सकता है। पर इसमें चुनावी पेच भी फंसता दिख रहा है। भाजपा कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस फैसले से उन्हें ब्राह्मण, वैश्य और जैन समुदाय के लोगों को साधना मुश्किल होगा। वे परंपरागत रूप से भाजपा को वोट देते रहे हैं। बीते शनिवार को बेंगलुरु पहुंचे अमित शाह ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि पार्टी को शहर की 20 सीटों पर जीत मिलनी चाहिए।
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बेंगलुरु शहर में कुल 28 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें से चिकपेट, मल्लेश्वरम, गांधीनगर जैसी सीटों पर ब्राह्मण, वैश्य और जैन समुदाय के लोगों की अच्छी खासी आबादी है। ऐसे में कांग्रेस इन सीटों पर अपनी जोर-आजमाइश बढ़ा सकती है। बेंगलुरु के अलावा शिमोगा, चिंतामणि, मुलाबगल, करकाला जैसी सीटों पर भी सामान्य वर्ग के मतदाताओं की अच्छी संख्या है। ऐसे में भाजपा उम्मीदवारों को पार्टी के निर्णय का बचाव करने के लिए खुद को तैयार करना होगा।