कुछ महीने पहले, भारत के दवा नियामक सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन-सीडीएससीओ ने सीएआर-टी सेल थेरेपी के व्यावसायिक उपयोग को मंजूरी दी थी. यह थेरेपी कई रोगियों के लिए जीवनरक्षक बन गई है, जिनमें दिल्ली स्थित गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट कर्नल डॉ. वीके गुप्ता भी शामिल हैं. डॉ. गुप्ता के पास भारतीय सेना में काम करने का 28 साल का अनुभव है. उन्होंने केवल 42 लाख रुपये भुगतान करके ये थेरेपी हासिल की है, जबकि विदेशों में इसी तरह की थेरेपी की कीमत 4 करोड़ रुपये से अधिक है. अमेरिका में साल 2017 में इस थैरेपी को मंजूरी दी गई थी.
ये थेरेपी NexCAR19, ImmunoACT ने विकसित की है, जो भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (IITB), IIT-B और टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल में स्थापित कंपनी है. यह बी-सेल कैंसर (प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं में बनने वाले कैंसर के प्रकार) जैसे ल्यूकेमिया और लिम्फोमा के इलाज पर केंद्रित है.
सीडीएससीओ ने पिछले साल अक्टूबर में इस थेरेपी के कॉमशियल इस्तेमाल की अनुमति दी थी. अभी ये भारत के 10 शहरों के 30 हास्पिटलों में उपलब्ध है. इसकी मदद से 15 साल से अधिक आयु के मरीज जो बी-सेल कैंसर से पीड़ित हैं, उनका उपचार किया जा सकता है.
ब्लड कैंसर का इलाज
काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर CAR-T सेल थैरेपी से ब्लड कैंसर का इलाज किया जाता है. इस थेरेपी का इस्तेमाल लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया और बी-सेल लिंफोमा जैसे गंभीर कैंसर के इलाज में किया जाएगा. एंटीजन रिसेप्टर (सीएआर)-टी सेल थेरेपी कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली एक एडवांस तकनीक है. इस तकनीक की मदद से मरीज के शरीर में मौजूद व्हाइट ब्लड सेल्स के टी सेल्स को निकाला जाता है.इसके बाद टी सेल्स और व्हाइट ब्लड सेल्स को अलग करके संशोधित करने के बाद मरीज के शरीर में डाला जाता है. ये प्रक्रिया एक ही बार की जाती है. इसके बाद शरीर में टी सेल्स कैंसर से लड़ने और उन्हें खत्म करने का काम करते हैं.
ब्लड कैंसर के मरीज की सेल से ही सीएआर टी सेल थेरेपी दी जाती है. यह थेरेपी ब्लड कैंसर के ऐसे मरीजों पर भी कारगर साबित हो रही है जिन पर सभी तरह के इलाज फेल हो गए हैं. इसलिए अब दूसरा इलाज देने की बजाय सीधे इसी थेरेपी से इलाज किया जा रहा है.
अमरीका के मुकाबले बहुत सस्ती
अपोलो समूह के सभी अस्पतालों द्वारा अभी तक 16 मरीजों को सीएआर-टी सेल थेरेपी दी गई है. 2012 में सबसे पहले अमेरिका में इस थेरेपी से एक मरीज का इलाज किया गया था, जो सफल रहा. इसके बाद 2014 में भारत में इस तकनीक को विकसित करने का काम आईआईटी मुंबई ने शुरू किया था. भारत में यह तकनीक अमरीका के खर्च के दसवें हिस्से में ही उपलब्ध है. हालांकि, आम लोगों के लिए यह महंगी है.
थेरेपी देने के बाद मरीज को एक से दो सप्ताह तक हॉस्पिटल में भर्ती रखना पड़ता है, जिससे उसकी अच्छे से देखभाल की जा सके और होने वाले साइड इफेक्ट का भी उपचार किया जा सके.
क्या है सीएआर-टी सेल थेरेपी
सीएआर-टी सेल थेरेपी को अक्सर ‘लिविंग ड्रग्स’ के रूप में जाना जाता है. इसमें एफेरेसिस नामक प्रक्रिया के माध्यम से रोगी की टी-कोशिकाओं (एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिकाएं जिनका कार्य कैंसर कोशिकाओं से लड़ना है) को निकालना शामिल है.
फिर इन टी-कोशिकाओं को एक नियंत्रित प्रयोगशाला सेटिंग के अधीन एक सुरक्षित वाहन (वायरल वेक्टर) द्वारा आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जाता है, ताकि वे अपनी सतह पर संशोधित कनेक्टर्स को अभिव्यक्त कर सकें जिन्हें काइमेरिक एंटीजन रिसेप्टर्स (सीएआर) कहा जाता है.
इन सीएआर को विशेष रूप से एक प्रोटीन को पहचानने के लिए डिज़ाइन किया जाता है, जो कुछ कैंसर कोशिकाओं पर असामान्य रूप से अभिव्यक्त होता है. फिर उन्हें वांछित खुराक तक बड़ी मात्रा में तैयार किया जाता है और सीधे रोगी को लगा दिया जाता है.
.
Tags: Cancer, Health, World Cancer Day
FIRST PUBLISHED : February 10, 2024, 02:20 IST