दुनिया में अमेरिका चिप मैन्युफैक्चिरिंग में सबसे आगे है। अमेरिका बाद साउथ कोरिया, ताइवान और चीन जैसे देशों का नंबर आता है। भारत इस लिस्ट में शामिल नहीं है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत में लोकल स्तर पर चिप बनाने के लिए कंपनियों के प्रोत्साहित किया है। ऐसे में भारत भी चिप और सेमीकंडक्टर बनाने की रेस में शामिल हो गया है। दरअसल एक्सपर्ट का मानना है कि आने वाले दिनों में तेल नहीं बल्कि चिप को लेकर अगला युद्ध है। एक्सपर्ट की यह बात सच भी दिख रही है, क्योंकि जब रूस और चीन के बीच युद्ध हुआ, तो दुनियाभर में चिप और सेमीकंडक्टर की कमी की समस्या हुई।
क्या होता है सेमीकंडक्टर?
सेमीकंडक्टर एक सिलिकॉन का छोटा सा टुकड़ा होता है। सेमीकंडक्टर का मतलब अर्धचालक होता है। यह इलेक्ट्रिसिटी की सुचालक और कुचालक होता है। यह इलेक्ट्रिसिटी के फ्लो को कंट्रोल करता है।
सेमीकंडक्टर बनाने में भारत की स्थिति
भारत फिलहाल कोई सेमीकंडक्चर चिप नहीं बनाता है। लेकिन पीएम मोदी की तरफ से सेमीकंडक्टर चिप बनाने को लेकर ईकोसिस्टम बनाने पर जोर दिया है। साथ ही बड़े पैमाने पर निवेश किया जा रहा है।
बाकी दुनिया के क्या हैं हालात
दुनिया में साल 2030 तक सेमीकंडक्टर की डिमांड दोगुनी हो सकती है। मौजूदा वक्त यह कारोबार करीब 500 अरब डॉलर का है। चिप बनाने में अमेरिका और चीन के बीच युद्ध जैसे हालात हैं। अमेरिका ने चीन में बनाने वाली चिप और अन्य इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट पर बैन लगा रहा है। वही ताइवान और साउथ कोरिया जैसे भी देशों का नाम सामने आता है।
क्यों बढ़ी चिप की डिमांड
चिप का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर मिलिट्री में होता है। मिलिट्री क्षमता जैसे मिसाइल और अन्य इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की डिमांड बढ़ गई है। हथियार ऑटोमेटिक मोड में काम कर रहे हैं। इसमें ड्रोन का भी जिक्र किया जा सकता है। यूक्रेन वॉर में ड्रोन युद्ध का काफी चर्चा हुई थी।
भारत क्यों नहीं बना पा रहा?
सेमीकंडक्चर बनाना आसान नहीं होता है। यह काफी जटिल प्रक्रिया होती है। वही दिक्कत यह है कि चिप दिन प्रतिदिन छोटी और फास्ट होती जा रही हैं। यही वजह है कि जो इस फील्ड में पहले से कंपनियां काम कर रही हैं, उनके पास ज्यादा रिसोर्स और रिचर्च वर्क मौजूद है, जिससे उन्हें हर दिन उन्नत चिप बनाने में मदद मिल रही है।