Home Life Style कब्ज न बन जाए गंभीर रोग, जानें छिपे कारण और निवारण

कब्ज न बन जाए गंभीर रोग, जानें छिपे कारण और निवारण

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कब्ज न बन जाए गंभीर रोग, जानें छिपे कारण और निवारण

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कॉन्सटिपेशन या कब्ज आम समस्या है। हमारी लाइफस्टाइल और खान-पान की वजह से अक्सर कॉन्सटिपेशन की प्रॉब्लम हो जाती है। अगर ज्यादा दिन तक यह दिक्कत रहे तो इससे कई दूसरी समस्याएं भी हो सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सप्ताह में तीन बार से कम बार स्टूल पास करने को कब्ज के रूप में परिभाषित किया है। कभी- कभार होने वाली कब्ज की समस्या होम रेमेडी और खान-पान में सुधार से दूर हो जाती है। पर कई दिन तक समस्या का बना रहना पुराना कब्ज (क्रॉनिक कॉन्स्टिपेशन) कहलाता है। ऐसा कब्ज मरीज की सेहत, मूड और जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर डालता है। स्तनपान न कराए जाने की स्थिति में छोटे बच्चों में भी कब्ज देखने को मिलती है। इसके अलावा सही समय पर बच्चों को मल त्यागने की ट्रेनिंग न देना भी छोटे बच्चों में कब्ज की समस्या कर देता है।

कब्ज के लक्षण

●पेट फूलना, पेट दर्द। भूख न लगना, पेट में गैस बनना। मल कड़ा हो जाने के कारण टॉयलेट सीट पर बैठकर बहुत जोर लगाना।

● किसी कार्य में मन न लगना। चिड़चिड़ापन रहना। तनावग्रस्त होने के अलावा अनेक लोगों में ये लक्षण भी सामने आ सकते हैं। जैसे ..

●सिर दर्द होना या सिर भारी होना।

●जीभ का सफेद या मटमैला होना,छाले पड़ना।

●थकान या कमजोरी महसूस करना।

●चक्कर आना या जी मिचलाना।

पुराने कब्ज से होने वाली दिक्कतें

●कब्ज की पुरानी समस्या(क्रॉनिक कॉन्स्टिपेशन) बवासीर, ऐनल डिसीज जैसे भगंदर व फिशर के जोखिम को बढ़ा देती है।

●लंबे समय तक कब्ज की समस्या के जारी रहने से आंतों में एक विशेष प्रकार का उभार (बल्ज) बन जाता है, जिसे मेडिकल भाषा में आउटपाउचिंग कहते हैं। ऐसे स्थिति में आंतों में संक्रमण या सिकुड़न हो सकती हैं।

●मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार कब्ज की पुरानी समस्या माइल्ड डिप्रेशन का कारण बन सकती है।

● बड़ी संख्या में लोग डॉक्टर के परामर्श के बगैर कब्ज दूर करने वाले दवाएं व लैक्सेटिव्स लेने लगते हैं। इसकी आदत पड़ जाती है और साइड इफेक्ट्स भी होते हैं।

●पुराने कब्ज की समस्या आंतों या कोलन कैंसर का कारण भी बन सकती है। ये भी पढ़ें: आयुर्वेद: बच्चों को कब्ज से छुटकारा दिलाएंगी ये चीजें, तुरंत होगा पेट साफ

करवा सकते हैं ये जांचें

●रक्त परीक्षण के जरिए थाइरॉइड की जांच।

●कैल्शियम लेवल की रक्त परीक्षण द्वारा जांच।

●कंप्लीट ब्लड काउंट(सीबीसी)।

●कब्ज की जटिल स्थितियों में कोलोनोस्कोपी की जाती है। कुछ मामलों में सीटी स्कैन।

●पेट की मांसपेशियों की कमजोरी के लिए रेक्टल मैनोमीट्री नामक जांच।

इनमें होता है अधिक जोखिम

●मधुमेहग्रस्त लोग अन्यों की तुलना में 2.2 गुना ज्यादा कब्ज का शिकार होते हैं।

● हाइपोथायरॉयडिज्म के मरीजों में दूसरे लोगों की तुलना में 2.4 गुना ज्यादा कब्ज होती है।

●चार में से एक गर्भवती महिला को कब्ज की शिकायत रहती है।

कारण

●सक्रिय जीवनशैली की कमी कम शारीरिक श्रम करना, व्यायाम न करना।

●गलत खानपान जंक फूड, प्रोसेस्ड फूड, अधिक तला-भुना व मसालेदार खाना। असमय भोजन करना। पर्याप्त पानी न पीना।

●तनाव की अधिकता तनाव की स्थिति में शरीर से निकलने वाले हार्मोन आंतों में मल की मूवमेंट पर प्रतिकूल असर डालते हैं।

●बड़ी उम्र उम्र बढ़ने के साथ खासकर आंतों का मूवमेंट कुदरती कम होने लगता है। यही कारण है कि दुनियाभर में 60 साल से अधिक उम्र वाले लगभग 70 लोग कब्ज के शिकार हैं।

●इन बीमारियों में थायरॉइड, हार्मोन्स का असंतुलन, मधुमेह, लिवर या पेट से जुड़ी समस्याएं। खून में कैल्शियम बढ़ना।

●खराब जीवनशैली, धूम्रपान व एल्कोहल का सेवन, दर्द निवारक दवाएं अधिक खाना। नींद की कमी, गर्भावस्था के दौरान व जिन महिलाओं की बच्चेदानी निकल चुकी है, उन्हें भी कब्ज की समस्या मिलती है।

बेहतर है बचाव

●जंक फूड्स से परहेज करें।

●आहार में फाइबर(मौसमी फलों, पत्तेदार सब्जियों और बीन्स) को वरीयता दें।

●नियमित व्यायाम करें।

●पानी के अलावा जूस व सूप पिएं।

●पपीता, अमरूद, संतरा और सेब जैसे पौष्टिक फल खासतौर पर खाएं।

●भूख से बहुत कम या ज्यादा न खाएं। भोजन चबाकर खाएं।

●देर रात भोजन से परहेज करें। भोजन करने के बाद तुरंत न सोएं। कुछ देर टहलें।

तनाव मुक्त जरूरी

महर्षि यूरोपियन रिसर्च यूनिवर्सिटी नीदरलैंड्स के अनुसार तनाव को हावी न होने दें, इसके प्रबंध का हुनर सीखें। तनाव पाचन तंत्र के लिए नुकसानदेह होता है और कब्ज करता है। नियमित कुछ समय ध्यान व प्राणायाम करें। खुले में टहलें।

आयुर्वेद और कब्ज

वात दोष के कारण आंतों की कार्यप्रणाली ढंग से संचालित नहीं होती, जिसके कारण मलाशय में मल कड़ा होने लगता है। जब भोजन सही तरह से पचता नहीं है तो इस स्थिति को आम कहते हैं। आम को विकार युक्त या विषाक्त पदार्थ उत्पन्न करने वाला कहा जाता है। इस स्थिति में मलाशय में मल संचित होने लगता है। विशेषज्ञ अविपत्तिकर चूर्ण, त्रिफला चूर्ण, हरीतकी खंड, अभयारिष्ट, दशमूल क्वाथ आदि के सेवन की सलाह भी देते हैं। गर्भवती महिलाएं चिकित्सक की सलाह से ही इनका उपयोग करें।

कुछ घरेलू उपचार

●हरड़ (हरीतकी) के चूर्ण या पाउडर की 3 ग्राम मात्रा में गर्म पानी में मिलाकर सेवन करें।

●विटामिन सी से भरपूर आंवले के विभिन्न रूप-अचार, चटनी व मुरब्बा आदि खाएं।

●सुबह उठते ही और रात में सोने से पहले गुनगने पानी में नीबू व शहद मिलाकर पिएं।

●एक गिलास गुनगुने दूध में आधा चम्मच घी या अरंडी का तेल डालकर पिएं। दूध में मुनक्का उबालकर लेना भी फायदेमंद।

●एक चम्मच मेथी के बीज को रात में पानी में भिगो दें और फिर सुबह खाली पेट इन्हें खाएं। ऐसा करना पाचन को सक्रिय करता है।

● बहुत से लोगों को दूध पीने से एलर्जी होती है। दूध का सेवन करना उनमें कब्ज की समस्या बढ़ा देता है। ऐसे लोगों को दूध के स्थान पर छाछ और दही लेना चाहिए।

इलाज के बारे में

●कब्ज की गंभीर और जटिल स्थिति में डॉक्टर कुछ समय के लिए दवाएं-लैक्सेटिव्स- देते हैं।

●समस्या अगर थायरॉइड के कारण है तो दवा दी जाती है।

●सकारात्मक जीवनशैलीपर जोर दिया जाता है, जिसमें अधिक फाइबर युक्त संतुलित भोजन के साथ नियमित व्यायाम व पर्याप्त नींद लेने के लिए प्रेरित किया जाता है।

● पुराने कब्ज की समस्या दूर करने व आंतों में एकत्र मल की सफाई करने में एनिमा काफी कारगर है, लेकिन एनिमा लेने से पहले चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।

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