पाकिस्तान 1980 के दशक से अपने 13वें बेलआउट पैकेज को लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ ‘कठिन बातचीत’ में फंसा हुआ है। अगर जल्द ही कोई समझौता नहीं किया गया तो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय कर्ज हासिल करना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि उसकी क्रेडिट रेटिंग खराब हो जाएगी। हाल के घटनाक्रमों की जानकारी रखने वाले विश्लेषकों ने मिडिल ईस्ट आई को बताया कि सऊदी अरब ने चालू खाता घाटे में भारी कमी के साथ सख्त मौद्रिक और राजकोषीय सुधारों को लागू करते हुए पाकिस्तान के सामने नए ब्याज वाले ऋण और निवेश की शर्तें रखी हैं। ये आईएमएफ की शर्तों के समान हैं।
पाकिस्तान के आर्मी चीफ भी ‘बेअसर’
किंग फैसल सेंटर फॉर रिसर्च एंड इस्लामिक स्टडीज के एसोसिएट फेलो उमर करीम ने कहा कि पाकिस्तानी अधिकारी सदमे की स्थिति में हैं। करीम ने MEE को बताया कि अब तक सऊदी अरब और दूसरे खाड़ी देश प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री की एक फोन कॉल पर पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आ जाते थे लेकिन इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। माना जा रहा है कि अपनी हालिया यात्रा में पाकिस्तान के आर्मी चीफ भी सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को पाकिस्तान की आर्थिक मदद के लिए राजी नहीं कर सके।
कंगाल पाकिस्तान, मुनीर की सेना मालामाल, 100 अरब डॉलर का कारोबार
सऊदी अरब ने बदली नीति
करीम का मानना है कि यह एक नई मिसाल कायम करता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख अब तक मित्र देशों के लिए ‘आश्वासन का एक स्रोत’ रहे हैं। जनवरी में दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में सऊदी अरब के वित्त मंत्री ने देश की नई आर्थिक नीति को स्पष्ट कर दिया। मोहम्मद अल-जादान ने कहा, ‘हम बिना किसी शर्त के सीधे अनुदान और जमा राशि देते थे लेकिन हम इसे बदल रहे हैं। हम अपने लोगों पर टैक्स लगा रहे हैं, हम दूसरों से भी ऐसा ही करने की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने साफ कहा, ‘हम मदद करना चाहते हैं लेकिन हम चाहते हैं कि आप भी अपनी भूमिका निभाएं।’