
[ad_1]
दुनिया अभी कोरोना से पूरी तरह से नहीं उबर पाई है. चीन सहित कई देशों में यह नए-नए रूप में तबाही मचा रहा है. इस बीच इस पर काबू पाने के लिए विकसित की गई वैक्सीनों को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. इसी में से एक है mRNA वैक्सीन. इसके बारे में वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इसको लेने वाले हर 800वें इंसान में कार्डिक अरेस्ट हो रहा है. यह दर काफी ज्यादा और खतरनाक है. यह अध्ययन अमेरिका में किया गया है और इस रिपोर्ट के बाद वैज्ञानिकों ने इस वैक्सीन पर तुरंत रोक लगाने की मांग की है. अमेरिका के जानेमाने फिजिशियन, क्लिनिकल साइंटिस्ट और अध्ययन के लीड ऑथर जोसेफ फ्राइमैन ने दुनिया की दो सबसे बड़ी कंपनियों फाइजर (Pfizer) और मडेरना (Moderna) की mRNA कोविड-19 वैक्सीन के प्रभावों का विश्लेषण किया है. इस विश्लेषण के बाद दावा किया गया है कि इन दोनों वैक्सीन में इस्तेमाल RNA (mRNA) फॉर्मूले का इंसान पर बेहद खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है.
अमेरिका के ल्यूसियाना के रहने वाले फ्राइमैन ने इस बारे में एक वीडियो शेयर किया है. उन्होंने बताया है- हमने अध्ययन में पाया कि इस वैक्सीन ने गंभीर नकारात्मक प्रभाव डाला है. यह प्रभाव 800 में से एक व्यक्ति की दर से देखा गया. अध्ययन को प्रकाशित करने के समय मैं और मेरे कोऑथर यह नहीं समझ पा रहे थे कि हमारे एक अध्ययन के आधार पर इस वैक्सीन पर रोक लगाने की मांग सही होगी या नहीं, लेकिन हमारी रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद तमाम अन्य साक्ष्य भी सामने आ चुके हैं और हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इस वैक्सीन को तुरंत बाजार से हटाया जाना चाहिए.
फ्राइमैन आगे एक अन्य बीएमजे अध्ययन और अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेटर (FDA) की रिपोर्ट का हवाला देते हैं. फ्राइमैन के अलावे इन दोनों रिपोर्ट में भी इस वैक्सीन के खतरनाक साइड इफेक्ट होने की बात कही गई है. हालांकि, रिसर्चर ने कहा कि एफडीए ने इस वैक्सीन के गंभीर परिणामों के बारे में जनता को नहीं बताया था.
फ्राइमैन और उनकी टीम ने दावा किया कि इसको लेकर उन्होंने तमाम पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स का अध्ययन किया. इसी से उन्हें शुरुआती जरूरी साक्ष्य मिले और इसी में अचानक कार्डिक अरेस्ट की बात सामने आई. उन्होंने कहा कि हालांकि अभी तक इस वैक्सीन की वजह से मौत की दर को लेकर रिपोर्ट नहीं आई है, लेकिन दुनिया में जिन देशों में भी mRNA वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है वहां जितने लोगों की मौत होनी चाहिए थी, उससे अधिक मौतें हो रही हैं. हालांकि अभी भी सीधे तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि ये मौतें कोविड वैक्सीन की वजह से ही हो रही हैं. शोधकर्ता अभी यह बताने की स्थिति में नहीं हैं कि जो ये अतिरिक्त मौतें हो रही हैं उसके पीछे कोरोना वैक्सीन है.
अब सवाल यह है कि भारत के लोग कितने सुरक्षित?
इस सवाल पर आने से पहले हमें mRNA वैक्सीन को समझना होगा. नहीं-नहीं, इससे भी पहले हमें वैक्सीन को समझना होगा. दरअसल, कोई भी वैक्सीन हमारी बॉडी को किसी भी बाहरी बैक्टीरिया या वायरस से लड़ने में सक्षम बनाती है. सभी वैक्सीन में एक सूक्ष्म मात्रा में नुकसान नहीं पहुंचाने वाले वायरस या वैक्टीरिया होते हैं. इंजेक्शन के जरिए इन सूक्ष्म वायरस या बैक्टीरिया को बॉडी में प्रवेश करवाया जाता है. फिर ये बॉडी में अपनी जगह बनाकर बाहरी वायरस या बैक्टीरिया के प्रवेश को रोकते हैं. इसके लिए कई तरह की तकनीक अपनाई जाती है. इसी में से एक तकनीक है- mRNA.दुनिया में कोरोना महामारी के विकराल रूप लेने के बीच सबसे पहले इसी mRNA तकनीक से बनी वैक्सीन का ट्रायल किया गया. अमेरिका में जिन पहली दो वैक्सीन को मंजूरी मिली वे दोनों वैक्सीन mRNA तकनीक वाली थी. दो कंपनियों फाइजर-बायोनटेक (Pfizer-BioNTech) और मडेरना (Moderna) ने ये वैक्सीन बनाई थी.
तीन तरह से बनाई जाती हैं वैक्सीन
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में तीन तरह के फॉर्मूले पर वैक्सीन बनाई जाती है. इसमें पहला है इनएक्टिवेटेड वैक्सीन या लाइव एटेनुएटेड वैक्सीन (Inactivated Vaccine or Live Attenuated Vaccine). इस फॉर्मूले से बनी वैक्सीन में एक पूरे वायरस या वैक्टीरिया का इस्तेमाल किया जाता है. दूसरा फॉर्मूला, वायरल वेक्टर वैक्सीन (Viral Vector Vaccine) है. इसमें कीड़े के एक सूक्ष्म हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है जो हमारी बॉडी के एम्यून सिस्टम को मजबूती देता है. इसी फॉर्मूले पर भारत में अधिकतर लोगों को लगाई गई वैक्सीन कोविशिल्ड (CoviShield) को विकसित किया गया है. तीसरा फॉर्मूला- जेनेटिक मैटेरियल (Genetic Material) का होता है. इस फॉर्मूले से बनी वैक्सीन हमारी बॉडी को एक खास प्रोटीन बनाने का निर्देश देती है न कि पूरा वायरस बनाने की.
क्या है mRNA?
इंडियन एक्सप्रेस ने इस बारे में एक रिपोर्ट छापी है. पुणे के रूबी हॉल क्लिनिक में इंफेक्शन वाली बीमारियों के कंसल्टेंट देवाशीष देसाई बताते हैं कि mRNA यानी मैसेंजर रिबोन्यूक्लेइक एसिड (messenger Ribonucleic Acid) लेबोरेट्री में बने जेनेटिक मॉलेक्यूल का इस्तेमाल हमारे सेल्स को S-protein या स्पाइक प्रोटीन (spike protein) बनाने की सीख देने के लिए करते हैं. यही प्रोटीन कोविड-19 वायरस के सरफेस पर पाया जाता है. जब किसी व्यक्ति को यह वैक्सीन लगाई जाती है तो उसका मस्कल सेल्स एस-प्रोटीन बनाने लगता है और ये प्रोटीन SARS-CoV-2 वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने लगते हैं.
सवाल यह है कि mRNA कोई नई तकनीक नहीं है. इसे केवल कोविड-19 के संदर्भ में नहीं देखा जा सकता. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यह तकनीक 60 के दशक से है. इस तकनीक से 1990 से वैक्सीन बन रही है. इस दिशा में काफी प्रगति भी हुई है, लेकिन एक बेहद जरूरी तथ्य यह है कि इस तकनीक के आधार पर बनी किसी भी वैक्सीन को जनवरी 2021 से पहले (कोरोना महामारी से पहले) पूरी तरह से मंजूरी नहीं दी गई थी. कोविड के कारण इस क्षेत्र में तेजी से रिसर्च हुआ और कुछ वैक्सीन को इमरजेंसी यूज की मंजूरी दी गई. इमरजेंसी यूज का मतलब होता है कि क्लिनिकल ट्रायल से इतर वैक्सीन आम लोगों को लगाई जा सकती है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Corona vaccine, Corona Vaccine Side Effects
FIRST PUBLISHED : January 13, 2023, 13:55 IST
[ad_2]
Source link