Home National Analysis : सियासी तौर पर 06 हिस्सों में बंटे कर्नाटक में इस बार कुछ कहना आसान नहीं

Analysis : सियासी तौर पर 06 हिस्सों में बंटे कर्नाटक में इस बार कुछ कहना आसान नहीं

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Analysis : सियासी तौर पर 06 हिस्सों में बंटे कर्नाटक में इस बार कुछ कहना आसान नहीं

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हाइलाइट्स

पिछले बार विधानसभा चुनावों में बीजेपी को तीन इलाकों में बड़ी जीत मिली थी, वो हैं – मुंबई कर्नाटक, तटी और केंद्रीय कर्नाटक
साउथ कर्नाटक यानि मैसूर कर्नाटक में जनता दल सेकूलर ने बाजी मारी थी, वहां बीजेपी तीसरे नंबर पर थी
बाकी तीन इलाकों यानि हैदराबाद कर्नाटक और बेंगलुरु इलाका, हालांकि इस बात सत्ता में होने का गुस्सा भी बीजेपी को झेलना होगा

कर्नाटक में अब विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बजने ही वाली है. अप्रैल के पहले में भारतीय चुनाव आयोग वहां चुनावों की घोषणा कर सकता है. 24 मई को राज्य की विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है. लिहाजा राज्य की राजनीति गर्म है. सियासी दल तैयार हैं. माहौल में सियासी जायका इस बात से जाना जा सकता है कि इन दिनों कर्नाटक के 06 अलग भौगोलिक हिस्सों में रोज कुछ ना कुछ सियासी हो रहा है.  भौगोलिक तौर पर इन्हीं 06 इलाकों के जरिए वहां की सियासी तस्वीर पढ़ी जाती रही है. ये चुनाव भी उससे कुछ अलग नहीं है. इन इलाकों का मूड पिछले चुनावों में क्या था और अब क्या है. आइए जानते हैं.

कर्नाटक के जो 06 भौगोलिक इलाके हैं, जिसके आधार पर उसे बांटा जाता है, वो इलाके तटीय कर्नाटक यानि कोएस्टल कर्नाटक, मुंबई कर्नाटक, बेंगलुरु, हैदराबाद कर्नाटक, केंद्रीय कर्नाटक और दक्षिणी कर्नाटक. इन सभी 06 इलाकों का मिजाज अलग है. इनके मुद्दे अलग हैं. जैसे मुंबई कर्नाटक का इलाका इन दिनों बेलागावी सीमा विवाद से गर्माया हुआ है.

तटीय क्षेत्र
कर्नाटक के तटीय इलाके में बीजेपी की मजबूत पकड़ रही है. हालांकि 2013 के चुनावों में कांग्रेस ने यहां बढ़िया प्रदर्शन किया था. कांग्रेस ने तब यहां कुल 21 में 13 सीटें जीती थीं और बीजेपी ने महज 05. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने साबित कर दिया कि वो यहां की बॉस है. तब बीजेपी को 18 सीटों पर जबरदस्त जीत मिली थी तो कांग्रेस को केवल 03 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि इन दिनों फिर स्थानीय मुद्दे फिर हावी हैं. चूंकि बीजेपी सत्ता में है, लिहाजा उसे यहां के लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. माना जा रहा है कि कांग्रेस को यहां पिछले चुनावों की तुलना फायदा मिलेगा ही.

पुराना मैसूर क्षेत्र
यहां तीनों दलों यानि कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस का प्रभाव बराबर – बराबर है. इस इलाके को दक्षिणी कर्नाटक इलाका भी कहा जाता है.  इसमें मैसूर क्षेत्र के साथ कुर्ग क्षेत्र आता है, जो सीमाई तौर पर केरल को छूता है.

ये कर्नाटक का बेहद खूबसूरत इलाका है. इसे कॉफी हर्टलैंड भी कहा जाता है. यहां मसालों की पैदावार खूब होती है. सियासी तौर पर ये ऊपर से जितना शांत दिखता है, अंदर से उतना ही जागरूक भी है. हालांकि यहां कर्नाटक की क्षेत्रीय अस्मिता का गर्व और फीलिंग भी ज्यादा है. ये ऐसा इलाका है, जो हमेशा से विकसित और बेहतर रहा है.

पिछली बार जब सियासी पंडित ये मान रहे थे कि यहां पर बीजेपी को फायदा मिलेगा तो हुआ उल्टा. दक्षिणी कर्नाटक में 15 जिले आते हैं और विधानसभा की 51 सीटें हैं, जिसमें वोक्कालिंग जनजाति का बाहुल्य है तो कुर्ग इलाके में कोडागु ट्राइब्स के लोग रहते हैं, हालांकि ये ट्राइब्स देश की सबसे समृद्ध और विकसित जातियों में है, ये लोग पढ़े लिखे और खासे संपन्न हैं. आमतौर पर कॉफी एस्टेट के मालिक हैं. सेना में खूब जाते हैं.

इस बार यहां पर सियासी तौर पर तीनों मुख्य पार्टियां बराबर लग रही हैं लेकिन पांच साल पहले 51 में 25 सीटों पर जेडीएस को जीत मिली थी. उसने अपनी ज्यादातर सीटें इसी इलाके से जीती थीं. कांग्रेस 16 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी तो बीजेपी को 09 सीटें मिली थीं.

सभी पार्टियां वोक्कालिंग और कोडागु जनजाति को लुभाने की कोशिश कर रही हैं. हालांकि यहां भी सत्ताधारी पार्टी होने के नाते बीजेपी के खिलाफ एंटी एंकबेंसी फैक्टर भी एक पहलू जरूर रहेगा.

बेंगुलुरु क्षेत्र
बेंगलुरु क्षेत्र में बीजेपी हमेशा से बेहतर करती रही है लेकिन पिछली बार उसे अपेक्षित परिणाम नहीं मिले थे. इस इलाके में कुछ 36 विधानसभा सीटें हैं. जिसमें वर्ष 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 16 सीटें जीती थीं. बीजेपी 11 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर थी. कर्नाटक में बीजेपी की छवि शहरी पार्टी की रही है. बेंगलुरु हमेशा उसके लिए मुफीद रहा है लेकिन पिछले बार के परिणामों ने उसे झटका दिया था. बेंगलुरु की अपनी समस्याएं हैं, जिसमें कोई सुधार हुआ नहीं है बल्कि हालात और खराब ही हुए हैं. शहर ज्यादा सघन होते जाने से समस्याग्रस्त भी हो गया है.

जिस तरह से वहां जलभराव की स्थिति बनी है और जल निकासी और शहर की प्लानिंग पर काम की अपेक्षा लोग करते रहे हैं, उसकी दरकार अब भी है. चूंकि ये कास्मोपॉलिटन सिटी भी है, जहां बड़ी संख्या पढ़े लिखे मध्य लोगों की है, जो अलग अलग राज्यों से आकर यहां बस गए हैं. लिहाजा माना जाता रहा है कि बीजेपी को उसका लाभ मिलेगा. लेकिन पिछले चुनावों के बाद बीजेपी ये दावा नहीं कर सकती. कांग्रेस का भी यहां परंपरागत वोटबैंक रहा है, अल्पसंख्यकों के कारण कांग्रेस को कम करके नहीं आंका जा सकता. बल्कि कह सकते हैं कि इस बार भी वह इस इलाके में अपनी स्थिति को मजबूत रखे तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए.

banglore बेंगलुरु शहर

मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र
ये इलाका लिंगायत समुदाय के बाहुल्य वाला इलाका है, जिसका झुकाव बीजेपी की ओर रहा है. बीजेपी की कर्नाटक राज्य इकाई के प्रमुख बीएस येदुरप्पा भी इसी समुदाय से आते हैं. ये बीजेपी का बहुत मजबूत दुर्ग है. पिछले चुनावों में इसने साबित भी किया कि ये इलाका बीजेपी की लहर से भरा है.

50 विधानसभा सीटों के इस इलाके में 30 में बीजेपी ने जीत पाई थी जबकि कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं. जेडीएस को 02 सीटें हासिल हुई थीं. कांग्रेस ने वर्ष 2013 से 2018 तक सत्ता में रहते हुए केंद्र सरकार को लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उस पर कुछ हुआ नहीं. इससे लिंगायतों में नाखुशी जरूर है लेकिन बीजेपी ने लगातार लिंगायतों को खुश करने की कोशिश की है. इन चुनावों में भी बीजेपी इस इलाके से काफी उम्मीद जरूर कर रही है लेकिन इस सीमाई इलाके के लोग इस बात से नाखुश हैं कि सत्ताधारी बोम्मई सरकार ने बेलागावी सीमा विवाद को लटकाए रखा है. उसे हल करने के लिए ठोस पहल नहीं की है.

हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र
इस इलाके में लिंगायत के साथ रेड्डी ब्रदर्स का असर है. जो पारंपरिक तौर पर बीजेपी के समर्थक हैं. जब पांच साल पहले चुनाव हुए तो यही लग रहा था कि बीजेपी को यहां कोई मुश्किल नहीं होने वाली लेकिन परिणाम चौंकाने वाले थे.

इस इलाके में 31 विधानसभा सीटें हैं. आंध्रे और तेलंगाना से छूते इस इलाके में पिछले चुनावों में कांग्रेस को 15 सीटों पर जीत मिली थी तो बीजेपी 12 पर जीती थी. 04 सीट जेडीएस के खाते में गई थी. कांग्रेस  अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे इसी इलाके से हैं. पिछड़े तबके से ताल्लुक रखते हैं. उनका इस इलाके में अपना असर भी है.  उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने का भी इलाके पर असर हुआ है. कांग्रेस ने 124 सीटों वाली अपनी जो पहली लिस्ट जारी की है, उसमें इस इलाके की ज्यादातर सीटें हैं. इसमें उन्होंने खड़गे के बेटे को भी चुनाव मैदान में उतारा है. ये इलाका इस बार भी कांग्रेस के लिए उम्मीदों भरा इलाका है.

केंद्रीय कर्नाटक
पिछले विधानसभा चुनावों में मुंबई कर्नाटक और तटीय इलाकों के बाद बीजेपी ने जहां बेहतर प्रदर्शन किया था, वो केंद्रीय कर्नाटक था. यहां 35 विधानसभा सीटें हैं, जिसमें 24 बीजेपी के पाले में थीं तो कांग्रेस को 11 सीटों पर जीत मिली थी. यहां से बीजेपी और कांग्रेस दोनों अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद लगाए हैं.  वर्ष 2013 के चुनावों में इस इलाके में बीजेपी का प्रदर्शन बहुत खराब था, तब उसे यहां दो सीटें ही मिल पाईं थीं. कहना चाहिए कि ये इलाका हर 05 साल पर अपना मूड बदलता है. सत्ताधारी पार्टी अगर उसकी अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती तो उसे तुरंत सीख भी देता है.

Tags: Karnataka, Karnataka Assembly Elections, Karnataka Politics

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