इंडस्ट्री के सूत्रों के मुताबिक हिंदूजा ग्रुप के कदम से रेजॉल्यूशन प्रोसेस में देरी होगी। एलआईसी (LIC) और ईपीएफओ (EPFO) की अगुवाई वाली कमेटी ऑफ क्रेडिटर्स ज्यादा कीमत पाने के लिए बेताब होगी ताकि उसका घाटा कम से कम हो। इस बीच टॉरेंट ग्रुप ने चेतावनी दी है कि अगर क्रेडिटर्स ने उसका ऑफर नहीं माना तो वह अदालत का रुख कर सकता है। पिछले कुछ हफ्तों में रिलायंस कैपिटल के लिए ऑफर लगभग दोगुना हो चुका है। नवंबर में पहले दौर की बिडिंग में नवंबर में पीरामल-कॉस्मी (Piramal-Cosmea) ने 5,231 करोड़ रुपये की सबसे बड़ी बोली लगाई थी। चैलेंजर्स राउंड में टॉरेंट ग्रुप की बोली सबसे बड़ी रही। हालांकि यह अब भी रिलायंस कैपिटल की लिक्विडेशन वैल्यू (13,000 करोड़ रुपये) से कम है।
एलआईसी का सबसे ज्यादा कर्ज
रिलायंस कैपिटल में करीब 20 फाइनेंशियल सर्विसेज कंपनियां हैं। इनमें सिक्योरिटीज ब्रोकिंग, इंश्योरेंस और एक एआरसी शामिल है। आरबीआई ने भारी कर्ज में डूबी रिलायंस कैपिटल के बोर्ड को 30 नवंबर 2021 को भंग कर दिया था और इसके खिलाफ इनसॉल्वेंसी प्रॉसीडिंग (insolvancy proceeding) शुरू की थी। सेंट्रल बैंक ने नागेश्वर राव को कंपनी का एडमिनिस्ट्रेटर बनाया था। राव ने बोलीकर्ताओं को पूरी कंपनी या अलग-अलग कंपनियों के लिए बोली लगाने का विकल्प दिया था। रिलायंस कैपिटल के लिए बोली लगाने के लिए 29 अगस्त तक का समय दिया गया था।
एडमिनिस्ट्रेटर ने फाइनेंशियल क्रेडिटर्स के 23,666 करोड़ रुपये के दावों को वेरिफाई किया है। एलआईसी ने 3400 करोड़ रुपये का दावा किया है। सितंबर, 2021 में रिलायंस कैपिटल ने अपने शेयरहोल्डर्स को बताया था कि कंपनी पर 40,000 करोड़ रुपये से अधिक कर्ज है। अनिल अंबानी की कई दूसरी कंपनियों पर भी भारी कर्ज है और वे इनसॉल्वेंसी प्रॉसीडिंग के दौर से गुजर रही हैं। फोर्ब्स इडिया की 2007 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अनिल अंबानी नेटवर्थ 45 बिलियन अरब डॉलर थी और उस समय वह देश के तीसरे सबसे बड़े रईस थे। लेकिन आज उनकी नेटवर्थ जीरो है।