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Ashoka Emblem imprint on Moon surface: 23 अगस्त की शाम भारत के लिए ऐतिहासिक समय लेकर आई। चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर ने सफलतापूर्वक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कर ली है। ऐसा कारनामा दुनिया का कोई और देश नहीं कर पाया है। चांद की जमीन पर स्पेस क्राफ्ट उतारकर भारत चौथा देश भी बन गया है। विक्रम लैंडर की चांद की जमीन को छूने के कुछ समय बाद ही प्रज्ञान रोवर विक्रम से बाहर आ चुका है। रोवर ने अपना काम भी शुरू कर दिया है। इसरो ने रोवर को खास इस तरह डिजाइन किया है कि वह दक्षिणी हिस्से पर ऐसी चीजें तलाशेगा जो भारत ही नहीं दुनिया के काम आएगी। रोवर का काम सिर्फ चांद पर काम करना ही नहीं है। इस बार रोवर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह जहां-जहां गुजरेगा, वहां भारतीय तिरंगे की शान अशोक चक्र के निशान भी छोड़ता जाएगा।
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भारत दुनिया का पहला देश बन चुका है, जिसने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई है। तकरीबन हफ्तेभर पहले रूस ने भी अपने लूना-25 यान को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कराने की कोशिश की थी लेकिन, कुछ तकनीकी दिक्कतों के कारण यान क्रैश हो गया था। इस घटना के साथ ही रूस का 50 सालों से किया जा रहा प्रयास असफल हो गया। लेकिन, भारतीय उम्मीदों के पंख लगाए चंद्रयान-3 ने 40 दिनों की लंबी यात्रा के बाद धरती से लगभग 4 लाख किलोमीटर का सफर तय किया और 23 अगस्त की शाम 6.04 मिनट पर सॉफ्ट लैंडिंग की।
चांद पर लैंडिंग हुई, अब आगे क्या
अब क्योंकि भारतीय यान ने चांद पर सफलतापूर्वक लैंडिंग कर ली है। विक्रम लैंडर से प्रज्ञान रोवर बाहर आ चुका है। रोवर का काम चांद की सतह पर उन चीजों को तलाशना है, जो भविष्य के लिए काफी अहम होंगी। 2008 में चंद्रयान-1 ने चांद के दक्षिणी हिस्से पर पानी का पता लगाया था। इसलिए रोवर का काम जल बर्फ को तलाशना है और यह पता लगाना है कि क्या भविष्य में मानव कॉलोनियां मुमकिन है। इसके अलावा परमाणु हथियारों में इस्तेमाल होने वाले हीलियम की भी चांद के इस हिस्से पर होने की काफी संभावना है। सोना, चांदी और कई खनीजों की मिलने की भी संभावना है।
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‘एक दिन’ का ही वक्त
विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के पास चांद पर अपना काम करने के लिए एक ही दिन का वक्त है। चौंकिए मत! वो इसलिए क्योंकि चांद पर एक दिन और रात धरती के 14 दिन और रात के बराबर होता है। चांद के जिस हिस्से पर विक्रम ने लैंडिंग की है, वो हिस्सा उबड़-खाबड़ और बड़े-बड़े गढ्ढों से भरा है। इसके अलावा इस हिस्से पर सूरज की रोशनी भी नहीं पड़ती। विक्रम और रोवर को यहां काम में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
दिक्कतों से निपटने को इसरो की तैयारी
चांद के दक्षिणी हिस्से पर बड़े-बड़े गढ्ढे और सूरज की रोशनी का अभाव है। इसलिए विक्रम और रोवर को काम करने में दिक्कत हो सकती है। इसरो की टीम इस बात को बखूबी जानती है, इसलिए रोवर पर बेहद हाई क्वालिटी वाले कैमरा लगे हैं। इसके अलावा अगर विक्रम और रोवर से इसरो का संपर्क भी टूट गया तो घबराने की बात नहीं! विक्रम और रोवर ने लैडिंग के साथ ही चंद्रयान-3 और चंद्रयान-2 के आर्बिटर से संपर्क स्थापित कर लिया है। ऐसी अवस्था में यान-2 के आर्बिटर और यान-3 से कनेक्शन जोड़कर विक्रम और रोवर की स्थिती पता लगाई जा सकती है।
काम ही नहीं भारत की पहचान भी छोड़ेगा रोवर
रोवर चांद की सतह पर सिर्फ अपने काम को अंजाम देने ही नहीं, भारत की पहचान चांद की सतह पर छोड़ने के लिए भी उतरा है। जहां-जहां रोवर गुजरेगा, वहां अशोक चक्र के निशान छोड़ता जाएगा। रोवर के टायरों को खास तौर पर डिजाइन किया गया है। जिसके एक हिस्से में अशोक चक्र और दूसरे हिस्से में इसरो का लोगो लगा है। क्योंकि चांद पर कोई हवा नहीं है तो ये निशान हमेशा के लिए चांद की सतह बने रहेंगे।