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पटना. देश में इस समय ‘सोनम बेवफा हो गई’ काफी ट्रेंड कर रहा है. इंदौर निवासी राजा रघुवंशी की हत्या के मामले में पत्नी सोनम रघुवंशी गिरफ्तार हुई हैं. बीते 14 दिनों से सोनम रघुवंशी गायब थीं. लेकिन सोमवार सुबह सोनम की गिरफ्तारी ने इस केस से पर्दा उठा दिया है. अब सोशल मीडिया पर ‘सोनम बेवफा’ काफी ट्रेंड करने लगा है. क्योंकि बिहार विधानसभा का चुनाव भी इसी साल नवंबर महीने में होने वाला है. ऐसे में सोशल मीडिया पर एनडीए और महागठबंधन को लेकर भी लोग सवाल पूछ रहे हैं कि क्या बिहार की राजनीति में कौन होगा सोनम की तरह बेवफा? बिहार की राजनीति में गठबंधनों का इतिहास, विश्वासघात, अवसरवाद और बदलते समीकरणों से भरा रहा है. राजा रघुवंशी हत्याकांड और उनकी पत्नी सोनम रघुवंशी की साजिश को बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव 2025 के संदर्भ में लोग जोड़कर देख रहे हैं. ऐसे में नजर डालते हैं कि क्या कोई पार्टी या नेता बिहार चुनाव से पहले ‘सोनम की तरह बेवफा’ साबित हो सकता है?
चिराग पासवान: लोजपा (रामविलास) के सुप्रीमो और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान अपने बयानों से पिछले कुछ दिनों से चर्चा में हैं. चिराग पासवान ने हाल ही में आरा रैली में दावा किया कि उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, जो एनडीए के लिए एक बड़ा संकेत है. यह बयान गठबंधन में असंतोष और उनकी महत्वाकांक्षा को दर्शाता है. अगर सीट बंटवारे में उनकी पार्टी को कम सीटें मिलीं तो चिराग ‘सोनम की तरह’ गठबंधन को धोखा दे सकते हैं और तीसरे मोर्चे या विपक्षी गठबंधन जैसे जन सुराज पार्टी के साथ बातचीत शुरू कर सकते हैं.
उपेंद्र कुशवाहा (राष्ट्रीय लोक मोर्चा): कुशवाहा ने भी मुजफ्फरपुर रैली में साफ किया कि अगर उनकी सीटें कम की गईं तो वे चुप नहीं बैठेंगे. उनका यह रुख एनडीए के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. कुशवाहा का इतिहास रहा है कि वे गठबंधन बदलते रहे हैं. 2014 में एनडीए, फिर महागठबंधन और अब फिर एनडीए में हैं. ऐसे में अगर उनकी मांगें पूरी नहीं हुईं तो वे महागठबंधन की ओर रुख कर सकते हैं.
जीतन राम मांझी (HAM): मांझी का इतिहास भी गठबंधन बदलने का रहा है. 2014 में जेडीयू छोड़कर महागठबंधन में गए, फिर 2019 में एनडीए में लौट आए. अगर हम को कम सीटें मिलीं तो मांझी भी गठबंधन के प्रति ‘बेवफाई’ दिखा सकते हैं.
मुकेश सहनी (VIP): मुकेश सहनी की पार्टी VIP ने 2020 में एनडीए के साथ गठबंधन किया था, लेकिन बाद में महागठबंधन में शामिल हो गए. उनकी निषाद समुदाय पर मजबूत पकड़ है, लेकिन अगर सीट बंटवारे में उनकी पार्टी को कम सीटें मिलीं तो वे फिर से एनडीए की ओर जा सकते हैं. सहनी का अवसरवादी रुख उन्हें ‘सोनम’ की तरह बेवफा बना सकता है.
कांग्रेस: कांग्रेस बिहार में कमजोर स्थिति में है, लेकिन राहुल गांधी की सक्रियता से पार्टी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश में है. अगर आरजेडी कांग्रेस को कम सीटें देती है तो कांग्रेस गठबंधन से अलग होकर तीसरे मोर्चे की ओर जा सकती है या कुछ सीटों पर अकेले लड़ सकती है.
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