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पटना. मुजफ्फरपुर में एक नाबालिग दलित लड़की के साथ हुई बर्बरता ने बिहार की कानून-व्यवस्था और सरकार की संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. बिहार पुलिस ने आरोपियों को पकड़ने के लिए 15 दिनों का समय मांगा है. जबकि, राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने बिहार सरकार और पुलिस की उदासीनता पर कड़ी फटकार लगाई है. इस मामले में पीड़ित परिवार की नाराजगी और राज्य की कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं. विपक्षी पार्टियां कांग्रेस, आरजेडी और जन सुराज पार्टी ने इस मुद्दे को लेकर राज्य में बवाल काट रखा है. अब तो एनडीए नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने भी नीतीश सराकर को इस बाबत खत लिख दिया है.
बिहार विधानसभा चुनाव पर प्रभाव
हालांकि, विपक्ष ने सरकार की इस कार्रवाई को देर से उठाया गया कदम बताते हुए आलोचना की. कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) जैसे विपक्षी दलों ने इसे सरकार की लापरवाही और संवेदनहीनता का प्रतीक बताया. तेजस्वी यादव ने स्वास्थ्य विभाग और पुलिस की निष्क्रियता पर सवाल उठाए, जबकि कांग्रेस ने स्वास्थ्य मंत्री के इस्तीफे की मांग की. यइस घटना ने नीतीश सरकार की कानून-व्यवस्था और स्वास्थ्य व्यवस्था की कमियों को उजागर किया है, जिसे विपक्ष ने एक प्रमुख मुद्दा बना लिया है.
क्या यह मुद्दा बिहार चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं?
महिला और दलित मतदाता: यह घटना, विशेष रूप से दलित नाबालिग लड़की से जुड़ी होने के कारण, दलित और महिला मतदाताओं के बीच सरकार के खिलाफ नाराजगी को बढ़ा सकती है. विपक्ष इसे “संस्थागत हत्या” और “सिस्टम की संवेदनहीनता” के रूप में प्रचारित कर रहा है, जो इन समुदायों के बीच सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है.
सरकार की रक्षात्मक स्थिति
नीतीश सरकार इस मामले में बैकफुट पर दिख रही है. विपक्ष के दबाव में कार्रवाई करने और जांच कमेटी गठित करने से यह संदेश जा सकता है कि सरकार तभी सक्रिय होती है जब दबाव बढ़ता है. यह धारणा मतदाताओं के बीच सरकार की विश्वसनीयता को कमजोर कर सकती है.
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