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बिलावल की ‘खतरनाक’ चाल
अभी यह तय नहीं है कि बिलावल अपने भारतीय समकक्ष के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे या नहीं लेकिन दौरा तो हाई प्रोफाइल है। बिलावल यह बात काफी बेहतरी से जानते हैं कि जो चाल वह पाकिस्तान या अंतरराष्ट्रीय मंच से नहीं जीत सकते हैं, भारत जाकर उसमें सफल हो सकते हैं। वह खुद इस बात को स्वीकार कर चुके हैं पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंच से कश्मीर का मसला मजबूती से उठाने में नाकामयाब रहा है। ऐसे में भारत आने का फैसला उनका मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है। पाकिस्तानी विशेषज्ञों की मानें तो बिलावल यह जानते हैं कि एससीओ सम्मेलन में जाकर वह भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव को दुनिया की नजरों में ला सकते हैं। भारत ना 22 साल पहले ऐसा चाहता था और न ही अब उसकी ऐसी कोई ख्वाहिश है।
क्या किया था मुशर्रफ ने
साल 2001 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ भारत आए थे। मुशर्रफ ने जिस समय भारत का दौरा किया था, दोनों देश कारगिल की घटना से गुजर चुके थे। भारत पाकिस्तान के बीच उस समय भी तनाव चरम पर था। 36 घंटे के इस सम्मेलन में दोनों ही पक्ष किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे थे। उस समय इस सम्मेलन को कवर करने वाले पत्रकारों का कहना था कि मुशर्रफ का दौरा बिल्कुल उस डे-लाइट क्रिकेट मैच की तरह था जिसमें फ्लडलाइट्स बेकार हो चुकी थीं। सम्मेलन भले ही असफल साबित हुआ लेकिन मुशर्रफ को मीडिया अटेंशन हासिल करने में सफलता मिली। भारत सरकार की तरफ से किसी तरह की कोई भी जानकारी मीडिया को नहीं मिल रही थी। मगर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति के साथ आई उनकी मीडिया टीम पूरी मुस्तैद थी।
मुशर्रफ का प्रपोगेंडा हुआ हिट
नाश्ते की टेबल पर मुशर्रफ ने भारत के टॉप जर्नलिस्ट्स को भारत-पाकिस्तान के रिश्तों पर 50 मिनट तक बातचीत की। जहां तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई और उनकी टीम भारतीय मीडिया से बात नहीं कर रही थी तो वहीं मुशर्रफ कभी ताज महल पर मीडिया के सामने होते तो कभी होटल में उनसे बात करते। मुशर्रफ के साथ जो मीडिया टीम आई थीप उसमें मिलिट्री के अलावा राजनयिक स्तर के अधिकारी भी शामिल थे। ये अधिकारी भारतीय जर्नलिस्ट्स को कोई न कोई जानकारी देते रहते थे।
ऐसा नहीं था कि भारतीय अधिकारी इतने सक्षम नहीं थे कि वो जर्नलिस्ट्स से बात नहीं करते। बल्कि वो जानते थे कि तीन दिनों तक चले सम्मेलन में कोई नतीजा ही नहीं निकला है। मुशर्रफ जिस इरादे और प्रपोगेंडे से भारत आए थे, उसमें वह पूरी तरह से सफल हो गए थे। उनकी टीम भारतीय जर्नलिस्ट्स को वह सबकुछ बता रही थी जो दरअसल झूठ था।
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