Monday, December 16, 2024
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Budget 2023-24: चीन और पाकिस्तान से कैसे होगा मुकाबला… सैलरी पर खर्च हो जाता है डिफेंस बजट का 83% हिस्सा


नई दिल्ली: सेना (Army) लंबे समय से डिफेंस बजट (Defence Budget) में बढ़ोतरी की मांग कर रही है। इसकी वजह यह है कि भारत को पूर्वी और पश्चिमी सीमा पर लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। चीन के साथ लंबे समय से सीमा पर तनातनी चल रही है। सेना को दो मोर्चों पर एक साल निपटने के लिए अपनी तैयारी करनी पड़ रही है। लेकिन उसमें बजट की कमी लगातार आड़े आ रही है। दूसरी ओर पाकिस्तान और चीन लगातार अपने डिफेंस बजट में इजाफा कर रहे हैं। पिछले साल के आम बजट में डिफेंस के लिए 5.2 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। इसमें से सबसे ज्यादा 1.9 लाख करोड़ रुपये आर्मी के लिए आवंटित किए गए थे। लेकिन इसका 83 फीसदी हिस्सा सैलरी और रोजाना के खर्चों में चला जाता है। केवल 17 फीसदी हिस्सा ही सेना के आधुनिकीकरण के लिए बच जाता है।

इतना ही नहीं कुल डिफेंस बजट में से 1.2 लाख करोड़ रुपये 33 लाख से अधिक पूर्व सैनिकों और डिफेंस सिविलियन के पेंशन में चला गया। इससे सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण के लिए पर्याप्त रकम नहीं बचती है। सेना के पास मॉडर्न इंफेंट्री वेपन्स, हेलीकॉप्टर्स, ड्रोन, हॉवित्जर्स, रात में लड़ने में सक्षम क्षमताओं, एंटी टैंक गाइडेड मिसाइलों और साजो-सामान की भारी कमी है। साथ ही लेफ्टिनेंट कर्नल और उससे नीचे के फाइटिंग रैंक के अधिकारियों की भी कमी है। दरअसल, सैलरी और पेंशन पर खर्च बढ़ने के कारण सेना को अपने आधुनिकीकरण के लिए बहुत कम बच पाता है जिससे अत्याधुनिक तकनीकों को शामिल किया जा सके।

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सैलरी और पेंशन पर भारी-भरकम खर्च
आर्मी में इस समय करीब 12 लाख अधिकारी और जवान हैं। इनमें अधिकारियों की संख्या करीब 43,000 है। सेना को छह ऑपरेशनल और एक ट्रेनिंग कमान में बांटा गया है। छह कमान में 14 कोर, 50 डिवीजन और 240 से अधिक ब्रिगेड हैं। संख्या बल के आधार पर तीनों सेनाओं में थल सेना सबसे बड़ी है लिहाजा पेंशन और वेतन के मद में इसका खर्च भी सबसे अधिक है। भारत अपने डिफेंस बजट का एक बड़ा हिस्सा सैनिकों के वेतन और पेंशन पर खर्च करता है। अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों में सेना का पेंशन पर खर्च इससे कहीं कम है। सरकार का लक्ष्य है कि इस मद में खर्च को कम करने सेना के आधुनिकीकरण को बढ़ावा दिया जाए।

अग्निपथ योजना का मकसद वेतन और पेंशन के मद में खर्च की जा रही भारी-भरकम राशि को भी कम करना है। वित्त वर्ष 2013-14 में देश की जीडीपी का आकार 112 लाख करोड़ रुपये था जो 2022-23 में 237 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया। इस दौरान सैनिकों के वेतन पर किया जाने वाला खर्च स्थिर रहा लेकिन एक जुलाई, 2014 को वन रैंक वन पेंशन लागू करने के बाद भी पेंशन खर्च बढ़ता रहा। साल 2013-14 में सैनिकों के वेतन और पेंशन पर खर्च की डिफेंस बजट में हिस्सेदारी 42.2 फीसदी थी जो 2021-22 में 48.4 फीसदी पहुंच गई।

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चीन और पाकिस्तान का डिफेंस बजट
चीन अपने रक्षा बजट का केवल 30.8 फीसदी ही वेतन और पेंशन पर खर्च करता है। इस मामले में इटली 65.7 प्रतिशत के साथ पहले नंबर पर है। पाकिस्तान के मामले में 37 फीसदी है जबकि अमेरिका अपने डिफेंस बजट का 38.6 फीसदी हिस्सा सैनिकों की सैलरी और पूर्व सैनिकों की पेंशन पर खर्च करता है। जीडीपी के अनुपात में सैन्य खर्च की बात करें तो अमेरिका इस मामले में पहले नंबर पर है। साल 2021 में उसने अपनी जीडीपी का 3.5 फीसदी हिस्सा डिफेंस पर खर्च किया। चीन में मामले में यह 1.7 फीसदी और पाकिस्तान के मामले में 3.8 फीसदी है। भारत ने 2021 में अपनी जीडीपी का 2.7 फीसदी हिस्सा डिफेंस पर खर्च किया। इस मामले में रूस पहले नंबर पर रहा। उसने अपनी जीडीपी का 4.1 फीसदी हिस्सा डिफेंस पर खर्च किया। चीन का रक्षा बजट 2022 में 261 अरब डॉलर का था।



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