Wednesday, April 23, 2025
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China In Myanmar: आखिर म्‍यांमार में शांति दूत बनकर क्‍या साबित करना चाहता है चीन, क्‍या है ड्रैगन का असली मकसद?


बीजिंग: चीन ने पिछले साल दिसंबर में म्यांमार में एक नए विशेष दूत की नियुक्ति की थी। इसके बाद 74 सालों में पहली बार संयुक्त राष्‍ट्र (यूएन) में म्‍यांमार पर पहला प्रस्ताव और साथ ही अमेरिकी कांग्रेस में बर्मा एक्‍ट को पास किया गया। विशेषज्ञों की मानें तो यह सिर्फ एक राजनीतिक संयोग नहीं था। अमेरिकी कांग्रेस में पास बर्मा एक्‍ट (EAO) समेत म्यांमार में विरोधी जुंटा बलों के लिए धनराशि और टेक्‍निकल सपोर्ट की मंजूरी देता है। अमेरिका ने म्यांमार के अंदर और बाहर विपक्षी ताकतों का समर्थन जारी रखने का वादा किया है। साफ है कि जहां अमेरिका लोकतांत्रिक शक्तियों के साथ वार्ता को आगे बढ़ा रहा है तो चीन जुंटा और विरोधियों के बीच पुल का काम कर रहा है। उसका मकसद अमेरिकी प्रभाव को कमजोर करना है।

जुंटा प्रमुख से मिले चीनी विशेष दूत

चीन के नए विशेष दूत डेंग जिजुन ने दिसंबर 2022 के आखिरी हफ्ते में चीन के युन्‍नान में म्यांमार के सात जातीय सशस्त्र संगठनों (ईएओ) से मुलाकात की थी। फिर वह नैप्‍यीदॉ गए और जुंटा प्रमुख मिन आंग हलिंग से मिले। एक महीने से भी कम समय में, उन्होंने काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA), यूनाइटेड वा स्टेट आर्मी (UWSA) और नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस आर्मी (NDAA) सहित शक्तिशाली EAO के हेडक्‍वार्टर का दौरा किया। उनका दौरा पिछले सभी दौरों से अलग था। खास बात है कि चीनी दूत के साथ मांडले स्थित चीनी काउंसल भी था। काउंसल ने ईएओ के साथ हुई बातचीत में हिस्‍सा नहीं लिया। मगर डेंग ने उन्‍हें अपने साथ लाने की वजह भी स्‍पष्‍ट कर दी।
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चीन की तरफ से बड़ा इशारा
डेंग ने काचिन राज्य में KIA हेडक्‍वार्ट्स के अलावा लाइजा में विस्थापन शिविरों का दौरा किया। उनके दौरे के बाद एक रिपोर्ट आई जिसके मुताबिक चीन ईएओ के साथ-साथ विस्थापित नागरिकों के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा में सहायता प्रदान करेगा। यह ऐलान सीमा पर चीन और ईएओ के बीच संबंधों के एक नए स्तर का संकेत देने वाला था। डेंग ने पूर्व विशेष दूत सन गुओक्सियांग के सुर में सुर मिलाते हुए ईएओ से शांति वार्ता में शामिल होने और युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर करने का अनुरोध किया। जहां जब सन ने कहा कि वह चीन नीति के अनुसार काम कर रहे हैं तो डेंग ने इस बात को जोर देकर कहा कि उन्‍होंने म्‍यांमार जुंटा के प्रमुख मिन आंग हलिंग के अनुरोध पर यह रिक्‍वेस्‍ट की है।
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अमेरिका को लेकर अलर्ट चीन
चीन संभावित अमेरिकी प्रभावों के लेकर पूरी तरह से सतर्क है। साथ ही वह जासूसों प्रयासों को लेकर भी हाई अलर्ट पर है। साफ है कि इस समय मदद के साथ ही साथ और ज्‍यादा सावधानी बरतेगा। वह अब ज्यादा सावधान रहेगा क्‍योंकि ताइवान के साथ तनाव बढ़ रहा है। यही वजह है कि चीन ने सीमा पर ईएओ के साथ संबंधों को मजबूत करने और उन्हें गैर-सैन्य सहायता प्रदान करने का कदम उठाया है। म्यांमार के लोग इस बात मे दिलचस्‍पी रखते हैं कि क्या चीन, म्यांमार के सैन्य शासन के साथ लड़ाई रोकने के लिए ईएओ पर दबाव डालेगा क्योंकि उनमें से कुछ मध्य म्यांमार से विरोधी बलों के साथ लड़ रहे हैं।

भारत से भी घबराया चीन
चीनी विशेष दूत, चीनी राजदूत और म्यांमार के काउंसल की गतिविधियों के बाद कुछ चीनी इनवेस्‍टमेंट प्रोजेक्‍ट्स में फिर से जान आ गई है। इनमें से पहली है लेतपाडुंग कॉपर माइनिंग प्रोजेक्‍ट परियोजना। फरवरी महीने के अंत में जुंटा के सैनिकों ने तांबे की खदान के पास लगभग आठ गांवों में गोलाबारी की और छापेमारी की। खदान की सड़क पर जुंटा के सैनिकों को तैनात किए जाने के तुरंत बाद, 150 से 250 लोग माना जाता है कि वानबाओ कंपनी के चीनी कर्मचारी मोनिवा से पांच वाहनों में तांबे की खदान में पहुंचे। अमेरिका और पश्चिम के अलावा, चीन भारत सरकार के कदमों पर भी विचार कर सकता है, जो म्यांमार में पैर जमाने के लिए शासन का अंधाधुंध समर्थन कर रही है।



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