नई दिल्लीः अफगानिस्तान के कार्यवाहक निर्वासित राष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने भारत को पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार के संबंध को लेकर बड़ी सलाह दी है. उन्होंने कहा कि भारत को इन दो देशों के बीच के संबंध को कम नहीं आंकना चाहिए. अमरुल्ला सालेह ने यह बात एक अज्ञात स्थान से न्यूज18 के स्पेशल इंटरव्यू में कही. बता दें कि लगभग दो वर्षों में दुनिया भर के किसी भी मीडिया प्रकाशन को सालेह का यह पहला इंटरव्यू है.
ISI और तालिबान के बीच संबंध को कम नहीं आंक सकते
उन्होंने कहा, “आप 2021 के बाद पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) और तालिबान के बीच संबंध को कम नहीं आंक सकते. कुछ भारतीय विश्लेषक पाकिस्तान की मदरसा प्रणाली और अफगान तालिबान के बीच संबंध को कम आंकते हैं. अगर पाकिस्तान तालिबान शासन को समर्थन देना बंद कर दे, तो वह ढह जाएगा. कुछ लोग मुल्ला याकूब जैसे तालिबान नेताओं से प्रभावित हैं, लेकिन जब आप पर एक और आतंकवादी हमला होगा तो यह सब बदल जाएगा.’
तालिबान के खिलाफ लड़ रहे हैं अमरुल्ला सालेह
बता दें कि लगभग दो दशकों के युद्ध के बाद, जैसे ही संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके नाटो सहयोगी अफगानिस्तान से हटे, 15 अगस्त, 2021 को पुनर्जीवित इस्लामी समूह, तालिबान ने कब्जा कर लिया. इस दौरान देश छोड़कर राष्ट्रपति अशरफ गनी भाग गए और सालेह ने खुद को देश का कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर दिया. सालेह तालिबान के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं.
पाक-तालिबान संबंध गहरे हैं
सालेह ने इस धारणा को खारिज कर दिया कि गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के पास तालिबान को शामिल करने के लिए संसाधनों की कमी है. उन्होंने कहा, “यही कारण है कि तालिबान दूसरे देशों तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है. यह मुखौटा उतरने से पहले की बात है. पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के लगभग 300 अधिकारी अफगानिस्तान में मान्यता प्राप्त हैं और इससे दोगुनी संख्या में डॉक्टर, एनजीओ और व्यवसायियों की आड़ में देश में काम कर रहे हैं. यह कोई छिपा हुआ कार्यक्रम नहीं है. आईएसआई अधिकारी और इंजीनियर सीधे तौर पर इंटरसेप्शन ऑपरेशन में शामिल होते हैं. पाकिस्तान एसएसजी अधिकारी तालिबान की स्ट्राइक यूनिटों को प्रशिक्षण दे रहे हैं. तालिबान के रणनीतिक संचार में पाकिस्तानी आका हैं.”
पाक मस्जिदों में तालिबान के सहयोग से टीटीपी के खिलाफ पढ़े गए फतवे
पाकिस्तान पर तालिबान के फतवे पर टिप्पणी करते हुए सालेह ने आरोप लगाया कि वास्तव में यह पाकिस्तान के सहयोग से जारी किया गया था. उन्होंने कहा, “फतवे के वास्तुकार मुफ़्ती रऊफ़ थे. वह 30 साल तक पाकिस्तान में रहे. वह पाकिस्तानी राजनेता फजल-उर-रहमान के करीबी सहयोगी थे और वर्तमान में तालिबान के सुप्रीम कोर्ट के फतवा विभाग के प्रमुख हैं. रहमान के कॉल और एक आईएसआई अधिकारी के दौरे के बाद रऊफ ने 51-सूत्रीय फतवा तैयार किया.”
पाकिस्तान के आदेश पर तालिबान ने टीटीपी के खिलाफ जारी किया फतवा
उन्होंने कहा, “जब पाकिस्तानियों ने तालिबान से टीटीपी के खिलाफ फतवा जारी करने के लिए कहा, तो तालिबान नेतृत्व के भीतर इस पर कोई चर्चा नहीं हुई. यह इतनी तेजी से किया गया मानो पाकिस्तान ने अपने ही किसी मुल्क से ऐसा करने को कहा हो. हर दूसरी बात के लिए वे बहस में पड़ जाते हैं और फिर कोई फैसला लेकर आते हैं और लोगों को ऐसा करने का कारण बताते हैं, लेकिन पाकिस्तान की सुरक्षा के मामले में वे बहुत तेज थे.’
तालिबान के फतवे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं लोग
उन्होंने बताया कि दो-तीन दिन में ऐसा किया गया और पाकिस्तान की हर मस्जिद में फतवा पढ़ा गया. फतवे में कहा गया है कि हमें पाकिस्तान को अस्थिर नहीं करना चाहिए, पाकिस्तान में अस्थिरता हराम है क्योंकि यह एक इस्लामिक देश है और इसकी सेना इस्लामिक है और हम दोस्त हैं. वह 51 सूत्री फतवा है. जो पंडित कहते हैं कि पाकिस्तान की नीति विफल हो गई है और तालिबान पूरी तरह से ‘जीएचक्यू के लड़के’ नहीं हैं, वे इस फतवे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं.
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Tags: Afghanistan, Taliban
FIRST PUBLISHED : October 12, 2023, 11:25 IST