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त्रिपुरा विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर आए एग्जिट पोल से तृणमूल कांग्रेस चीफ ममता बनर्जी को बड़ा झटका लगता दिख रहा है। इंडिया टुडे-माय एक्सिस ने भाजपा को 45 प्रतिशत वोट के साथ 60 सदस्यीय त्रिुपरा विधानसभा में 36-45 सीट मिलने का संकेत दिया है। इसने वाम दल-कांग्रेस गठजोड़ को 32 प्रतिशत वोट के साथ महज 6-11 सीट मिलने का अनुमान लगाया है। राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) को 2018 के विधानसभा चुनाव में शिकस्त देकर भाजपा सत्ता में आई थी। पूर्व राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले प्रद्योत किशोर माणिक्य देववर्मा के नेतृत्व वाले दल टिपरा मोथा को 20 प्रतिशत वोट के साथ 9-16 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है।
त्रिपुरा में टीएमसी ने 28 सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया था। एक्जिट पोल के अनुसार, यह पार्टी एक भी सीट जीतती नहीं दिख रही है। इस तरह साफ है कि त्रिपुरा में टीएमसी के प्रभाव को बढ़ाने की ममता की योजना इस बार भी काम नहीं कर सकी। मालूम हो कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल ने 2011 में 35 साल के कम्युनिस्ट शासन को उखाड़ फेंका था। इसके बाद उन्होंने त्रिपुरा में भी कुछ ऐसा ही करने का अभियान शुरू किया। हालांकि, इस बार के चुनाव में तो TMC का वोट शेयर 2 प्रतिशत से नीचे गिरता दिख रहा है।
त्रिपुरा में क्यों दिखती है TMC को संभावना
त्रिपुरा में लेफ्ट का गढ़ 2018 में ध्वस्त तो जरूर हुआ लेकिन यह टीएमसी ने नहीं, बल्कि बीजेपी ने किया। इस बीच ममता बनर्जी त्रिपुरा में अपनी पार्टी के आधार बढ़ाने के प्रयास में लगी रहीं। ऐसी कई वजहें हैं जिनके चलते ममता अपनी पार्टी के विस्तार योजनाओं के मामले में त्रिपुरा को संभावना के तौर पर देखती हैं। इसमें सबसे अहम बात यह है कि बंगाल और त्रिपुरा में ज्यादातर लोग बांग्ला बोलते हैं। दोनों राज्य विभाजन और बांग्लादेश के निर्माण से बंगाली हिंदू शरणार्थियों के निवास की विरासत साझा करते हैं। त्रिपुरा की करीब 30 प्रतिशत आबादी आदिवासी है और बाकी के बंगाली हैं। इनमें से भी ज्यादातर पूर्वी पाकिस्तान के प्रवासी हैं।
ममता के मुकाबले केजरीवाल अधिक मजूबत!
राजनीति के गलियारों में इसकी भी चर्चा है कि ममता बनर्जी 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के सपने संजो रही हैं। हालांकि, वह यह भी अच्छी तरह से जानती हैं कि उनकी पार्टी की पहुंच कमोबेश पश्चिम बंगाल तक ही सीमित है। जोरशोर से प्रचार के बावजूद TMC पिछले गोवा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी। इसी दौरान आम आदमी पार्टी जैसे एक नई-नवेले दल ने तेजी से अपना विस्तार किया है। दिल्ली और पंजाब में AAP के मुख्यमंत्री हैं। इसके अलावा गुजरात और गोवा में आप के कुछ विधायक हैं। इस तरह आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के मोदी चैलेंजर होने के दावों को बल मिला है जबकि ममता बनर्जी पिछड़ी नजर आ रही हैं।