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Explainer : किस तरह मिलता है तलाक, क्या है पूरी प्रक्रिया और नियम-कानून

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Explainer : किस तरह मिलता है तलाक, क्या है पूरी प्रक्रिया और नियम-कानून

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हाइलाइट्स

देश में तलाक के दो तरीके, एक तो आपसी सहमति से तलाक और दूसरा एकतरफा अर्जी लगाना
आपसी सहमति से तलाक की अपील तभी संभव है जब पति-पत्नी सालभर से अलग-अलग रह रहे हों
अब कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देख सकता है कि तलाक पर मुहर कब लगानी है

तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला देते हुए नया प्रावधान किया है. जिससे अब तलाक के लिए 06 महीने इंतजार करने की जरूरत नहीं रहेगी बल्कि इससे पहले भी विवाहित दंपति अलग अलग हो सकते हैं.

कम से कम हमारे देश में माना जाता रहा है कि जोड़े तो स्वर्ग में बनते हैं. आमतौर पर वैवाहिक रिश्ते में बंधते वक्त साथी यही महसूस करते हैं लेकिन कई बार रिश्ते में घुटन और ऊब आ जाती है या ऐसे हालात बन जाते हैं विवाहित जोड़े को लगता है कि उनका साथ रहना बहुत मुश्किल है.

विवाह की स्थिति में रिश्ते को खत्म करने के लिए कानूनी प्रक्रिया की जरूरत होती है. ये प्रक्रिया तलाक के आवेदन के साथ शुरू होती है. लेकिन आवेदन के दौरान या उसके बाद की प्रक्रिया क्या है, ये जानना जरूरी है.

तलाक की प्रक्रिया क्या होती है. इसमें किस तरह की कानूनी अड़चनें आ सकती हैं, या फिर वो कौन से नियम और अधिकार हैं, जो तलाक की याचिका दायर कर रहे दोनों ही पक्षों को पता होना चाहिए.

तलाक की अर्जी लगाने से पहले जानें 
देश में तलाक के दो तरीके हैं, एक तो आपसी सहमति से तलाक और दूसरा एकतरफा अर्जी लगाना. पहले तरीके में दोनों की राजी-खुशी से संबंध खत्म होते हैं. इसमें वाद-विवाद, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप जैसी बातें नहीं होती हैं, इस वजह से इस बेहद अहम रिश्ते से निकलना अपेक्षाकृत आसान होता है. आपसी सहमति से तलाक में कुछ खास चीजों का ध्यान रखना होता है.

गुजारा भत्ता सबसे अहम है
पति या पत्नी में से एक अगर आर्थिक तौर पर दूसरे पर निर्भर है तो तलाक के बाद जीवनयापन के लिए सक्षम साथी को दूसरे को गुजारा भत्ता देना होता है. इस भत्ते की कोई सीमा नहीं होती है, ये दोनों पक्षों की आपसी समझ और जरूरतों पर निर्भर करता है. कोई समस्या होने पर कोर्ट को इसमें दखल देना पड़ता है.

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कुछ खास आधारों पर पति या पत्नी में से कोई एक कोर्ट में तलाक की अर्जी डाल सकता है- सांकेतिक फोटो (picpedia)

बच्चों की कस्टडी किसे मिले?
इसी तरह से अगर शादी से बच्चे हैं तो बच्चों की कस्टडी भी एक अहम मसला है. चाइल्ड कस्टडी शेयर्ड यानी मिल-जुलकर या अलग-अलग हो सकती है. कोई एक पेरेंट भी बच्चों को संभालने का जिम्मा ले सकता है लेकिन अगले पक्ष को उसकी आर्थिक मदद करनी होती है.

सहमति से तलाक की ये है प्रक्रिया 
आपसी सहमति से तलाक की अपील तभी संभव है जब पति-पत्नी सालभर से अलग-अलग रह रहे हों. पहले दोनों ही पक्षों को कोर्ट में याचिका दायर करनी होती है. दूसरे चरण में दोनों पक्षों के अलग-अलग बयान लिए जाते हैं और दस्तखत की औपचारिकता होती है. तीसरे चरण में कोर्ट दोनों को 6 महीने का वक्त देता है ताकि वे अपने फैसले को लेकर दोबारा सोच सकें. इस तीसरे चरण को ही अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बदल दिया है.

अगर कोर्ट को लगता है कि रिश्ते इतने खराब हो चुके हैं या हालत ऐसी है कि रिश्ता नहीं सुधरने वाला, तलाक होकर ही रहेगा तो इस 06 महीने के इंतजार को खत्म किया जा सकता है. लेकिन अगर कोर्ट को लगता है कि 06 महीने के लिए सुलह का समय देना चाहिए तो वो ऐसा कर सकता है.

तब कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा
कई बार इसी दौरान मेल हो जाता है और घर दोबारा बस जाते हैं. छह महीने के बाद दोनों पक्षों को फिर से कोर्ट में बुलाया जाता है. इसी दौरान फैसला बदल जाए तो अलग तरह की औपचारिकताएं होती हैं. आखिरी चरण में कोर्ट अपना फैसला सुनाती है और रिश्ते के खत्म होने पर कानूनी मुहर लग जाती है.

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पति या पत्नी में से एक अगर आर्थिक तौर पर दूसरे पर निर्भर है तो तलाक के बाद गुजाराभत्ता देने की बात आती है- सांकेतिक फोटो (pixabay)

इस आधार पर भी तलाक की अर्जी 
दोनों में से एक पक्ष तलाक के लिए तैयार न हो तो रास्ता अपेक्षाकृत मुश्किल होता है. यहां दोनों पक्षों में संघर्ष होता है, कानूनी जटिलताएं होती हैं. हालांकि कुछ खास आधारों पर पति या पत्नी में से कोई एक कोर्ट में तलाक की अर्जी डाल सकता है. इसमें शादी से बाहर यौन संबंध, शारीरिक-मानसिक क्रूरता, दो सालों या उससे ज्यादा वक्त से अलग रहना, गंभीर यौन रोग, मानसिक अस्वस्थतता, धर्म परिवर्तन कुछ प्रमुख वजहें हैं.

तब हो सकती है शादी अमान्य 
इनके अलावा पत्नी को तलाक के लिए कुछ खास अधिकार भी दिए गए हैं. जैसे पति अगर बलात्कार या अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता हो, पहली पत्नी से तलाक लिए बगैर दूसरी शादी की हो या फिर युवती की शादी 18 वर्ष के पहले कर दी गई हो तो भी शादी अमान्य की जा सकती है.

तलाक का फैसला लेने के बाद वकील से मिलकर उसका आधार तय करें. जिस वजह से तलाक चाहते हैं उसके पर्याप्त सबूत पास होने चाहिए. साक्ष्यों की कमी से केस कमजोर हो सकता है और प्रक्रिया ज्यादा मुश्किल हो जाएगी. अर्जी देने के बाद कोर्ट की ओर से दूसरे पक्ष को नोटिस दिया जाता है. इसके बाद दोनों पार्टियां अगर कोर्ट में हाजिर हों तो कोर्ट की ओर से सारा मामला सुनकर पहली कोशिश सुलह की होती है. अगर ऐसा न हो तो कोर्ट में लिखित में बयान देता है. लिखित कार्रवाई के बाद कोर्ट में सुनवाई शुरू होती है. इसमें मामले की जटिलता के आधार पर कम या ज्यादा वक्त लग सकता है. कई-कई बार मामले कई सालों तक खिंच जाते हैं.

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