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Cloudburst in mountains: मैदानी इलाकों के साथ ही इस बार पहाड़ी इलाकों में भी बारिश आफत बनकर टूटी है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि कई पहाड़ी इलाकों में भी बाढ़ आ गई. भारी बारिश के कारण हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कई जगह भूस्खलन के कारण स्थानीय लोगों के साथ ही पर्यटकों को भी काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा. कई जगह पर बादल फटने की घटनाएं हुईं, जिससे मकानों को भारी नुकसान हुआ. कई जगह सड़कें ही नहीं टूटी, बल्कि मवेशी भी बह गए. बारिश के कारण लोगों को बिजली की कटौती से भी जूझना पड़ा. बादल फटने पर पूरी की पूरी फसल बह गई.
विशेषज्ञों के मुताबिक, पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटनाओं में एक दशक के भीतर तेजी से बढ़ोतरी हुई है. एक अनुमान के मुताबिक, अब उत्तराखंड और हिमाचल के पहाड़ों में डेढ़ गुना से ज्यादा बादल फटने की घटनाएं हो रही हैं. बादल फटने की ज्यादातर घटनाएं मॉनसून की बारिश के दौरान ही होती हैं. जानते हैं कि ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी क्यों हो रही है? साथ ही जानते हैं कि बादल कैसे, कब और क्यों फटता है? विज्ञान के मुताबिक, मौसम फटने की घटना क्या है? बादल फटना कितना ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है? साथ ही जानते हैं कि इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए?
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क्या होता है बादल का फटना
बादल का फटना या क्लाउडबर्स्ट का मतलब, बहुत कम समय में एक सीमित दायरे में अचानक बहुत भारी बारिश होना है. हालांकि, बादल फटने की सभी घटनाओं के लिए कोई एक परिभाषा नहीं है. फिर भी भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक, अगर किसी एक क्षेत्र में 20-30 वर्ग किमी दायरे में एक घंटे में 100 मिलीमीटर बारिश होती है तो उसे बादल का फटना कहा जाता है. आम बोलचाल की भाषा में कहें तो किसी एक जगह पर एक साथ अचानक बहुत बारिश होना बादल फटना कहा जाता है.

बादल का फटना या क्लाउडबर्स्ट का मतलब, बहुत कम समय में एक सीमित दायरे में अचानक बहुत भारी बारिश होना है.
कब होती है बादल फटने की घटना
तापमान बढ़ने से भारी मात्रा में नमी वाले बादल एक जगह इकट्ठा होने पर पानी की बूंदें आपस में मिल जाती हैं. इससे बूंदों का भार इतना ज्यादा हो जाता है कि बादल का घनत्व बढ़ जाता है. इससे एक सीमित दायरे में अचानक तेज बारिश होने लगती है. इसे ही बादल फटना कहा जाता है. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में क्षेत्रीय जलचक्र में बदलाव भी बादल फटने का बड़ा कारण है. इसीलिए यहां बादल पानी के रूप में परिवर्तित होकर तेजी से बरसना शुरू कर देते हैं. दूसरे शब्दों में समझें तो मानसून की गर्म हवाओं के ठंडी हवाओं के संपर्क में आने पर बड़े आकार के बादल बनते हैं. हिमाचल और उत्तराखंड में ऐसा पर्वतीय कारकों के कारण भी होता है. इसलिए हिमालयी क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं.
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किस ऊंचाई पर फटते हैं बादल
विज्ञान के मुताबिक समझें तो बादल तब फटता है, जब नमी के साथ चलने वाली हवा एक पहाड़ी इलाके तक जाती है, जिससे बादलों का ऊर्ध्वाधर स्तंभ बनता है. इसे क्यूमुलोनिम्बस के बादलों के तौर पर भी पहचाना जाता है. इस तरह के बादल भारी बारिश, गड़गड़ाहट और बिजली गिरने का कारण भी बनते हैं. बादलों की इस ऊपर की ओर गति को ‘ऑरोग्राफिक लिफ्ट’ भी कहा जाता है. इन अस्थिर बादलों के कारण एक छोटे से क्षेत्र में भारी बारिश होती है. इसके बाद ये बादल पहाड़ियों के बीच मौजूद दरारों और घाटियों में बंद हो जाते हैं. बादल फटने के लिए आवश्यक ऊर्जा वायु की उर्ध्व गति से आती है. क्लाउडबर्स्ट ज्यादातर समुद्र तल से 1,000 मीटर से लेकर 2,500 मीटर की ऊंचाई तक होता है.
पहाड़ों में क्यों बढ़ रहीं घटनाएं
बादल फटने की घटनाओं के मामले में देश के दो राज्य हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड सबसे अधिक संवेदनशील माने जाते हैं. इन दोनों पहाड़ी राज्यों में अब मॉनसून की बारिश के दौरान बादल फटना आम हो गया है. विशेषज्ञों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले वर्षों में बादल फटने की आपदाओं में ज्यादा बढ़ोतरी की आशंका है. वहीं, तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के लिए जंगलों की आग, पेड़ों को अंधाधुंध काटना, कचरे को जलाना जिम्मेदार हैं. पहाड़ी इलाकों में बड़ी तादाद में पहुंच रहे पर्यटक भी इसके लिए जिम्मेदार है. विशेषज्ञों का कहना है कि पहाड़ों में ज्यादा वाहनों का आना और जंगलों में अवैध निर्माण भी इसका कारण बन रहे हैं.

बादल फटने पर लोगों की जिंदगी और संपत्ति दोनों को बहुत नुकसान होता है.
कहां से मिलती है इतनी नमी
पानी से भरे बादल पहाड़ों की ऊंचाई के कारण एक क्षेत्र के ऊपर अटक जाते हैं. फिर उस इलाके पर एकसाथ तेजी से बरस जाते हैं. अब सवाल ये उठता है कि पहाड़ों पर आफत बनकर बरसने वाले इन बादलों को इतना पानी कहां से मिलता है? इन बादलों को नमी आमतौर पर पूर्व से बहने वाली निम्न स्तर की हवाओं से जुड़े गंगा के मैदानों पर कम दबाव प्रणाली प्रदान करती है. कभी-कभी उत्तर पश्चिम से बहने वाली हवाएं भी बादल फटने की घटना में मदद करती हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक, क्लाउडबर्स्ट के लिए कई कारकों को एकसाथ आना पड़ता है. इसके लिए कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं होता है.
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खतरनाक है बादल का फटना
हाल में हुई बादल फटने की घटनाओं से काफी बर्बादी हुई है. बादल फटने पर लोगों की जिंदगी और संपत्ति दोनों को बहुत नुकसान होता है. बादल फटने पर नदी, नालों में पानी का स्तर तेजी से बढ़ने पर बाढ़ आ जाती है. वहीं, पहाड़ों पर ढलान होने के कारण पानी रुक नहीं पाता, बल्कि तेजी से नीचे की ओर बहता है. ये पानी मिट्टी, कीचड़, पत्थर, मवेशी, इंसान सभी को अपने साथ बहा ले जाता है. पिछले दशक में ही पहाड़ों में बादल फटने की घटनाओं के कारण हजारों लोगों की मौत हो चुकी है. मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक, बादल फटने के दौरान ढलान पर नहीं रहना चाहिए. बरसात के दिनों में नदी और नालों के किनारों पर ना रुकें. लंबी अवधि के उपाय के लिए पौधरोपण कर जलवायु परिवर्तन को संतुलित करें.
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Tags: Cloud birst IMD, Heavy rain and cloudburst, Himachal pradesh news, Uttarakhand News Today
FIRST PUBLISHED : August 01, 2023, 19:45 IST
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