Wednesday, December 18, 2024
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Explainer: दिल्ली पुलिस ने ब्रजभूषण से पॉक्सो एक्ट हटाने को क्‍यों कहा?


POCSO Act: दिल्‍ली पुलिस ने गुरुवार को रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के मुखिया और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज यौन उत्‍पीड़न के मामलों के तहत पटियाला हाउस कोर्ट में चार्जशीट दायर कर दी है. हालांकि, दिल्‍ली पुलिस ने डब्‍ल्‍यूएफआई चीफ के खिलाफ पॉक्‍सो अधिनियम के तहत दर्ज मामला रद्द करने की सिफारिश भी है. बता दें कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एक नाबालिग समेत कुल सात महिला पहलवानों ने यौन उत्‍पीड़न का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज कराया था. नाबालिग पहलवान के आरोपों के कारण बृजभूषण के खिलाफ यौन अपराधों से बच्‍चों को सुरक्षा देने वाले पॉक्‍सो अधिनियम के तहत भी मामला दर्ज किया गया.

नाबालिग पहलवान ने आरोप लगाया था कि डब्ल्यूएफआई ख्‍ीफ ने तस्वीर लेने के बहाने उसे कसकर पकड़ लिया. फिर उसके शरीर के ऊपरी हिस्‍सों पर हाथ फिराना लगे. अब अगर पटियाला हाउस कोर्ट पुलिस की सिफारिश मान लेता है, तो बृजभूषण पर पॉक्‍सो एक्‍ट के तत मुकदमा नहीं चलेगा. बता दें कि इस एक्‍ट में दोषी पाए जाने पर पांच से सात साल तक की कैद की सजा दी जाती है. अब सवाल ये उठता है कि दिल्‍ली पुलिस ने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्‍सो एक्‍ट के तहत केस वापस लेने का फैसला क्यों किया? इससे फैसले पर क्‍या असर पड़ सकता है?

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पॉक्‍सो केस वापस क्यों लेना चाहती है पुलिस?
दिल्ली पुलिस ने कोर्ट से कहा कि डब्ल्यूएफआई चीफ के खिलाफ पॉक्सो की धारा के तहत अपराध का संकेत देने के लिए कोई पुख्ता सबूत उपलब्‍ध नहीं है. वहीं, पॉक्‍सो एक्‍ट के तहत केस रद्द करने की रिपोर्ट तब दायर की जाती है, जब कोई सहायक सबूत नहीं मिलता है. केस में ये मोड़ नाबालिग पहलवान और उसके पिता की ओर से जून 2023 में आरोप वापस लेने और नया बयान दर्ज कराने के बाद आया है. उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने नया बयान दर्ज कराया है. लिहाजा, दिल्‍ली पुलिस ने कोर्ट में पॉक्‍सो एक्‍ट के तहत केस रद्द करने की सिफारिश की है.

दिल्ली पुलिस ने कहा कि डब्ल्यूएफआई चीफ के खिलाफ पॉक्सो की धारा के तहत अपराध का संकेत देने के लिए कोई पुख्ता सबूत उपलब्‍ध नहीं है.

दिल्‍ली पुलिस का मामले पर क्‍या है कहना?
दिल्ली पुलिस ने बताया कि पॉक्सो मामले में जांच पूरी होने के बाद शिकायतकर्ता यानी पीड़िता के पिता और पीड़िता के बयानों के आधार पर पॉक्‍सो के तहत दर्ज मामले को रद्द करने का अनुरोध करते हुए सीआरपीसी की धारा 173 के तहत पुलिस रिपोर्ट पेश की है. पुलिस के कोर्ट में दिए इस बयान ने उन तमाम रिपोर्टों का भी अंत कर दिया है, जिनमें नाबालिग पिता के हवाले से उनकी और उनकी बेटी की शिकायत वापस लेने की खबरों का खंडन किया गया था. दिल्ली पुलिस के डीसीपी सुमन नलवा ने बताया कि पीड़िता और उसके पिता के बयान के आधार पर पॉक्सो मामला रद्द करने की सिफारिश की है. पटियाला हाउस कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 4 जुलाई तय की है.

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नाबालिग पहलवान के पिता ने अब क्‍या कहा?
नाबालिग पीड़िता के पिता का कहना है कि हमें बृजभूषण शरण सिंह से कोई शिकायत नहीं है. हमने 5 जून को नए बयान दर्ज करा दिए हैं. हमने अपने पहले के कुछ बयानों को बदल दिया है. मैंने शिकायत वापस नहीं ली थी, बल्कि नए बयान दर्ज किए थे. गुस्से में हमने कुछ झूठे आरोप लगाए थे. मेरी बेटी को कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा था, लेकिन एफआईआर में जिन बातों का जिक्र है, वे सब सच नहीं थीं.

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दिल्‍ली पुलिस की चार्जशीट में क्या शामिल है?
एक प्राथमिकी में दो आरोपियों बृजभूषण शरण सिंह और डब्ल्यूएफआई के पूर्व सचिव विनोद तोमर के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया गया है. सिंह के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा-354, 354डी और 345ए के तहत चार्जशीट दायर की गई है. यह चार्जशीट छह महिला पहलवानों की ओर से दर्ज कराई गई शिकायतों के आधार पर दायर की गई है. वहीं, विनोद तोमर के खिलाफ चार्जशीट में आईपीसी की धारा-109, 354, 354ए और 506 को शामिल किया गया है.

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बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आईपीसी की धारा-354, 354डी और 345ए के तहत चार्जशीट दायर की गई है.

चार्जशीट में दर्ज धाराओं के मायने क्‍या हैं?
सिंह और तोमर के खिलाफ आईपीसी की धारा-354 तथा 354ए के तहत आरोपों को महिलाओं के खिलाफ अपराध के तौर पर वर्गीकृत किया गया है. डब्ल्यूएफआई प्रमुख और उनके सहायक सचिव पर धारा-354 के तहत आरोप लगाया गया है, जो एक महिला की लज्जा भंग करने को दंडनीय अपराध बनाता है. इसके मुताबिक, अगर कोई व्‍यक्ति किसी महिला पर हमला करता है या आपराधिक बल का उपयोग करता है, उसे अपमानित करने या उसका शील भंग करने का इरादा रखता है तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा दी जाएगी. इस अवधि को दो साल तक बढ़ाया जा कसता है. साथ ही इसमें जुर्माना भी जोड़ा जा सकता है.

– आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 के पारित होने के साथ सजा को अधिक कठोर बनाने के लिए धारा-354 में संशोधन किया गया था. संशोधन के बाद इस धारा के तहत अपराधी को एक साल से कम की सजा नहीं दी जा सकती है. साथ अपराधी को पांच साल तक की सजा देने का प्रावधान कर दिया गया था.

– इस धारा के तहत अपराध संज्ञेय है, जिसका मतलब है कि पुलिस वारंट के बिना आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है. ये गैर-जमानती अपराधी है, जिसका मतलब है कि जमानत अभियुक्त का अधिकार नहीं है और न्यायाधीश के विवेक पर दी जाती है.

– धारा 351 और 350 में ‘हमला’ और ‘आपराधिक बल’ शब्‍दों को परिभाषित किया गया है. धारा 351 में कहा गया है कि अगर कोई व्‍यक्ति किसी को ऐसा ‘कोई इशारा करता है’ या ‘तैयारी का इरादा रखता है या जानता है’ कि इससे व्यक्ति को आपराधिक बल का इस्‍तेमाल करने का इरादा रखने की आशंका होती है तो इसे अपराध माना जाएगा.

– धारा 350 कहती है कि आपराधिक बल का उपयोग तब माना जाता है, जब कोई व्यक्ति किसी भी व्यक्ति पर जानबूझकर बल का उपयोग करता है, बल का उपयोग करने का इरादा रखता है या यह जानता है कि इससे चोट या भय होने की संभावना है.

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अपराध में इरादा और ज्ञान कितने अहम?
‘इरादा’ और ‘ज्ञान’ आईपीसी की धारा-354, 351 तथा 350 के दायरे में आने वाले कृत्य के लिए बहुत अहमियत रखते हैं. आईपीसी कहीं भी यह परिभाषित नहीं करता है कि महिला की गरिमा के प्रति आक्रोश क्या है. हालांकि, शीर्ष अदालत ने 2007 में ‘रामकृपाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य’ मामले में दिए फैसले में कहा था कि एक महिला की विनम्रता का सार उसका सेक्स है. अदालत ने किसी महिला को खींचने, उसके कपड़ों को हटाने या यौन संबंध का अनुरोध करने जैसे उदाहरण भी दिए. कोर्ट ने कहा कि ये सभी कृत्‍य इस धारा के तहत मुकदमा चलाने के लिए पर्याप्त हैं. यहां तक ​​​​कि गैर-इरादतन किए गए ऐसे कृत्‍य में भी कोई छूट नहीं दी जाती है. धारा-354 के तहत दोषी को पांच साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकती है.

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धारा-354 के तहत दोषी को पांच साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकती है.

धारा-354ए के तहत कितनी होती है सजा?
सिंह और तोमर पर आईपीसी की धारा-354ए के तहत पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने का भी आरोप लगाया गया है. इसमें शारीरिक संपर्क और अवांछित व स्पष्ट यौन प्रस्ताव शामिल हैं. साथ ही इसमें यौन अनुग्रह की मांग करना या अनुरोध करना या किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध अश्लील साहित्य दिखाना या यौन संबंधी टिप्पणी करना भी शामिल हैं. इस धारा में 2013 में यह कहते हुए संशोधन किया गया था कि जो कोई भी अवांछित शारीरिक संपर्क, पेशगी, यौन अनुग्रह के लिए अनुरोध या उसकी अश्लील सामग्री दिखाकर किसी महिला का यौन उत्पीड़न करता है तो उसे तीन साल तक कारावास, जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ सकता है. महिलाओं के खिलाफ अश्लील टिप्पणी करने के लिए इस धारा में एक साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकती है. धारा-354ए के तहत अपराध संज्ञेय, लेकिन जमानती है.

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आईपीसी की धारा 354डी क्या कहती है?
बृजभूषण शरण सिंह पर आईपीसी की धारा 354डी के तहत पीछा करने का आरोप भी लगाया गया है, जबकि तोमर पर धारा-506 और 109 के तहत आपराधिक धमकी व अपराध के लिए उकसाने का आरोप है. भारत में 2012 से पहले कानून में पीछा करने के मामलों में दंडात्मक सजा का प्रावधान नहीं था. दिल्‍ली में 16 दिसंबर 2012 के गैंगरेप और हत्या के मामले के बाद स्टॉकिंग को जमानती अपराध बनाया गया. इसके बाद आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 पारित किया गया, जिसमें आईपीसी की धारा-354डी के तहत पीछा करना दंडनीय अपराध बना दिया है.

– इसमें तीन साल तक की कैद और पहली बार अपराध करने वालों के लिए सजा पर जुर्माना हो सकता है. हालांकि, दूसरी या तीसरी या उसके बाद अपराध करने पर जुर्माने के साथ पांच साल तक की कैद हो सकती है.

– धारा 354डी एक ऐसे व्यक्ति द्वारा पीछा करने को परिभाषित करता है जो एक महिला का पीछा करता है और उससे संपर्क करता है या संपर्क करने का प्रयास करता है या स्पष्ट संकेत के बावजूद बार-बार व्यक्तिगत बातचीत को बढ़ावा देने के लिए पीछा करता है.

– इसके अतिरिक्त यह पीछा करने के अर्थ का विस्तार करता है. इसमें एक महिला द्वारा इंटरनेट, ईमेल या इलेक्ट्रॉनिक संचार के किसी अन्य रूप के उपयोग की निगरानी करना भी शामिल है.

– अगर कोई व्यक्ति राज्य की ओर से अपराध की रोकथाम और पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपे जाने पर पीछा कर रहा था तो इस धारा में छूट का दावा किया जा सकता है. इसी तरह अगर पीछा करना किसी कानून के तहत या किसी कानून के तहत किसी व्यक्ति द्वारा लगाई गई किसी शर्त या आवश्यकता का पालन करने के लिए किया गया था या विशेष परिस्थितियों में उचित ठहराया गया था तो उस व्यक्ति पर इस अपराध का आरोप नहीं लगाया जाएगा.

– धारा 354डी का प्रमुख दोष यह है कि पहली बार किया गया अपराध जमानती है. इसका मतलब है कि अभियुक्त को जमानत लेने के लिए अदालत में पेश करने की जरूरत नहीं है. वह पुलिस स्टेशन से ही जमानत ले सकता है.

– दिसंबर 2012 के मामले के बाद गठित न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने सिफारिश की थी कि पीछा करने को गैर-जमानती अपराध माना जाए और एक से तीन साल की जेल की सजा होनी चाहिए. हालांकि, विरोध के कारण धारा-354डी को गैर-जमानती अपराध बनाने वाले विधेयक को संशोधित किया गया और पीछा करने का पहला अपराध जमानती बनाया गया. वहीं, अपराध बार-बार करने पर बढ़ी हुई सजा के साथ गैर-जमानती बनाया गया.

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तोमर पर लगे आरोपों के क्या मायने हैं?
तोमर पर आईपीसी की धारा-506 और 109 के तहत आपराधिक धमकी तथा अपराध के लिए उकसाने का आरोप भी लगाया गया है. धारा-506 आपराधिक धमकी के लिए सजा का प्रावधान करती है, जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है. इसमें जुर्माना भी जोड़ा जा सकता है. हालांकि, धारा-503 में ‘आपराधिक धमकी’ शब्द को परिभाषित किया गया है. इसमें कहा गया है कि अगर कोई व्‍यक्ति दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा या संपत्ति को चोट पहुंचाने के इरादे से धमकी देता है तो उसे अपराध माना जाएगा. इसके अलावा धारा-506 में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे को व्‍यक्ति को मौत या गंभीर चोट या आग से किसी संपत्ति को नष्ट करने या अपवित्रता या महिला पर व्यभिचार की धमकी देता है तो दोषी को 7 साल तक कारावास, जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है. यह एक गैर-संज्ञेय और जमानती अपराध है. तोमर पर धारा-109 के तहत अपराध के लिए उकसाने का भी आरोप लगाया गया है.

Tags: Brij Bhushan Sharan Singh, Delhi police, Patiala House Court, Pocso act, Sexual Harassment, Wrestlers Protest



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