Thursday, December 19, 2024
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Explainer: दुनियाभर में क्‍यों बन रही हैं ‘द केरला स्‍टोरी’ जैसी फिल्‍में, जानें इनके बारे में सबकुछ


हाइलाइट्स

पश्चिमी देशों ने महिलाओं के आतंकी संगठनों में शामिल होने के कारण जानने के लिए कई शोध किए हैं.
स्‍वीडन से लेकर ब्रिटेन और अमेरिका से लेकर फ्रांस तक में इस विषय पर फिल्‍में व डॉक्‍यूमेंट्रीज बनी हैं.

Kerala Story: देश में आजकल ‘केरला स्‍टोरी’ को लेकर गर्मागर्म चर्चाओं का दौर चल रहा है. कुछ लोग इस फिल्‍म के समर्थन में हैं और कुछ इसका विरोध कर रहे हैं. केरल में इस फिल्‍म की स्‍क्रीनिंग पर रोक तक लगा दी गई है. वहीं, दूसरी तरफ इसका बॉक्‍स ऑफिस कलेक्‍शन लगातार बढ़ रहा है. ये फिल्‍म हिंदू, ईसाई या किसी दूसरे धर्म की लड़कियों का धर्मांतरण कर मुस्लिम बनाने और फिर आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों के लिए काम करने को मजबूर करने के गंभीर विषय पर बनाई गई है. ब्रिटेन में कहा जाता है कि इस्‍लामी चरमपंथी संगठनों का युवा लड़कियों को तैयार करना या केरल में प्रलोभन के जरिये लड़कियों का धर्मांतरण करने में कई समानताएं हैं. ये ऐसा उग्र उपराध है, जो दुनिया के कई देशों में हो रहा है.

दुनियाभर में इस सब्‍जेक्‍ट पर बनी फिल्‍मों में इस्‍लाम को मानने वाले चरमपंथी संगठनों का एक ही लक्ष्‍य दिखाया गया है. अधिकांश फिल्‍मों या डॉक्‍यूमेंट्रीज में दिखाया गया है कि किशोर लड़कियों का ब्रेनवॉश कर उन्‍हें अपने धर्म से इस्‍लाम में बदल दिया जाता है. फिर कट्टरपंथी संगठन उन्‍हें टूल की तरह इस्‍तेमाल कर आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं. उन्‍हें उनके ही पुराने धर्म के खिलाफ इस्‍तेमाल किया जाता है. उदाहरण के लिए, आईएसआईएस ने दुनियाभर में युवाओं को आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए ब्रेनवॉश किया. इसके बाद आईएसआईएस में भर्ती कर उनका आतंकवाद के लिए इस्‍तेमाल किया.

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क्‍या होता है चरमपंथी संगठनों का प्राथमिक उद्देश्‍य
दुनियाभर में इस विषय पर बनी फिल्‍मों की चर्चा हम नीचे करेंगे. पहले जानते हैं कि इस सब्‍जेक्‍ट पर की गईं पश्चिमी देशों की रिसर्च क्‍या कहती हैं. पश्चिमी देशों की ओर से की गईं कई रिसर्च में कहा गया है कि इस्‍लामवादी चरमपंथी संगठनों का प्राथमिक उद्देश्‍य लोकतांत्रिक समाजों की ओर से मिली आजादी का इस्‍तेमाल कर उन्‍हें भीतर से नष्‍ट करना रहा है. दरअसल, लोकतांत्रिक समाज धर्म का पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं. अध्‍ययनों के मुताबिक, ये समाज शायद यह नहीं देख पाए कि लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की आड़ में किसी जगह के धर्म, संस्कृति व जनसांख्यिकी को बदलने के प्रयास भी किए जा सकते हैं. अंत में युवा लड़कियां ही इन कट्टरपंथी एजेंडों का खामियाजा भुगतती हैं.

आईएसआईएस ने दुनियाभर में युवा महिलाओं को आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए ब्रेनवॉश किया.

पहली बार किसने इस्‍तेमाल किया ‘लव जिहाद’ शब्‍द
भारत में पहली बार केरल के ईसाई चर्च ने ‘लव जिहाद’ शब्द गढ़ा था. चर्च का कहना था कि कट्टरपंथी इस्लाम का विस्तार करने के लिए प्रतिबद्ध लोगों की कार्यप्रणाली में ‘लव जिहाद’ भी शामिल रहा है. समय के साथ इसका स्‍वरूप और नाम बदलते रहे हैं, लेकिन इसका अंतिम लक्ष्‍य धर्मांतरण ही रहा है. इसके जरिये कट्टरपंथी इस्लाम का प्रसार और देसी संस्कृति का अंत ही इनका लक्ष्‍य रहा है. पश्चिमी देशों ने राजनीतिक रूप से सही होने की कोशिश किए बिना इस समस्‍या से निपटा. वहां भारत में इस समस्‍या को प्रेम विवाह और युवाओं की आजादी बताकर ढकने की कोशिश होती रही है. वहीं, पश्चिमी समाजशास्‍त्री धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर काफी स्‍पष्‍ट राय रखते हैं.

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क्‍या कहता है मॉडर्न स्‍लेवरी एविडेंस यूनिट का लेख
फरवरी 2020 में मॉडर्न स्लेवरी एविडेंस यूनिट रिसर्च ब्रीफिंग ने आईएसआईएस दासता पर एक लेख प्रकाशित किया. इसमें बताया गया था कि कैसे आईएसआईएस धर्म, लिंग और उम्र के आधार पर गुलाम महिलाओं के बीच भेदभाव करता है. लेख में बताया गया कि अधिकांश गैर-मुस्लिम पुरुषों को मारना और गैर-मुस्लिम महिलाओं व बच्चों को गुलाम बनाना आईएसआईएस का उद्देश्‍य था. इसके मुताबिक, 2014 और 2017 के बीच इस्लामिक स्टेट ने अपनी रणनीति के तौर पर कई देशों के नागरिकों को संस्थागत रूप से गुलाम बनाया. यही नहीं, आतंकी संगठन ने इन गुलामों को अपने सैन्‍य अभियानों और अपना शासन स्‍थापित करने की कोशिश में इनका इस्‍तेमाल किया.

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कैंब्रिज ने किसे बताया था ISIS की सफलता
मॉडर्न स्‍लेवरी एविडेंस यूनिट रिसर्च ब्रीफिंग के लेख के मुताबिक, आईएसआईएस ने धार्मिक आधार पर सार्वजनिक रूप से गुलामी और यौन हिंसा को वैध बनाने का प्रयास किया. आतंकी संगठन ने उत्तरी इराक की जातीय यज़ीदी आबादी को टारगेट बनाया. उत्‍तरी इराक में यज़ीदी आबादी धार्मिक अल्पसंख्यक समूह है. आईएसआईएस ने यज़ीदी पुरुषों की बड़े पैमाने पर हत्‍या कर दी और महिलाओं व बच्‍चों को गुलाम बनाया. कैंब्रिज ने नवंबर, 2018 में ‘कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस’ में ‘क्यों पश्चिम की महिलाएं आईएसआईएस में शामिल हो रही है’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया. इसमें कहा गया था कि पश्चिम की महिलाओं को आकर्षित करने में आईएसआईएस सफल रहा है, जो अब तक कोई दूसरा जिहादी संगठन नहीं कर पाया था.

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महिलाएं आईएस में शामिल होने को प्रेरित क्‍यों?
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस में प्रकाशित ये लेख बताता है कि महिलाओं को इस तरह के कुख्यात आतंकवादी समूह में शामिल होने के लिए आखिर क्या प्रोत्‍साहित करता है, जबकि ये संगठन अपनी हिंसा, दुर्व्यवहार और दासता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. वेबसाइट कैंब्रिज डॉट ओआरजी पर प्रकाशित इस लेख में कहा गया था कि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया में शामिल होने के लिए 550 से अधिक पश्चिमी महिलाएं सीरिया और इराक चली गई हैं. ये उसकी बड़ी सफलता है. इस सफलता के कारण समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि आईएसआईएस पश्चिम की महिलाओं को कैसे लुभाता है? साथ ही ये जानना भी जरूरी है कि इस्लामिक स्टेट में महिलाओं से क्या भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती है?

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दुनियाभर में दर्जनों शोध किए गए कि महिलाओं को आतंकवादी समूह में शामिल होने के लिए आखिर क्या प्रोत्‍साहित करता है,

आईएसआईएस की युवाओं से क्‍या रही है अपील
सीएनएन के 25 फरवरी 2015 को ‘युवाओं के लिए आईएसआईएस की अपील क्या है’ शीर्षक से प्रकाशित लेख में पता लगाया गया कि कैसे आतंकी संगठन ने युवा महिलाओं को लुभाने के अपने प्रयास तेज किए. कैसे संभव हुआ कि पश्चिमी देशों समेत दुनियाभर की लड़कियां आतंकी संगठन के क्रूर नियंत्रण वाले क्षेत्र सीरिया और इराक में उसके लड़ाकों के लिए संभावित दुल्हन के तौर पर जाने को तैयार हो गईं. लेख में बताया गया था कि लड़कियों को खलीफा की शेरनियां बताया जाता था. साथ ही उन्‍हें लड़ाकों की ड्रेस में हैंड टू हैंड कॉम्‍बेट की ट्रेनिंग लेती हुई दूसरी लड़कियों की तस्‍वीरें दिखाई जाती हैं. इससे लड़कियां काफी प्रभावित हो जाती हैं और आईएस में शामिल होने के लिए प्रेरित होती हैं.

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क्‍या था ‘शहीद की पत्‍नी हैं तो…’ का मतलब
द गार्जियन ने 24 जून 2015 को ‘आइसिस ब्राइड्स की गुप्त दुनिया: अगर आप एक शहीद की पत्नी हैं तो आपको किसी चीज के लिए भुगतान नहीं देना होगा’ शीर्षक से लेख प्रकाशित किया. इसमें भी सवाल उठाया गया था कि इस्लामिक स्टेट के हिंसक जिहाद के लिए पश्चिमी महिलाओं को क्या आकर्षित करता है? नबीला जाफर ने इस लेख के लिए सीरिया की यात्रा से पहले और बाद में ब्रिटिश व अमेरिकी महिलाओं से बात करने में महीनों बिताए. इसमें उन्‍होंने बताया कि पश्चिम की महिलाओं को भरोसा दिलाया जाता था कि अगर वे शहीद की विध्‍वा होंगी तो उन्‍हें समाज में बेहतर दर्जा मिलेगा और फिर वे कैसे अपने सुरक्षित भविष्‍य को लेकर आश्‍वस्‍त हुईं. दुनियाभर में ऐसे दर्जनों लेख और शोध प्रकाशित हो चुके हैं.

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किस देश में इस विषय पर कौन सी फिल्‍म बनी
द केरला स्टोरी अपनी तरह की या इस विषय पर बनी इकलौती फिल्म नहीं है. लव जिहाद, धर्मांतरण, आतंकी संगठनों के दूसरे धर्म की महिलाओं के इस्‍तेमाल को लेकर दुनियाभर में फिल्में व डॉक्‍यूमेंट्रीज बनाई गई हैं. इन सभी फिल्‍मों और डॉक्‍यूमेंट्रीज में ये जानने की कोशिश की गई है कि कैसे पढ़ी लिखी महिलाएं आतंकी और चरमपंथी संगठनों के झांसे में आकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेती हैं.

नॉट विदआउट माई डॉटर: ‘नॉट विदाउट माई डॉटर’ 1991 की अमेरिकी ड्रामा फिल्म है. ये फिल्‍म इसी नाम से छपी किताब पर आधारित है. ये फिल्‍म अमेरिकी नागरिक बेट्टी महमूदी और उसकी बेटी के ईरान में उसके क्रूर पति से बचने की कहानी बयां करती है. फिल्म को अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी. किसी ने इस पर आपत्ति नहीं जताई थी. इसमें एक सच्ची कहानी दिखाई गई थी.

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फिल्‍म सबाया में आईएसआईएस के हाथों मारे गए हजारों यज़ीदी पुरुषों की कहानी बयां करती है.

स्‍वीडिश डॉक्‍यूमेंट्री ‘सबाया’
सबाया 2021 की एक स्वीडिश डॉक्यूमेंट्री फिल्म है. इसे होगीर हिरोरी ने डायरेक्‍ट, शूट और एडिट किया है. इसमें दिखाया गया है कि जब इस्लामिक स्टेट ने 2014 में उत्तरी इराक के सिंजर प्रांत पर कब्जा कर लिया तो हजारों कुर्द यज़ीदी पुरुषों का नरसंहार किया गया. हजारों महिलाओं का अपहरण कर लिया गया. इनके साथ आईएसआईएस आतंकियों ने बलात्कार किया और बाद में गुलामों की तरह बेच दिया. इसमें आईएसआईएस द्वारा पकड़ी गई महिलाओं की दुर्दशा को दिखाया गया था. डॉक्‍यूमेंट्री की सभी ने तारीफ की.

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वेब सीरीज ‘खलीफा’
खलीफा नेटफ्लिक्स पर 2020 में रिलीज हुई स्वीडिश वेब सीरीज है. कहानी बेथनल ग्रीन नाम की तीन किशोरियों के वास्तविक जीवन पर आधारित है. इसमें दिखाया गया है कि लंदन की तीन किशोर लड़कियां फरवरी 2015 में अपने स्कूल में जिहाद के लिए भर्ती करने वालों से मिलीं. इसमें दिखाया गया कि चरमपंथी संगठन के लड़के तीनों लड़कियों को प्‍यार के जाल में फंसाते हैं. फिर उन्‍हें भर्ती करके आईएस के लिए लड़ने को सीरिया जाने के लिए मजबूर करते हैं. ये कहानी वास्तविक घटनाओं पर आधारित है और कई मायनों में केरल स्टोरी की कहानी की तरह है.

फ्रांस की ‘हेवन विल वेट’
‘हेवन विल वेट’ एक फ्रांसीसी फिल्म है, जो दो मध्यवर्गीय लड़कियों को आईएसआईएस में भर्ती किए जाने की कहानी बयां करती है. फिल्‍म में दिखाया गया है कि बाद में कैसे उन लड़कियों को जिहादी मंसूबों को पूरा करने के लिए काम करना पड़ता है. डच निर्देशक मिजके डी जोंग का नाटक ‘लायला एम’ एम्‍स्‍टर्डम में एक मोरक्‍कन परिवार की युवा मुस्लिम महिला के कट्टरपंथीकरण की कहानी के इर्दगिर्द बुना गया है. इस पर 2016 में फिल्‍म रिलीज हुई. फिल्म की समीक्षा करते हुए वैराइटी के स्कॉट टोबियास ने इसे ‘आतंकवादी भर्ती में प्रशंसनीय केस स्टडी’ कहा.

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दर्दनाम ड्रामा ‘रसेबा: द डार्क विंड’
‘रसेबा: द डार्क विंड’ एक दर्दनाक ड्रामा था, जिसमें एक कुर्द यज़ीदी महिला की सच्ची कहानी दिखाई गई थी. यज़ीदी महिला को इराक में पकड़ लिया गया था. इसके बाद आईएसआईएस ने उसे गुलामी में नीलाम कर दिया था. बाद में सीरिया में उसके मंगेतर ने उसे बचाया. ‘डार्क विंड’ ने दुबई अंतरराष्‍ट्रीय फिल्म महोत्सव में शीर्ष पुरस्कार जीता. ब्रिटिश ब्रॉडकास्ट सर्विस चैनल चैनल 4 ने यूके और अन्य जगहों से आईएसआईएस में भर्ती होने के लिए महिलाओं को लुभाने के विषय पर एक डॉक्‍यमेंट्री प्रसारित की थी.

तरीना शकील का इंटरव्‍यू
ब्रिटेन में ‘दिस मॉर्निंग’ शो में अतिथि के तौर पर तरीना शकील को बुलाया गया था. वह आईएसआई में ‘द टोवी जिहादी’ के नाम से भर्ती हुई थी. उसने इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के लिए बर्मिंघम से सीरिया तक की यात्रा की थी. वह आईएस के साथ तीन महीने के बाद ब्रिटेन लौटी तो 2016 में उसे जेल भेज दिया गया. शो में उसने बताया कि कैसे उसे ऑनलाइन तैयार किया गया और आईएसआईएस में शामिल होने के लिए सीरिया पहुंचाया गया था. किशोर लड़कियों हादा मुथाना और शमीमा बेगम ने आईएस में शामिल होने के लिए दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थीं. इनमें मुथाना अमेरिका और शमीमा ब्रिटेन से अपने घरों को छोड़कर सीरिया पहुंच गई थीं. ‘द रिटर्न: लाइन आफ्टर आईएसआईएस’ में ऐसी ही पश्चिमी महिलाओं की कहानी है. इस फिल्‍म की किसी ने अलोचना नहीं की.

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ब्रिटेन की शमीमा बेगम ने आईएस में शामिल होने के लिए दुनियाभर में सुर्खियां बटोरी थीं.

बीबीसी की ‘जिहादी ब्राइड्स’
बीबीसी की डॉक्‍यूमेंट्री ‘जिहादी ब्राइड्स’ बताती है कि कैसे 60 से ज्‍यादा युवा ब्रिटिश महिलाओं ने सीरिया में इस्लामिक स्टेट में शामिल होने के लिए यात्रा की. इन महिलाओं को मार्केटिंग, सोशल मीडिया और धार्मिक उत्साह के बेहतरीन समन्‍वय से आकर्षित किया गया. जिहादी ब्राइड्स ने खुलासा किया कि कैसे आईएस की परिष्कृत भर्ती रणनीति ने कई जिंदगियों को बर्बाद कर दिया. मुर्तजा जाफरी निर्देशित ‘आईएसआईएस ब्राइड’ 2017 में रिलीज हुई थी. ये फिल्‍म एक गर्भवती महिला के बारे में है, जिसे आईएसआईएस के पुरुषों ने उसकी इच्छा के बिना अपने साथ रखा. इसके बाद उसे बहुत प्रताड़ित किया गया और उससे बलात्कार किया गया.

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लव जिहाद पर क्‍या कहते हैं हसाम मुनीर
लव जिहाद की अवधारणा को लेकर 2009 तक दबी आवाज में बात की जाती थी. अब इस अवधारणा का हर जगह उल्लेख किया जाने लगा है. इस मुद्दे पर भारत समेत दुनियाभर में चर्चा होने लगी है. भारत के केरल में ईसाई चर्च लव-जिहाद को बड़ी साजिश का हिस्सा मानते हैं. हसाम मुनीर ने ‘हाउ इस्लाम स्प्रेड थ्रूआउट द वर्ल्ड’ शीर्षक के अपने पेपर में इस विचार का विरोध किया है कि इस्लाम केवल तलवार के दम पर फैला है. वह कहते हैं कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतर-धार्मिक विवाह उन चार तरीकों में से एक था, जिसके जरिये इस्लाम का प्रसार हुआ.

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केरल के पूर्व सीएम ने क्‍या कहा था
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री एस अच्युतानंदन ने भी कहा था कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने पैसे और शादी के साथ 20 साल में केरल का इस्लामीकरण करने की योजना बनाई है. केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमेन चांडी ने 2012 में कहा था कि 2009-12 के दौरान इस्लाम में परिवर्तित होने वालों में 2667 युवतियां थीं, जिनमें से 2195 हिंदू और 492 ईसाई थीं. भारतीय ईसाइयों की चैश्विक परिषद ने कहा था कि केरल में लव जिहाद वैश्विक इस्लामीकरण परियोजना का हिस्सा है. केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल ने 2009 में कहा था कि 2600 से अधिक युवा ईसाई महिलाओं को 2006 से इस्लाम में परिवर्तित किया गया है. उनके सतर्कता आयोग ने ईसाइयों को ऐसी घटनाओं को लेकर सतर्क रहने को कहा था.

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