Home National Ganesh Chaturthi 2023: जय गणेश, जय गणेश देवा… किसने लिखी गणेश जी की आरती?

Ganesh Chaturthi 2023: जय गणेश, जय गणेश देवा… किसने लिखी गणेश जी की आरती?

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Ganesh Chaturthi 2023: जय गणेश, जय गणेश देवा… किसने लिखी गणेश जी की आरती?

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Ganeshotsav 2023: गणेश चतुर्थी से पूरे देश में बड़े पंडालों में विराजे लंबोदर के दर्शनों के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है. महाराष्‍ट्र में तो गणेशोत्‍सव की धूम अलग ही नजर आती है. वहीं, मध्‍य प्रदेश, उत्‍तर प्रदेश, गुजरात, दिल्‍ली समेत कई राज्‍यों में भी गणेशोत्‍सव पूरे जोश के साथ मनाया जाता है. गणेश पंडालों में शाम को होने वाली आरती में श्रद्धालुओं की जबरदस्‍त भीड़ जुटती है. गणेशजी की पूजा और आरती के बिना कोई भी पूजा या अनुष्ठान सफल नहीं माना जाता है. किसी भी देवी-देवता की पूजा से पहले गणेशजी की आरती ‘जय गणेश, जय गणेश जय गणेश देवा’ पूरी श्रद्धा से गाई जाती है. लेकिन, क्‍या आपको पता है कि विघ्‍नहर्ता गणेश जी की ये आरती किसने लिखी है?

प्रथम पूज्य देव गणेश जी को विघ्‍नहर्ता भी कहा जाता है. माना जाता है कि अगर गणेश जी प्रसन्‍न हो जाएं तो भक्‍त के संकटों और परेशानियों को खत्‍म कर देते हैं. गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं. सिर हाथी का होने के कारण उन्‍हें गजानन और विशाल उदर होने के कारण लंबोदर भी कहा जाता है. उनकी दो आरती सबसे ज्‍यादा प्रचलित हैं. पहली ‘जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा’ और दूसरी मराठी वंदना ‘सुखकर्ता दुखहर्ता, वार्ता विघनांची’ है. दोनों की ही रचना छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ रामदास ने की थी. दरअसल, समर्थ रामदास को पुणे के आठ गणेश मंदिरों से युक्त अष्‍टविनायक तीर्थयात्रा सर्किट के प्रमुख मंदिर मोरगांव मंदिर में भगवान गणेश के एक रूप मयूरेश्वर को देखकर आरती लिखने के लिए प्रेरित किया गया था.

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किस राग में लिखी गई गणेश वंदना
समर्थ रामदास ने दोनों ही भाषा की आरतियां भगवान मयूरेश्‍वर को देखते हुए ही लिखी थीं. उनकी लिखी गणेश जी की मराठी आरती राग जोगिया में है. भगवान गणेश की आरती का उद्देश्य विघ्‍नहर्ता की भक्ति व्यक्त करना है. दोनों ही आरती भक्तों के धर्म के प्रति समर्पण दिखाने का एक जरिया भी है. गणेश चतुर्थी से 11 दिनों के लिए भगवान लंबोदर लोगों के घरों में विराजमान हो चुके हैं. माना जाता है कि 11 दिन मेहमान रहने के बाद जब विघ्‍नहर्ता जाते हैं तो अपने साथ भक्‍त की सभी मुश्किलें ले जाते हैं. गणेश जी का बड़ा सिर दर्शाता है कि बड़ा सोचने वाले ज्‍यादातर लोग सफलता की सीढ़ी चढ़ते हैं.

भगवान गणेश के स्‍वरूप में सीख
भगवान गणेश की छोटी आंखें पैनी नजर की सूचक हैं. दूसरे शब्‍दों में कहें तो भगवान गणेश का स्‍वरूप बताता है कि कोई भी फैसला लेने से पहले बारीक से बारीक चीज को देखकर अंतिम निर्णय पर पहुंचना चाहिए. वहीं, उनके बड़े कान बताते हैं कि बेहतर प्रबंधन के लिए अपने इर्दगिर्द के लोगों के साथ ही सभी की बातों को ध्‍यान से सुनकर विचार करके फैसला लेना चाहिए. सिर के मुकाबले गणपति का मुंह छोटा है, जो बताता है कि अच्‍छे मैनेजमेंट के लिए सोच-समझकर और कम बोलना चाहिए. उनकी बड़ी नाक यानी सूंड बताती है कि आने वाले किसी भी खतरे या जोखिम को दूर से ही सूंघ लेना चाहिए. उनका बड़ा पेट हर बात को पचाने की क्षमता विकसित करने की सीख देता है. उनका चतुर्भुज स्‍वरूप बताता है कि हमें बेहतर प्रबंधन के लिए मल्‍टी-टास्‍कर होना चाहिए.

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कौन थे रचनाकार समर्थ रामदास
भगवान गणेश की आरती लिखने वाले समर्थ रामदास का असली नाम नारायण सूर्याजीपंत कुलकर्णी था. उनका जन्म महाराष्ट्र के जालना जिले के जांब में सन 1606 में हुआ था. समर्थ रामदास के पिता का नाम सूर्याजी पंत था. उनकी मां राणुबाई संत एकनाथ के परिवार की थीं. समर्थ रामदास के बड़े भाई गंगाधर स्‍वामी थे. उन्होंने ‘सुगमोपाय’ ग्रंथ की रचना की थी. समर्थ रामदास ने युवाओं स्वस्थ व सुगठित शरीर से राष्‍ट्र के विकास की सीख दी. उन्होंने लोगों को व्यायाम करने की सलाह दी और हनुमानजी की मूर्ति स्‍थापित की. भारत भ्रमण के दौरान उन्‍होंने जगह-जगह हनुमानजी की मूर्ति स्थापित कीं. उन्‍होंने देश में नवचेतना के निर्माण के लिए जगह-जगह मठ बनाए.

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समर्थ रामदास ने लिखीं 90 आरतियां
समर्थ रामदास ने दासबोध, आत्माराम, मनोबोध जैसे कई ग्रंथ लिखे. उनकी लिखी गईं 90 से ज्‍यादा आरतियां घर-घर में गाई जाती हैं. उन्‍होंने सैकड़ों ‘अभंग’ भी लिखे हैं. समर्थ रामदास ने तत्कालीन समाज की हालत को देखते हुए ग्रंथों में राजनीति, प्रपंच, व्यवस्थापन शास्त्र जैसे कई विषयों का मार्गदर्शन किया है. समर्थ रामदास ने सरल शब्दो में देवी-देवताओं के 100 से ज्‍यादा के स्तोत्र भी लिखे हैं. उनके स्तोत्र व आरतियों में भक्ति, प्रेम के साथ वीर रस भी नजर आता है. आत्माराम, मानपंचक, पंचीकरण, चतुर्थमान, बाग प्रकरण, स्फूट अभंग समर्थ रामदास की ही रचनाएं हैं. ज्‍यादा रचनाएं मराठी के ‘ओवी’ छंद में हैं. महाराष्‍ट्र के संत और छत्रपति शिवाजी महाराज के आध्‍यात्मिक गुरु समर्थ रामदास ने 1682 में अंतिम सांस ली.

कैसे शुरू हुआ गणेश उत्‍सव
गणेश उत्सव की शुरुआत महाराष्ट्र में पुणे से हुई थी. बतया जाता है कि मुगल शासन के दौरान सनातन संस्कृति को बचाने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी माता जीजाबाई के साथ गणेश चतुर्थी से गणेश महोत्सव की शुरुआत की थी. छत्रपति शिवाजी के गणेश महोत्सव की शुरुआत करने के बाद मराठा साम्राज्य के बाकी पेशवा भी गणेशोत्‍सव मनाने लगे. गणेश चतुर्थी के दौरान मराठा पेशवा ब्राह्मणों को भोजन कराते थे. पेशवाओं के बाद ब्रिटिश शासन ने भारत में हिंदुओं के सभी पर्वों पर रोक लगा दी. इस पर बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के महोत्सव को मनाने की फिर से शुरूआत की.

Tags: Dharma Aastha, Ganesh Chaturthi, Ganesh Chaturthi Celebration

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