Monday, March 24, 2025
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Ghosi Election Result: लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में अखिलेश यादव पड़े भारी, घोसी में बीजेपी की हार की 5 बड़ी वजहें


Ghosi Bypoll Result 2023: आगामी लोकसभा चुनाव से पहले यूपी के घोसी उप-चुनाव में बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। ‘इंडिया’ और एनडीए की लड़ाई में अखिलेश यादव बीजेपी पर भारी पड़े हैं। घोसी सीट पर सपा के सुधाकर सिंह ने बीजेपी के दारा सिंह चौहान को 42 हजार से ज्यादा वोटों के बड़े मार्जिन से हरा दिया। दारा सिंह समाजवादी पार्टी (सपा) छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे, जिसके बाद उन्हें घोसी से उप-चुनाव में कैंडिडेट बनाया गया था। वे यहां पहले सपा से विधायक थे। उप-चुनाव में सपा ने सुधाकर सिंह को उतारकर जोर-शोर से प्रचार किया। जमीन पर शिवपाल यादव ने कई दिनों तक मोर्चा संभाले रखा और घर-घर जाकर मतदाताओं से मुलाकात की। सुधाकर की जीत और दारा सिंह चौहान की हार की कई प्रमुख वजहें हैं, जिसमें दल-बदल से लेकर अखिलेश यादव का पीडीए फॉर्मूला है। आइए घोसी से दारा सिंह चौहान की हार की पांच बड़ी वजहों के बारे में जानते हैं…

जनता ने दल-बदल नहीं पसंद किया

बीजेपी के दारा सिंह चौहान उन नेताओं में हैं, जो यूपी की लगभग सभी प्रमुख पार्टियों में कभी न कभी रहे। कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू करने वाले दारा सिंह बसपा, सपा, बीजेपी सभी में रहे। साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में दारा सिंह ने बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की। इसके बाद योगी सरकार में पांच साल तक मंत्री रहे, लेकिन जैसे ही 2022 विधानसभा चुनाव आया और तमाम जगहों पर अखिलेश का पलड़ा भारी लगता दिखा, उन्होंने बीजेपी का दामन छोड़ दिया। इसके बाद वे सपा से चुनाव लड़े और घोसी विधानसभा से जीते भी। हालांकि, सपा को बहुमत न मिलने के बाद उन्हें बड़ा झटका लगा और कुछ महीने पहले ही वापस बीजेपी में चले गए। घोसी उप-चुनाव में बीजेपी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया और विधायकों, मंत्रियों आदि की पूरी फौज चुनाव प्रचार के लिए उतार दी। लेकिन शुक्रवार को आए नतीजों से साफ है कि जनता ने दारा सिंह चौहान जैसे दल-बदल करने वाले नेताओं को पसंद नहीं किया और चुनाव में बड़ी हार का स्वाद चखा दिया।

शिवपाल यादव की ‘जादूगरी’ आ गई काम

अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल लंबे समय तक सपा से दूर रहे। जब मुलायम से अखिलेश को सपा की सत्ता गई तो बाद में शिवपाल ने अपनी अलग पार्टी बना ली। वे बीजेपी के करीब भी नजर आए और कई बार अटकलें लगीं कि वे भगवा पार्टी का दामन थाम सकते हैं। हालांकि, मुलायम के निधन के बाद शिवपाल फिर से अखिलेश के करीब हुए और मैनपुरी उप-चुनाव में डिंपल यादव को जीत दिलवाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई। अखिलेश पर हमेशा से ही आरोप लगते रहे कि वे अपने पिता और चाचा की तरह जमीनी स्तर पर लड़ने वाले नेता नहीं हैं, जबकि मुलायम और शिवपाल ने हमेशा एसी के कमरे से नहीं, बल्कि जमीन पर उतरकर राजनीति की। शिवपाल की यह ‘जादूगरी’ घोसी में उस समय दिखाई दी, जब उन्होंने सपा कैंडिडेट सुधाकर के लिए वही मैनपुरी वाली पुरानी रणनीति अपनाई। वे लंबे समय तक घोसी में डटे रहे और जनता से सपा को जिताने की अपील करते रहे। वे खुद कई जगह घर-घर गए और कैसे पार्टी को जीत मिले, इसके लिए समय-समय पर रणनीति बनाते रहे। शिवपाल की यही जमीनी राजनीति भी घोसी उप-चुनाव में सपा कैंडिडेट की जीत की एक वजह बनी।

‘इंडिया’ का एकजुट होना बीजेपी को पड़ा भारी

आगामी लोकसभा चुनाव के लिए इस बार विपक्ष के 28 दल एक साथ आए हैं, जिसमें कांग्रेस, सपा भी शामिल है। एक समय कांग्रेस से पूरी तरह से दूरी बनाकर रखने का दावा करने वाले अखिलेश यादव को घोसी उप-चुनाव में कांग्रेस का काफी साथ मिला। यूपी कांग्रेस के नए नवेले अध्यक्ष अजय राय ने उप-चुनाव में पार्टी का कोई भी कैंडिडेट नहीं उतारा और सपा को समर्थन देने का ऐलान कर दिया। वहीं, जब बसपा ने भी अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया तो यह लड़ाई ‘इंडिया’ बनाम एनडीए की हो गई। इस लड़ाई में ‘इंडिया’ की एकजुटता बीजेपी पर भारी पड़ गई। अब आने वाले समय में भी देखना होगा कि क्या अखिलेश यादव लोकसभा में कांग्रेस के साथ गठबंधन करते हैं या फिर नहीं। इस समय सपा और आरएलडी का गठबंधन है और माना जा रहा है कि यूपी में कांग्रेस को भी साथ में लिया जा सकता है। घोसी में ‘इंडिया’ के एकजुट लड़ने से हुए फायदे से इसकी संभावनाएं अब ज्यादा बढ़ गई हैं।

मुख्तार अंसारी भी क्यों बना वजह ?

घोसी उप-चुनाव में मुख्तार अंसारी भी सपा की जीत की एक वजह माना जा रहा है। दरअसल, घोसी मऊ जिले में आता है और यहां से काफी समय से मुख्तार परिवार का दबदबा रहा है। बाहुबली मुख्तार खुद मऊ क्षेत्र से पांच बार विधानसभा के सदस्य चुना जा चुका है। उसने साल 1996, 2002, 2015, 2012 और 2017 में लगातार पांच बार विधानसभा का चुनवा जीता। हालांकि, इसी साल अप्रैल महीने में बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में दोषी ठहराए जाने के बाद दस साल की सजा सुना दी गई। बसपा के उप-चुनाव नहीं लड़ने की वजह से पूरा मुस्लिम वोट भी एकजुट होकर सपा की ओर गया, जिससे सुधाकर सिंह को जबरदस्त फायदा हुआ। यदि बसपा यहां उप-चुनाव लड़ती तो यकीनन मुस्लिम वोटों में बंटवारा होता और इसका नुकसान सपा को झेलना पड़ सकता था। 

काम कर गया अखिलेश का ‘पीडीए’ फॉर्मूला, बसपा के न होने से भी फायदा

2022 विधानसभा चुनाव में झटका खाने के बाद अखिलेश यादव नई रणनीति पर काम कर रहे हैं। उन्होंने इंडिया गठबंधन से पहले ही ‘पीडीए’ फॉर्मूले की बात करनी शुरू कर दी, जिसका फुल फॉर्म उन्होंने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक बताया। इसके लिए उन्होंने स्वामी प्रसाद मौर्य को आगे किया, जिन्होंने पिछड़े और दलित वोटबैंक को साधने की भरपूर कोशिश की। हालांकि, उनके बयानों से काफी विवाद भी हुआ, जिस पर बीजेपी ने जमकर घेरा। इसके बावजूद भी अखिलेश स्वामी प्रसाद मौर्य को आगे करके पीडीए शब्द का जिक्र करते रहे। ऐसे में घोसी के नतीजों को देखकर लगता है कि इस रणनीति का अखिलेश को फायदा भी मिला। बसपा के मैदान में नहीं उतरने से पिछड़ों और दलितों के वोटों पर सपा के सुधाकर सिंह भी सेंधमारी की। वहीं, मुस्लिम वोट भी सपा की ओर चला गया। जीत के बाद अखिलेश ने पीडीए का जिक्र भी किया और कहा, ”इंडिया टीम है और पीडीए रणनीति: जीत का हमारा ये नया फॉर्मूला सफल साबित हुआ है।”



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