Sunday, December 15, 2024
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HTLS: नीरज चोपड़ा को इस जेवलिन थ्रोअर के हाथों पिछड़ने पर नहीं होगा अफसोस, बोले- एक दिन टाइम आता है जब…


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भारत के स्टार जेवलिन थ्रोअर कई खिताब अपने नाम कर चुके हैं। उन्होंने ओलंपिक, र्ल्ड चैंपियनशिप, एशियन गेम्स से लेकर डायमंड लीग में गोल्ड मेडल अपने नाम किया है। 25 वर्षीय चोपड़ा फिलहाल भाला फेंक खेल में शीर्ष एथलीट में शुमार हैं। हालांकि, चोपड़ा को बखूबी मालूम है कि एक दिन कोई और एथलीट आएगा और उनसे आगे निकल जाएगा। चोपड़ा का कहना है कि अगर कोई भारतीय जेवलिन थ्रोअर उन्हें पछाड़ेगा तो अफसोस नहीं होगा। उन्होंने यह बात शुक्रवार को हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट 2023 में चर्चा के दौरान कही। 

चोपड़ा ने कहा, ”मेरे स्पोर्ट में सबसे जरूरी बात दूर थ्रो करना है। वो चीज में सिंपल रखता हूं। उसके लिए खुद को बेहतर करने का प्रयास करता रहता हूं। अभी क्या है कि चीजें काफी बढ़ गई हैं। अनेक एथलीट उस तरफ आकर्षित होते हैं। नई-नई एक्सरसाइज आ गई हैं। स्पोर्ट्स में कॉम्प्लिकेटेड चीजें हो गई हैं। मैं कोशिश करता हूं कि मेरी ट्रेनिंग कॉम्प्लिकेटेड न हो। हर एथलीट की अपनी बॉडी होती है। किसी की कॉपी नहीं कर सकते।”

इसके बाद, चोपड़ा से सवाल किया गया कि ऐसा लगता है कि अब आपको इंडिया के एथलीट से तगड़ी टक्कर मिलेगी। इसपर जेवलिन स्टार ने कहा, ”मैं तो यही चाहता हूं ऐसा हो। मुझे नहीं बल्कि पूरी दुनिया को दिखेगा। इंडिया जेवलिन में सुपरपावर बने। मैं यह भी मानता हूं कि हर एथलीट का टाइम नहीं रहता। एक दिन ऐसा टाइम आता है जब आप धीरे-धीरे रुक जाओगे या कम हो जाएगा। दूसरे एथलीट आपको बीट करेंगे और आगे निकलेंगे। यह चीजें मैंने पहले से एक्सेप्ट कर रखी है। मैं चाहता हूं कि इंडिया की एथलीट ही मुझे बीट करे। हमारे इंडिया का झंडा ही ऊपर रहना चाहिए बस।”

चोपड़ा से पूछा गया कि जब आप प्रतियोगिता में उतरते हो तो हार का डर रहता है। उन्होंने जवाब में कहा, ”मैं हारकर ही यहां तक पहुंचा हूं। 2017 में इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन के लिए बाहर निकला था। मेरा तब पहला डायमंड लीग था। तब से 2022 तक हारा ही हूं। 2022 में डायमंड लीग में पहली बार पोजिनश आई। ऐसा नहीं कि यह एकदम हो गया। 2017 से आप देख सकते हैं कि 2019 में पूरा साल इंजरी की वजह से खेल नहीं सका। 2020 में कोविड के चलते नहीं खेल पाए। 2021 में ओलंपिक था। धीरे-धीरे इम्प्रूव होता है। ऐसा नहीं है कि हम एक दम ही जीत जाते हैं। चीजें मेरे  दिमाग पर इसलिए नहीं चढ़ रही हैं क्योंकि मैंने हार को देखा है। प्रतियोगिता में 30-35 एथलीट खेलने आते हैं। पता नहीं होता कि कब किस का दिन अच्छा हो। काफी चीजें हमारे हाथ में नहीं होतीं।”



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