बस मुई खांसी ही तो थी.. जो पहले तो ठीक हो गई लेकिन फिर लौट आई.. सोचा मामूली सी खांसी है, इलाज करवा लेते हैं लेकिन खांसी डॉक्टरों को लेकर चली गई उनके फेफड़ों के भीतर फैल चुके कैंसर की गांठों तक. ‘कुछ ही महीने बाकी हैं आपके पास, बाकी प्रभु की इच्छा…’ कोमल, धीर गंभीर और मिश्री सी मीठी आवाज वाले रवि प्रकाश मेरे कानों में बोल रहे थे कि ‘डॉक्टरों ने हिचकते हुए कहा… 18 महीने तो आपको जिन्दगी दिलवा ही लेंगे’….. बस 18 महीने… यानी डेढ़ साल!
‘हमेशा से नॉन स्मोकर हूं.. मुझे कैसे हो सकता है कैंसर-वैंसर’ लेकिन तमाम टेस्ट हुए और गांधी जी की पुण्यतिथि वाले दिन 30 जनवरी को डॉक्टरों ने बताया कि आपको लंग कैंसर है… चौथी और आखिरी स्टेज है.. चौथी स्टेज यानी कैंसर एक फेफड़े से दूसरे फेफड़े तक फैल चुका है. ‘पहले ही दिन पता चल गया कि अब जीना इसी के साथ है यानी इसकी सर्जरी नहीं हो पाएगी. मेरे भीतर जो कैंसर है वह कभी ठीक नहीं हो पाएगा… डॉक्टरों ने कहा कि पहले आते तो हम कहते कि 6 महीने जी पाएंगे..’ हिचकिचाते हुए डॉक्टरों ने बताया कि ‘लंग कैंसर के साथ स्टेज 4 में जा चुके व्यक्ति का अब तक का सबसे अधिक का जीवनकाल 6 साल देखा गया है, हम आपको कम से कम 18 महीने तो दिला ही पाएंगे…’
चंद महीने या हफ्ते बाकी हों तो समझ ही नहीं आता… ऐसा लगता है जैसे सामान सब बिखरा पड़ा है और ट्रेन स्टेशन पर आ चुकी है.. और इस ट्रेन में तो चढ़ना ही है.. चढ़ना ही पड़ेगा… क्या समेटें, पीछे जो छूट जाएगा उसे कैसे सिक्यॉर और प्रोटेक्ट करके निश्चिंत हो लें.. और कैसे तो… अपनों को और अपने सपनों को पीछे स्टेशन पर बिखरा पड़ा छोड़कर इस अनजान सफर के लिए निकल पड़ें…
‘सबसे पहली चुनौती थी बेटे की पढ़ाई की. चार महीने पहले ही उसका दिल्ली IIT में एडमिशन हुआ था… ‘इतनी मेहनत से वह पहुंचा था यहां तक. एक महीने में डेढ़ लाख रुपये.. चार साल में 12 लाख रुपये उसका केवल पढ़ाई का खर्च आना था…’ कहते हैं रवि प्रकाश कि यह उनकी सबसे पड़ी चुनौती थी. ‘मुझे तो मर ही जाना था.. लेकिन जो बचा हुआ है, जितना समय बचा हुआ है उसका इस्तेमाल सही से कर लूं… इसी सोच के साथ मैंने 2016 की 30 जनवरी से आगे का जीवन जीना शुरू किया… मौत के डर से तो.. ठीक है.. मैं निपट लूंगा लेकिन और भी बहुत कुछ था जिस पर काम करना था…
‘मैंने खुद को आने वाले समय के लिए तैयार कर लिया’
हर 21वें दिन कीमोथेरेपी होती है… दवा अब कम हुई है, अब हर रोज 1 गोली खानी होती है जो कीमोथेरेपी के जानलेवा सिम्पट्म्स को कंट्रोल करने में भी मदद करती है और कैंसर के सेल्ट को टारगेट करती है… खबर लिखे जाने तक 49 बार कीमोथेरेपी हो चुकी हैं रवि प्रकाश की. 1 जनवरी को रवि प्रकाश का जन्मदिन है और इस दिन भी कीमोथेरेपी होनी है. ‘यह अच्छे से समझ लिया था कि जब मरूंगा तो कैंसर का सेल मेरे शरीर में होगा. मैंने खुद को इसके लिए तैयार किया कि जब तक जिन्दा रहना है इसी के साथ रहना है.’
ह्यूमन सटोरी: रवि प्रकाश अपनी पत्नी और बेटे के साथ
‘दुनिया बहुत सुंदर है.. मुट्ठी वाली मदद में दुआ बहुत होती है….’
बीबीसी के लिए काम करते हुए 10 साल हुए… फ्रीलांस करता हूं लेकिन बीबीसी एक मुश्त रकम महीनेवार देता है जिससे घर खर्च चलता है और बीमारी के इलाज में भी मदद होती है.. बिहार के चंपारण से हूं.. वहीं से जहां से महात्मा गांधी को पहली बार गिरफ्तार किया गया… यहीं से उन्होंने सत्याग्रह शुरू किया था. रहते हैं रांची झारखंड में… जब बीमार हुए तो कैसे यह राज्य उनके साथ खड़ा हुआ और तमाम तरह से मदद की… ‘पैसा, आपकी मानसिक स्थिति, लोगों का सपोर्ट… किसी व्यक्ति को कैंसर के साथ जीने और इससे निरंतर लड़ते रहने में इन सबका योगदान होता है’
‘एक मशहूर पत्रकार ने मुझे लेकर एक पोस्ट लिखी.. उसके बाद कुछ लाख रुपये जमा हुए.. इसके अलावा जिस जिस व्यक्ति को पता चला, चाहे वह पुराने एंप्लॉयर रहे हों या कलीग.. किसी ने पैसे से मदद भेजी और किसी ने डॉक्टरी संपर्क में मदद करने की कोशिश की.. झारखंड सरकार की मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी योजना से वित्तीय मदद मिली.. सीधा हॉस्पिटल में पैसा पहुंच जाता… ये सब सपोर्ट ऐसा मिला कि सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ी कि कितना पैसा चाहिए और ये कहां से आएगा.. ‘ कहते हैं- जब सबसे खराब बीमारी हुई तो पता चला कि दुनिया इतनी खूबसूरत है. क्राउड फंडिग के लिए दोस्त लोगों ने कहा तो उन्होंने मना कर दिया. मगर दोस्तों ने कहा कि – मुट्ठी वाली मदद में दुआ बहुत होती है… सर करने दीजिए.
‘देशद्रोही हो बीबीसी के लिए काम करते हो इसलिए हो गया कैंसर’
रवि प्रकाश लगातार बोलते जा रहे थे और मैं सोच रही थी कि सकारात्मकता से लबालब यह शख्स अपने नाम के मुताबिक ही हैं… रवि का प्रकाश… कहते हैं दुर्भाग्य थोड़ी है कैंसर होना.. रामकृष्ण परमहंस को भी था आर के मिशन दुनिया में क्या नहीं कर रही… जब बेटे का चयन आईआईटी दिल्ली में हुआ तब तो मैंने नहीं कहा था भगवान से कि उसका सेलेक्शन क्यों हुआ! कहते हैं कि ‘कई बार लोग ट्रोल करते हैं सोशल मीडिया पर. कहते हैं तुम तो देशद्रोही हो. तुम बीबीसी के लिए काम करते हो इसलिए हो गया कैंसर.. तुमको यही होना था..’ सच तो यही है.. दुनिया कठोर भी है और कोमल भी… हिंसक भी सरंक्षक भी…
ह्यूमन स्टोरी: कैंसर वॉरियर रवि प्रकाश की
दुनिया को अब दे रहे हैं समझ, मदद और सिस्टम में बदलाव
2016 की 30 जनवरी थी और अब 2024 की 30 जनवरी आने वाली है… रवि प्रकाश अपने नाम के मुताबिक ही जग जहान में रोशनी फैला रहे हैं.. अलख जगा रहे हैं.. आगाह कर रहे हैं… सीख रहे हैं और सिखा रहे हैं कैंसर पूर्व से लेकर कैंसर बाद तक के सफर में लोगों के लिए मदद का एक मजबूत हाथ हैं… 45 साल के थे जब बीमारी का पता चला. अब 48 के हो जाएंगे 1 जनवरी 2024 को. कहते, ‘कल ही बेटे को मैंने कहा कि हम हॉस्पिटल जाते हैं और लौट कर आ जाते हैं.. किसी दिन मैं नहीं लौट कर आऊंगा साथ.. एक न एक दिन तो ऐसा होगा ही.. अपने पास ज्यादा टाइम नहीं है..’ अपने बेटे और पत्नी संगीता की इतनी काउंसलिंग कर चुका हूं कि मेरे जाने के बाद उदासी न रहे.. दर्द न रहे… डिनायल मोड में हम नहीं हैं.. हम इस सबको लेकर स्वीकार्यता बढ़ा रहे हैं.. कल ही इस डिस्कशन के बाद हमने केक खाया.. कहते हुए ठहाका लगाकर हंसे रवि प्रकाश…
कहते हैं टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल से मेरा ट्रीटमेंट चलता है लेकिन लोगों को नहीं पता कहां जाएं कैसे ट्रीटमेंट करवाएं.. कई बार लोग नहीं जानते कि क्या प्रोसेस है कैंसर पता चलने के बाद क्या करना चाहिए.. दोस्त साथ छोड़कर भाग भी जाते हैं.. कई बार गहने जमीने बेचने पड़ जाते हैं लोगों को.. यह सब अहसास होते ही मैंने कैंसर पेशेंट्स के लिए काम करना शुरू किया.. लंग कनेक्ट इंडिया कनेक्ट नामक इनीशिएटिव से जुड़े.. 2018 से लंग कैंसर को केंद्र में रखकर हम पेशेंट्स की ए टू जेड हेल्प करने की कोशिश करते हैं…
‘भारत में पेशेंट एडवोकेसी पर बात नहीं होती है..हर केस अलग होता है.. सरकारी योजनाओं में पेशेंट्स की असल कंडिशन का सही जिक्र या प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता.. ‘ कहते हैं कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से बात करके झारखंड सरकार की मुख्यमंत्री गंभीर बीमारी योजना के पांच लाख रुपये बढ़ाने के लिए भागदौड़ की बातचीत की… कोशिशें रंग लाईं और आज की तारीख में यह योजना 10 लाख रुपये हो गई.. रवि प्रकाश की कोशिशें जारी हैं…
‘कुछ सपने आंखों में हैं लेकिन चले जाएंगे साथ ही मेरे…’
‘कुछ किताबें लिखना चाहते हैं… मैं अपने पोते या पोती को स्कूल बस तक छोड़ना चाहता था… मगर संभव नहीं लगता यह… और हां, घर बनाना था… आंखों में सपने थे और सपने अब भी हैं. लेकिन जिन्दगी कितना वक्त देगी.. यह नहीं पता.. लेकिन रवि यह भी कहते हैं कि दुनिया भर से लोग संपर्क करते हैं और कहते हैं बताइए क्या करना है कैसे करना है कैंसर से जुड़ी अहम डिस्कशन होती हैं… मैं एक माध्यम बना.. यह अच्छा लगता है…’
मौत यूं तो जिन्दगी का शाश्वत सत्य और अंतिम परिणति है. जन्म से लेकर जीवन का जो काउंटडाउन शुरू होता है, वह मृत्यु पर पहुंचकर ही विराम लेता है. मगर यह विराम कब होगा, यह हमें पता नहीं होता.. जीवन की खूबसूरती इसी बीच के सफर में परवान चढ़ती है… रवि अपना प्रकाश जग में फैला रहे हैं.
.
Tags: Cancer Survivor, Hemant soren, Life, Tata
FIRST PUBLISHED : December 26, 2023, 15:53 IST