हाइलाइट्स
जीन थेरेपी वो मेडिकल एप्रोच है, जो अंडरलायिंग जेनेटिक प्रॉब्लम को ठीक करके डिजीज का इलाज करती है या उसे रोकती है.
जेनेटिक और संक्रामक डिजीज में इन्फेंट जीन थेरेपी बहुत फायदेमंद साबित हो सकती है.
इस थेरेपी से जुड़े कुछ रिस्क भी हो सकते हैं, उनका ध्यान रखना भी जरूरी है.
Infant Gene therapy: जीन थेरेपी वो मेडिकल एप्रोच है, जो अंडरलायिंग जेनेटिक प्रॉब्लम को ठीक करके डिजीज का इलाज करती है या उसे रोकती है. जीन थेरेपी की मदद से डॉक्टर दवाओं या सर्जरी की जगह व्यक्ति की जेनेटिक स्थितियों में बदलाव कर के डिसऑर्डर का इलाज कर सकते हैं. जीन थेरेपी में फॉल्टी जीन को रिप्लेस किया जाता है और डिजीज को राहत पाने या शरीर इससे फाइट करने की क्षमता को बढ़ाने के लिए नए जीन को ऐड किया जाता है.
जीन थेरेपी में कैंसर, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हार्ट डिजीज, डायबिटीज, हीमोफिलिया और एड्स जैसी कई तरह की बीमारियों के इलाज का दावा किया गया है। आइए जानते हैं कि इन्फेंट जीन थेरेपी क्या है और जानिए इस थेरेपी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें.
इन्फेंट जीन थेरेपी क्या है?
नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) के अनुसार जेनेटिक और संक्रामक डिजीज के उपचार के लिए जीन थेरेपी की एप्लीकेशन के कई लाभ हो सकते हैं, अगर इसे नवजात शिशुओं में किया जाए. नवजात शिशुओं के सेल्स पर अंडरलायिंग डिजीज के मिनिमल एडवर्स इफेक्ट होते हैं. शिशुओं के स्मॉल साइज और भविष्य में अधिक ग्रोन के कारण, जीन थेरेपी बड़े बच्चों या वयस्कों की तुलना में नवजात शिशुओं में अधिक सफल हो सकती है.
ये भी पढ़ें: स्टेम सेल थेरेपी क्या है? किन-किन बीमारियों में यह थेरेपी है मददगार
नवजात शिशुओं में अम्बिलिकल कॉर्ड ब्लड की उपस्थिति हेमटोपोइएटिक स्टेम सेल के जेनेटिक मॉडिफिकेशन के लिए एक यूनिक और अतिसंवेदनशील टारगेट प्रदान करती है. यदि प्रीनेटल डायग्नोज किया जाता है और उपयुक्त टेक्निकल और रेगुलेटरी आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है, तो नियोनेटल पीरियड के दौरान कई अन्य मेटाबोलिक और संक्रामक डिसऑर्डर का भी जीन थेरेपी द्वारा इलाज किया जा सकता है.
इन्फेंट जीन थेरेपी से जुड़े रिस्क्स के बारे में जानें
मायो क्लिनिक की मानें तो जीन थेरेपी के कुछ रिस्क भी हो सकते हैं. जीन को आसानी से सेल्स में इन्सर्ट नहीं किया जा सकता है. इसकी जगह इसे एक कैरियर के माध्यम से डिलीवर किया जाता है जिसे वेक्टर कहा जाता है. इसके कारण होने वाले रिस्क्स इस प्रकार हैं.
-अनचाहे इम्यून सिस्टम रिएक्शन.
-गलत सेल्स को टारगेट करना.
-वायरस के कारण इंफेक्शन होना.
-ट्यूमर के होने की संभावना का बढ़ना.
ये भी पढ़ें: Conjunctivitis in winter: ठंड में अधिक होती है ‘पिंक आई’ की समस्या, जानें कैसे करना है बचाव
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
FIRST PUBLISHED : December 30, 2022, 06:00 IST