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नई दिल्ली. मुख्य सतर्कता अधिकारी (CVC), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) के मुखिया की नियुक्ति के लिए समिति के गठन का कानून है. उसी तर्ज पर चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों को करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 में समिति यानी कॉलेजियम बनाने का फैसला दिया था. उसके अनुसार केंद्र सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और टर्म ऑफ ऑफिस) विधेयक को 10 अगस्त 2023 को राज्यसभा में पेश किया. संसद के विशेष अधिवेशन में इस पर चर्चा होगी. इस प्रस्तावित कानून में 5 अध्यायों में 20 प्रावधान हैं. इस कानून को संसद से मंजूरी के बाद चुनाव आयुक्तों के बारे में 1991 का पुराना कानून निरस्त हो जायेगा. प्रस्तावित कानून के कुछ प्रावधानों पर विवाद भी हो रहा है. इस पूरे मामले से जुड़े कानूनी पहलुओं को 5 प्वाइंट्स में समझा जा सकता है-
1. सर्च और सेलेक्शन कमेटी- नए कानून के तहत कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में बनी सर्च कमेटी में सचिव स्तर के दो अन्य अधिकारी रहेंगे. भारत सरकार में सचिव पद पर पदस्थ, ईमानदार और चुनावों को कराने का अनुभव रखने वाले उम्मीदवारों को वरीयता मिलेगी. ऐसे पांच काबिल उम्मीदवारों के नाम प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति के सामने रखे जाएंगे. समिति के अन्य सदस्य लोकसभा में विपक्ष के नेता (LoP) रहेंगे. अगर विपक्ष के मान्यता प्राप्त नेता नहीं हों तो फिर लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को समिति का सदस्य बनाया जायेगा. समिति के तीसरे सदस्य के तौर पर प्रधानमंत्री किसी केंद्रीय मंत्री को नामित करेंगे. चयन समिति अपनी प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से स्थापित करेगी.
2. नए कानून से चुनाव आयुक्तों की शक्तियां कम होने के आरोप- चुनाव आयुक्तों से जुड़े शक्तियां, विशेषाधिकार और विश्वसनीयता के तीन बड़े मसले हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त संविधान के अनुच्छेद-324 के तहत चुनावों का संचालन करते हैं. संविधान के प्रावधानों के अनुसार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयुक्तों को अनेक अधिकार दिए गए हैं. इस कानून के बनने से शक्तियों और विशेषाधिकार में विशेष कमी आने की संभावना नहीं है. वर्तमान व्यवस्था के अनुसार केंद्र सरकार मनमाने तरीके से सीईसी और ईसी की नियुक्ति करती है. समिति के माध्यम से नियुक्ति होने पर सीईसी और ईसी की विश्वसनीयता बढ़ने की उम्मीद है. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए समिति का कानून संसद से बनाने के लिए कहा गया था.
3. सीईसी के दर्जे में कमी का आरोप- राष्ट्रपति सचिवालय द्वारा जारी प्रोटोकॉल की नवीनतम नोटिफिकेशन के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के जज नवें स्थान पर और मुख्य चुनाव आयुक्त 9ए रैंक पर माने जाते हैं. दूसरी तरफ कैबिनेट मंत्री सातवें नंबर पर और केंद्र सरकार के राज्यमंत्री दसवीं रैंक पर आते हैं. कैबिनेट सेक्रेटरी का दर्जा 11वें नंबर पर है. प्रस्तावित कानून की धारा-10 (1) के अनुसार सीईसी और ईसी का वेतन, भत्ते और सेवा-शर्तें कैबिनेट सचिव के दर्जे की रहेंगी. कैबिनेट सचिव के बराबर वेतन, भत्तों और सेवा-शर्तों के नए कानून से सीईसी के प्रोटोकॉल में फर्क नहीं पड़ेगा, जो सुप्रीम कोर्ट के जज के तुरंत बाद है. चुनाव की नोटिफिकेशन जारी होने के बाद संवैधानिक पदों पर आसीन सीईसी और ईसी के पास राज्य और केंद्र सरकार के अफसरों को निर्देश देने की समस्त शक्तियां विद्यमान रहेंगी. इन्हें नए कानून से कम करने की कोशिश की भी गई तो उन्हें संविधान विरोधी मानते हुए सुप्रीम कोर्ट से निरस्त किया जा सकता है.
4. सीईसी को मनमाने तरीके से हटाने के आरोप- चुनाव आयुक्त राष्ट्रपति को पत्र लिखकर अपने पद से त्यागपत्र दे सकते हैं. प्रस्तावित कानून की धारा-11 (2) के अनुसार सीईसी और ईसी को संविधान के अनुच्छेद-324 (5) के तहत ही हटाया जा सकता है. इसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने का जो सिस्टम है. उसी प्रक्रिया से सीईसी को हटाया जा सकता है. प्रस्तावित कानून में सीईसी के साथ अन्य आयुक्तों को भी अनुच्छेद-324 (5) के दायरे में लाने से उनके कार्यकाल की सुरक्षा बढ़ी है. इसलिए प्रस्तावित कानून के प्रावधानों के अनुसार सीईसी और ईसी को कैबिनेट सचिव की तरह सरकार मनमाने तरीके से हटा नहीं सकती.
5. संसद में कानून पारित होने से तस्वीर साफ होगी- संसद में पेश विधेयकों के मसौदे के आधार पर धाराणायें बनाई जा सकती हैं. संसद से पारित कराने से पहले प्रस्तावित बिल के प्रावधानों को सरकार संशोधित कर सकती है. इसलिए संसद से कानून पारित होने और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही फाइनल तस्वीर सामने आएगी. अगले आम चुनावों में इस कानून से बहुत क्रांतिकारी बदलाव होने की उम्मीद नहीं है. सीवीसी, सीबीआई और ईडी चीफ की मुखिया की नियुक्ति में समिति का सिस्टम मौजूद होने के बावजूद अनेक तरह के विवाद बढ़ रहे हैं. इसलिए सिर्फ कानून या नियुक्ति की प्रक्रिया बनाने से चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को बढ़ाना मुश्किल काम है. इस कानून के बनने के बाद भी ऐसे निष्पक्ष और योग्य लोगों का चयन करना होगा जो पक्ष-विपक्ष की सियासत में उलझनें की बजाए स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की संवैधानिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करें.
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