ऐप पर पढ़ें
मार्च 2018 में कथित रूप से एमबीबीएस की कॉपी बदलने के खेल में चौधरी चरण सिंह विवि ने दो कर्मचारियों को क्लीन चिट दे दी है। इन दोनों कर्मचारियों के खिलाफ जांच समिति को कोई सुबूत नहीं मिले। खुलासे के बाद से ये दोनों कर्मचारी निलंबित चल रहे थे। पूरे प्रकरण में शासन स्तर से बनी एसआईटी भी साढ़े पांच साल में किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंची है। हालांकि एसआईटी ने तत्कालीन तीन अधिकारियों को काम में लापरवाही का दोषी माना था। एसआईटी इसके लिए मुकदमा चलाने की अनुमति भी मांग चुकी है।
सोमवार को कुलपति प्रो.संगीता शुक्ला की अध्यक्षता में हुई कार्यपरिषद की बैठक में विवि द्वारा बनी जांच समिति की रिपोर्ट पेश हुई। रिपोर्ट में पवन कुमार एवं सलेश चंद को दोषमुक्त माना है। समिति ने माना कि इन दोनों कर्मचारियों के खिलाफ कॉपी बदलने में सुबूत नहीं हैं। पवन कुमार 2018 में उत्तर पुस्तिका विभाग में प्रभारी थे। घटना के बाद ही विवि ने आरोपित स्थाई कर्मचारियों को निलंबित कर दिया था, जबकि अस्थाई कर्मियों को नौकरी से हटा दिया था। कॉपी बदलने के खेल में रिटायर कर्मचारियों के नाम भी थे। विवि ने 26 अगस्त 2019 को विशेष समिति बनाई थी जिसे पवन कुमार एवं सलेक चंद की प्रकरण में संलिप्तता की जांच करनी थी।
दावे बड़े किए, साबित कुछ नहीं हुआ
एसटीएफ ने मार्च 2018 में मुख्य आरोपी कविराज को गिरफ्तार करते हुए सीसीएसयू कैंपस में एमबीबीएस की परीक्षा के बाद कॉपियां बदलने के खेल का दावा किया था। आरोप था कि कविराज उत्तर पुस्तिका विभाग के कर्मचारियों के साथ मिलकर कॉपियां बाहर लिखवाकर बदल देता था। केस में एसटीएफ ने कुछ कॉपियां भी जब्त करने का दावा करते हुए इसके लिए प्रति छात्र डेढ़ से दो लाख रुपये लेने के आरोप लगाए थे। एसटीएफ ने केस में महीनों तक विवि के रिकॉर्ड खंगाले और दावा किया था कि कविराज और आरोपी कर्मचारियों ने आठ सौ से अधिक कॉपियां बदलवाते हुए फर्जी ढंग से डॉक्टर तैयार कराए हैं।
केस में मुजफ्फरनगर के मेडिकल कॉलेज के छात्रों के नाम जुड़े और इसके तार हरियाणा से जोड़े गए। एसटीएफ ने आरोपी छात्र, कर्मचारी एवं डॉक्टरों को गिरफ़्तार कर जेल भेज दिया था। बाद में विवि की सिफारिश पर शासन इसकी जांच एसआईटी को सौंपी। एसआईटी ने 37 कर्मचारियों से पूछताछ की। आखिर में तीन अधिकारियों को लापरवाही का दोषी माना। हालांकि आज तक इसकी पुष्टि बाकी है कि एमबीबीएस में कथित रूप से कॉपी बदल गई थी या नहीं। यदि कॉपियां बदली गईं तो इसके वास्तविक दोषी कौन हैं। 2018 में जिन अधिकारी एवं कर्मचारियों का कॉपियां चेक कराने में सीधा हस्तक्षेप था उन पर एसआईटी ने हाथ तक नहीं डाला। गिरफ्तार आरोपियों ने भी पुलिस पूछताछ में इनके नामों को उजागर किया था। कविराज को बहुत पहले कोर्ट जमानत दे चुका है।