01
‘जग के घोर अंधेरे में, रोशनी मेरी मां, फ़ीके-फ़ीके पकवानों की, चासनी मेरी मां.. डरे-सहमों के भीड़ में, शरनी मेरी मां, नली-गटरों के इस जग में, त्रिवेणी मेरी मां’. उत्साही “उज्जवल” की लिखी यह कविता मां के हर उस रूप को बताती है जो एक बच्चा अपनी मां के लिए सोचता है. मदर्स डे पर आप अपने बचपन की यादों से लेकर अब के साथ को इस कविता के माध्यम से आसानी से बयां कर सकते हैं. Image : Canva