Friday, July 5, 2024
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Netaji Subhas Chandra Bose: क्‍या वाकई जापानी मंदिर में रखी हैं नेताजी की अस्थियां, जानें कैसे 126 साल बाद भी एक मंदिर में जिंदा हैं सुभाष चंद्र बोस


टोक्‍यो: नेताजी सुभाष चंद्र बोस, वह स्‍वतंत्रता सेनानी हैं जो आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा,’ इस नारे के साथ भारतीयों में आजादी का जोश जगाने वाले नेताजी की आज 126वीं जयंती है। कहा जाता है कि 18 अगस्‍त 1945 को ताइवान में हुए एक प्‍लेन क्रैश में नेताजी का निधन हो गया था। उनकी मृत्‍यु आज भी रहस्‍य बनी हुई है। उनके परिवार की तरफ से हर बार इस रहस्‍य से पर्दा उठाने की अपील की जाती है। जापान से उनका गहरा नाता रहा और आज भी यहां के एक मंदिर में नेताजी की अस्थियों को सहेजकर रखा गया है। जितना सम्‍मान नेताजी को भारत में नहीं मिला, शायद उससे कहीं ज्‍यादा इस देश में मिला। जापान का रेकोंजी मंदिर वह जगह है जहां पर आज भी नेताजी को श्रद्धांजलि दी जाती है।

डीएनए टेस्टिंग की अपील

नेताजी भारत के इकलौते ऐसे स्‍वतंत्रता सेनानी थे जो आजादी की लड़ाई को देश की सीमाओं से बाहर लेकर गए थे। उनकी बेटी अनिता फाफ ने अगस्‍त 2022 में उनकी पुण्‍यतिथि के मौके पर अपील की थी कि उनके पिता के अवशेषों को भारत लेकर आया जाए। अनिता ने अवशेषों की मदद से डीएनए टेस्टिंग की बात भी कही। उनका मानना है कि इस डीएनए टेस्टिंग के साथ ही सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे। नेताजी की रहस्‍यमय मौत की जांच के लिए जापान ने भी एक जांच आयोग बनाया था। ताइवान में उड़ रहे एक प्‍लेन में ब्‍लास्‍ट के बाद इस जोशीले क्रांतिकारी के निधन की बात कई इतिहासकार कहते हैं। उनका मानना है कि इस ब्‍लास्‍ट में कुछ जापानी भी मारे गए थे।
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मंदिर में कैसे पहुंची अस्थियां
सन् 1965 में जापान में नेताजी के निधन की जांच की विस्‍तृत रिपोर्ट आई। साल 2016 इस रिपोर्ट को सबके सामने लाया गया था। रिपोर्ट की मानें तो उनका अंतिम संस्‍कार ताहिकू प्रीफेक्‍चर में किया गया था। यह जगह अब ताइवान की राजधानी ताइपे में है। नेताजी के अवशेषों को उस समय उनके करीबी साथी एसए अय्यर को सौंप दिया गया था। नेताजी का बाकी सामान जापान की राजधानी टोक्‍यो में भारतीय स्‍वतंत्रता संघ से जुड़े राममूर्ति को सौंप दिया गया था।

8 सितंबर 1945 को राममूर्ति को यह सामान इंपीरियल हेडक्‍वार्ट्स पर मिला था। इसके छह दिन बाद यानी 14 सितंबर को रेंकोजी मंदिर में नेताजी की अस्थियों को रख दिया गया। भारतीय दूतावास की तरफ से बताया गया था कि अवशेषों को करीब 9 इंच बाई 6 इंच वाले डब्‍बे में रखा गया है। ये डिब्‍बा या तो लकड़ी का बना है या फिर टिन का है।
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मुखर्जी कमीशन का जवाब
एक सुराही में नेताजी के अवशेष संभालकर रखे गए थे। मंदिर के पुजारी केयोई मोचिज‍ुकी ने कसम खाई कि जब तक उनकी अस्थियों को भारत नहीं ले जाया जाता, तब तक वह इन अस्थियों की देखभाल करते रहेंगे। हर साल इस मंदिर में नेताजी की पुण्‍यतिथि पर मंदिर के मुखिया की तरफ से एक प्रार्थना सभा का आयोजन होता है। इस प्रार्थना सभा में जापान और भारत के कई राजनयिक अधिकारी शामिल हाते हैं।
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रेंकोजी मंदिर एक बौद्ध मंदिर है जहां पर निचरिन बुद्धिज्‍म को मानने वाले आते हैं। भारत सरकार की तरफ से इन अस्थियों के रखरखाव के लिए हर साल रकम अदा की जाती है। साल 1967 से 2005 तक भारत सरकार मंदिर को 52,66,278 रुपए दे चुका है। हालांकि साल 2005 में मुखर्जी कमीशन की रिपोर्ट में यह कहा गया था कि

हर कोशिश हुई असफल
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने सन् 1950 में अवशेषों को भारत लाने की को‍शिश की। मगर उस समय बोस के परिवार ने उनकी मौत को ही स्‍वीकारने से इनकार कर दिया था। ऐसे में वह प्रयास असफल हो गया। सन् 1979 में तत्‍कालीन भारतीय पीएम मोरारजी देसाई से जापानी मिलिट्री इंटेलीजेंस ऑफिसर ने कॉन्‍टैक्‍ट किया। ये ऑफिसर नेताजी की इंडियन नेशनल आर्मी (INA) के करीबी साथी थी। उन्‍होंने देसाई से अनुरोध किया कि अस्थियों को भारत ले जाएं। एक दो साल में मसले के समाधान का वादा भी किया गया। लेकिन कुछ नहीं हुआ क्‍योंकि देसाई अपना पद गंवा चुके थे। साल 2000 में आखिर बार उस समय के पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने भी एक असफल कोशिश की थी।



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