
पद्म पुरस्कार भारतीय लोकतंत्र के लिए महज एक अवॉर्ड ही नहीं हैं बल्कि एक आम आदमी को उसकी विशिष्ट उपलब्धियों के लिए एक अलग पहचान देने वाला सबसे बड़ा सिविलियन अवॉर्ड है. ये पुरस्कार है उस शख्सियत के लिए जो अपनी कला, संस्कृति, कौशल, विचार और कार्य से देश को एक सूत्र में पिरोने का काम करते हैं. पीएम नरेंद्र मोदी ने इन पद्म पुरस्कारों को आम आदमी का पद्म पुरस्कार बनाने का लक्ष्य हासिल कर ही लिया है. जनवरी 2021 को साल की अपनी पहली मन की बात में पीएम मोदी ने देशवासियों को कहा था कि वो ज्यादा से ज्यादा भारत के उन अनजाने चहरों के बारे में जाने जिन्होने अपने निजी स्वार्थ से परे हट कर समाज के लिए काम करते रहे हैं. इसके बाद पीएम मोदी ने सोशल मीडिया पर जा कर अपील की कि देश का आम आदमी ऐसे लोगों को पद्म पुरस्कारों के लिए नामांकित करें जिनकी जिंदगी बाकियों के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत रही है. पीएम मोदी ने इसका नाम दिया पीपुल्स पद्म .
पीएम मोदी ने बनाया पद्म को जनता का पुरस्कार
पद्म पुरस्कारों में ऐतिहासिक परिवर्तन 2016 में आया जब मोदी सरकार ने इसके नामांकन की प्रक्रिया को आम लोगों के हाथ सौंप दिया. कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी आम आदमी का नाम इन पुरस्कारों के लिए सामान्य तरीके से ऑनलाइन नामांकित कर सकता है. इससे पुरस्कारों में न सिर्फ पारदर्शिता आई बल्कि इससे दूर दराज के क्षेत्रों में रहने वाले अनजाने हीरो को पहचानने में भी मदद मिलनी शुरु हो गई. अब तो आलम ये है कि सरकारी वेबसाइट पर कोई भी व्यक्ति खुद को भी नामांकित कर सकता है. 2018 में जनता का पद्म आंदोलन बनाने की दिशा में एक और कदम उठाया गया. पीएम मोदी की पहल पर सरकार ने पद्म क्वीज प्रतियोगिता शुरु की. इसके विजेताओं को पद्म पुरस्कार समारोह में जाने का मौका भी मिलता है. एक वॉल ऑफ विश भी बनाई गई है जिसमें लोग पद्म विजेताओं को व्यक्तिगत कार्ड भी भेज सकते हैं.
भारत सरकार का गृह मंत्रालय इसी पीपुल्स पद्म पुरस्कारों को अमली जामा पहनाने के अपने लक्ष्य को पूरा करने में लगा है. 2020 में कोरोना के कारण पद्मा पुरस्कार तो दिए नहीं जा सके, लेकिन गृह मंत्रालय ने सभी विभागों को निर्देश दिया कि इन पुरस्कारों के लिए योग्य लोगों की पहचान करें. खासकर महिलाओं , समाज के कमजोर वर्गों, एससी, एसटी समुदाय, दिव्यांगों और बिना किसी नीजि स्वार्थ के सामाजिक क्षेत्र में काम कर रहे लोगों की पहचान करन के आदेश दिए गए. पिछले कुछ सालों में मोदी सरकार की कोशिश यही रही है कि लोगों की पहचान से ज्यादा उनके काम को देख कर पद्म पुरस्कार पाने वालों की सूचि तैयार की जाए. इसलिए विजेता तय करने के लिए पुरानी लीक से हट कर आम आदमी से राय शुमारी की जाने लगी, जबकि पहले जाने माने लोगों को ही जाने माने लोगों के प्रस्ताव से ही पद्म पुरस्कार दे दिए जाते थे. इसलिए पद्मा पुरस्कार अब जनता का आंदोलन बन गया है और जाहिर है कि ये जनभागिदारी नया भारत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
पद्म पुरस्कारों का इतिहास
पद्म पुरस्कारों की शुरुआत 1954 में हुईं थीय तब कुल 49 लोगों को इस सम्मान से नवाजा गया था. नेहरु सरकार ने भारत रत्न और पद्मविभूषण पुरस्कारों की शुरुआत की थी. पद्म विभुषण को पहले, दूसरे और तीसरे वर्ग में बांटा गया था, जिन्हें 8 जनवरी 1955 के राष्ट्रपति की अधिसूचना के बाद पद्म विभुषण, पद्म भूषण और पद्मश्री के नाम से जाना जाने लगा. हर साल 26 जनवरी को इन पुरस्कारों का ऐलान होता है. विजेताओं को राष्ट्रपति हर साल साल एक सर्टिफिकेट और एक मेडल देती हैं. पीएम मोदी ने तो परंपरागत लीक से हटते हुए अपने राजनीतिक प्रतिद्वदियों को भी पद्मा पुरस्कारों से सम्मानित करना शुरु कर दिया है. साल 2023 में मुलायम सिंह यादव, पहले शऱद पवार, देवे गौड़ा, तरुण गोगोई जैसे विरोधियों को पद्म विभुषण और प्रणव मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित कर पीएम मोदी ने भी एक मिसाल कायम की है.
2020 के पद्म पुरस्कार विजेताओं को 8 नवंबर 2021 में राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया गया था. इसमें 7 को पद्मविभुषण, 16 को पद्मभूषण और 118 को पद्मश्री पुरस्कारों से नवाजा गया. इन पुरस्कारों की देश भर में खूब चर्चा हुई क्योंकि इसमें पुरस्कार विजेताओं की लिस्ट देश और समाज के हर वर्ग से और हर इलाके से आए थे. इन पुरस्कारों के विजेताओं ने देश की जनता के साथ सीधा तार जोड़ा क्योंकि अब तक जिन्हे पद्मा पुरस्कार मिलते आए थे वो समाज के प्रबुद्ध वर्ग से आते थे. इसी तर्ज पर 9 नवंबर 2021 को 2021 के पद्मा पुरस्कार विजेताओं को सम्मानित किया गया. इसमें 7 पद्मविभुषण, 10 पद्म भूषण और 102 पद्मश्री पुरस्कारों से नवाजे गए थे. इन दोनों सालों में पद्मा पुरस्कार विजेता बहुत ही पिछड़े और दूर दराज में रहने वाले लोगों के बीच से आते थे. 2023 में भी इसी तर्ज पर 106 पद्मा विजेताओं को सम्मानित किया गया है.
गरीब और पिछड़े समाज में अनुठा काम करने वालों को तरजीह
तुलसी गौड़ा को 2020 में पद्मश्री मिला. कर्नाटक के पक्काली आदिवासी समुदाय से आने वाले पर्यावरणविद ने 30000 पौधे लगाए और उन्हें जंगल का इनसाइक्लोपिडिया भी कहा जाता है. उनके साथ ही मैंगलुरु के संतरा बेचने वाले हरेकला हजब्बा जिन्होने अपनी कमाई से बचत कर अपने गांव में एक स्कूल बनाया, केरल के आचार्य एम के कुंजोल जिन्होने दलितों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और ट्रीनिटी साईउ जिन्हें मेघालय में हल्दी की ट्रीनीटी कहा जाता है और महिलाओं की मदद से एक अपने राज्य में जैविक खैती की शुरुआत की है. इसी तर्ज पर 2021 में मधुबनी की पेंटर दुलारी देवी , ओडिशा में नंदा सर के नाम से मशहूर नंदा प्रुश्टी, असम के गोलपारा से बीरबाला राभआ ने पद्मश्री तो जीता ही, लेकिन मोदी सरकार ने ट्रांसजेंडर लोक नृत्यांगना मनजम्मा जोगाती को भी पुरस्कार दे कर देश भर में एक अनुठा संदेश जरूर दे दिया. हालांकि मोदी सरकार तमिलनाडू की ट्रांसजेंडर नर्तकी नटराज को 2019 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कर पहली ट्रांसजेंडर विजेता बनाया था.
पद्म पुरस्कारों में अब लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होता. 2020 में 33 पद्म विजेता महिलाएं थी तो 2021 मे 29 महिलाओं को पद्मा पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. पीएम मोदी की कोशिश यही थी कि समाज के हर वर्ग और हर क्षेत्र को पद्मा पुरस्कारों में तरजीह मिले और खास कर उन इलाको में सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में काम करने वाले अनजाने लोगों को इन पुरस्कारों के दायरे में लाया जाए. उन लोगों को सम्म्नित किया जाए जिन्होने गुम होती कला, भाषा, संस्कृति को नया जीवन दिया है, विल्लु पट्टु-तमिलनाडु की विलुप्त होती कहा नी सुनाने की कला, पॉटलोई-मणिपुर की बुनाई का तरीका, गुस्साडी-तोलेंगाना का आदिवासी नृत्य जैसी कला को विलुप्त होने से बचाना. आज पद्मा पुरस्कार पूरी तरह से लोकतांत्रिक तरीके से दिए जा रहे हैं. भारत के सबसे बड़े असैनिक सम्मान को भारत का कोई भी व्यक्ति पा सकता है. यही देश की अनेकता में एकता की जोत जला रहा है.
(डिसक्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)
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Tags: Padma awards, Pm narendra modi
FIRST PUBLISHED : April 07, 2023, 00:13 IST