अब्बास ने कहा, ‘वर्तमान में बातचीत हमारे मुल्क की जरूरत है। आगे बढ़ने का रास्ता सिर्फ सरकार का नहीं है। अगर आप इसे पूरी तरह सुरक्षा प्रतिष्ठान पर छोड़ देते हैं, तो इसमें कोई प्रगति नहीं होगी। यह एक कदम आगे और दो कदम पीछे हटने जैसा होगा।’ उन्होंने कहा कि एक पहल होनी चाहिए… जैसे ट्रैक II डिप्लोमेसी, जैसे मीडिया, जैसे व्यापार और व्यापारिक संगठन, जैसे शिक्षा। वे भारतीय समाज के भीतर बातचीत कर सकते हैं और अपनी जगह बना सकते हैं।
‘पाकिस्तान को बातचीत की जरूरत’
अतहर ने कहा, ‘इससे भारत सरकार पर यह देखने का दबाव बनेगा कि लोग क्या चाहते हैं। यह वक्त की जरूरत है, बातचीत पाकिस्तान की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि अगर विरोध होता है तो पाकिस्तान अमेरिका और यूरोप को भी इसमें शामिल कर सकता है। अतहर से पूछा गया कि पड़ोसियों के साथ बातचीत कितनी जल्दी संभव हो पाएगी? जवाब में उन्होंने कहा, ‘आप अपने पड़ोसी को नहीं बदल सकते। आखिरकार, उन्हें मेज पर आना ही होगा, भले ही उन्हें लगता है कि वह एक सुपर पावर हैं।’
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‘हमें सिर्फ सेना का इंतजार नहीं करना चाहिए’
अतहर अब्बास ने कहा कि पाकिस्तान की अस्थिरता भारत में भी फैल जाएगी। ‘हमें सिर्फ सेना का इंतजार नहीं करना चाहिए’। इसके अलावा भी अन्य विकल्पों की ओर देखना चाहिए। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ‘बस डिप्लोमेसी’ और परवेज मुशर्रफ की आगरा पहल को याद करते हुए उन्होंने कहा कि अतीत में दोनों देशों ने बातचीत शुरू करने के कई ‘मौके गंवाए हैं’। अपने देश की राजनीतिक अस्थिरता का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे देश के साथ बात करना कठिन होगा जो ‘खुद के साथ युद्ध में है’।