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दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में नियमित शोध कर रहे विद्यार्थियों के लिए अच्छी खबर है। डीडीयू ने नए शोध अध्यादेश के मुताबिक अब नियमित शोधार्थियों को बीच में ही नौकरी मिल जाने पर पीएचडी छोड़ना नहीं पड़ेगा। वे नियमित विकल्प छोड़कर पार्ट टाइम पीएचडी कर सकेंगे। इससे उनकी नौकरी तो जारी रहेगी ही पीएचडी भी पूरी हो जाएगी। डीडीयू के कार्य परिषद ने भी इस पर अंतिम मुहर लगा दी है।
डीडीयू ने यूजीसी के दिशा-निर्देश और एनईपी के प्रावधानों को देखते हुए अपने शोध अध्यादेश में व्यापक बदलाव किया है। पहले शोधार्थी को शोध पूरा होने से पहले ही कहीं नौकरी लग जाने पर नौकरी और अपने शोध में से कोई एक विकल्प चुनना पड़ता था। शोधार्थी बीच मझधार में फंस जाते थे। कोई दूसरा रास्ता नहीं होने के कारण अच्छी नौकरी होने पर बहुत से शोधार्थी अपने शोध अध्ययन की तिंलाजलि दे देते थे। कई छात्रों ने अपनी नौकरी छोड़ना ही बेहतर समझा।
ऐसे में इसका रास्ता निकालने की मांग लंबे समय से उठ रही थी। इसे देखते हुए शोध अध्यादेश में यह बदलाव किया गया है। कुलपित प्रो. पूनम टंडन ने कहा कि नए पीएचडी अध्यादेश में नियमित शोध कर रहे विद्यार्थियों को नौकरी लगने की दशा में सहूलियत दी गई है। उन्हें रिसर्च पार्ट टाइम में पूरा करने का विकल्प मिलेगा। ऐसे शोधार्थी अब नौकरी करते हुए अपने रिसर्च को पार्ट टाइम में पूरा कर सकेंगे।
कार्य आरंभ करने के साथ निरंतरता जरूरी
गोरखपुर विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग की मासिक पत्रिका ‘साहित्य विमर्श’ के पांचवें अंक का विमोचन बुधवार को कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने किया। कुलपति ने कहा कि कार्य प्रारंभ करने के साथ-साथ निरंतरता जरूरी है, अंग्रेजी विभाग ने इसका बखूबी निर्वहन किया है। अधिष्ठाता कला संकाय प्रो. कीर्ति पांडेय ने भी सराहना की। विभागाध्यक्ष प्रो. अजय शुक्ल ने बताया कि इस बार के संपादक शोधार्थी अश्वनी कुमार, दिव्या शर्मा, एमए चतुर्थ सेमेस्टर के विशाल मिश्र तथा द्वितीय सेमेस्टर के आयुष्मान पांडेय रहे।
अज्ञानता का ही एक रूप है अहंकार डॉ. अरुण
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग एवं उप्र संस्कृत संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पालि व्याख्यानमाला के तीसरे दिन नव नालंदा महाविहार विश्वविद्यालय के पालि विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर अरुण कुमार यादव मुख्य अतिथि थे। उन्होंने कहा कि चित्त के साथ ही उत्पत्ति और निरोध मूलक जो धर्म है, वही चेतसिक है। अज्ञानता अहंकार का ही एक रूप है। स्वागत विभागाध्यक्ष प्रो. कीर्ति पाण्डेय, संचालन डॉ. रंजनलता एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. लक्ष्मी मिश्रा ने किया।