ऐप पर पढ़ें
केरल हाईकोर्ट का कहना है कि यौन उत्पीड़न का शिकार सिर्फ लड़कियां ही नहीं, बल्कि लड़के भी होते हैं। दरअसल, उच्च न्यायालय में केरल में माने जाने वाले एक प्रोटोकॉल को याचिका के जरिए चुनौती दी गई थी। इस प्रोटोकॉल के तहत यौन उत्पीड़न के शिकार की जांच के लिए गायनेकोलॉजिस्ट (स्त्री रोग विशेषज्ञ) को बुलाया जाता है।
इस याचिका पर जस्टिस देवन रामचंद्रन सुनवाई कर रहे थे। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने मौखिक तौर पर कहा कि यौन उत्पीड़न का शिकार अधिकांश महिलाएं हुई हैं, लेकिन पुरुषों के साथ यौन उत्पीड़न की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, ‘यौन उत्पीड़न सिर्फ लड़कियों तक ही सीमित नहीं है, ये लड़कों के साथ भी होता है। ये दुर्लभ है, लेकिन संभव है। मुझे पता है कि ऐसा हो रहा है। लेकिन आमतौर पर हम महिलाओं का ध्यान रखते हैं। आमतौर पर किसी कारण से यौन उत्पीड़न के 99 फीसदी पीड़ित महिलाएं होती हैं।’
जज का कहना था कि इस प्रोटोकॉल का मकसद पीड़ितों की मदद करना था, जहां अधिकांश मामलों में शिकार महिलाएं महिलाएं या लड़कियां होती हैं। उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता कि आपको क्यों चिंतित होना चाहिए। हम पीड़ित की मदद के लिए ज्यादा से ज्यादा काम करने की कोशिश कर रहे हैं। इसका आपसे कोई लेना-देना नहीं है और इसका मतलब पीड़ित से है।’
कोर्ट ने यह भी कहा कि यौन उत्पीड़न का शिकार लड़के भी हो सकते हैं। साथ ही कहा कि POCSO के तहत लड़कों के साथ ऐसी घटनाओं में इजाफा भी देखा गया है। जज ने कहा, ‘यह आप मान लेते हैं कि पीड़ित महिलाएं हैं। आपको यह बताना चाहिए कि आप जिन पीड़ितों के बारे में बता रहे हैं, वे सिर्फ महिला पीड़ित हैं।’
उन्होंने आगे कहा, ‘पुरुष, युवा लड़के हैं जिनके साथ उत्पीड़न किया जा रहा है। मैंने हाल ही में ऐसे कुछ मामले देखे हैं। आज के समय में POCSO के मामले में कई लड़के हैं।’
अदालत का कहना है, ‘आपको इसे सामाजित प्रतिबद्धता के तौर पर लेना चाहिए। अगर आपको रात में भी बुलाया जाए, तो जाना चाहिए…। मुझे यह प्रोटोकॉल गलत नहीं लगता है, लेकिन अगर कोई समस्या है, तो हम इन परेशानियों को दूर करेंगे।’ इस याचिका पर अदालत ने 5 मार्च को आगे की सुनवाई का फैसला किया है।