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Ayodhya Ram mandir pran pratishtha: फिजाओं में रामधुन गूंज रही है। शहर-कस्बे से लेकर गांव-गली तक लहरा रही पताकाएं माहौल को भक्तिमय बना रही हैं। अयोध्या में दुनिया भर के हिन्दुओं की भावनाओं को मूर्त रूप मिल रहा है। इस शुभ घड़ी को लाने के लिए तकरीबन 500 साल तक जंग लड़ी गई। उस जंगऔर आजाद भारत में चले राममंदिर आंदोलन के कई किस्से फिजाओं में बिखरे पड़े हैं। ऐसा ही एक किस्सा जुड़ा है राममंदिर आंदोलन के अगुआ ब्रहमलीन महंत अवेद्यनाथ से जिन्होंने एक बार अयोध्या कूच कर चुके नागा साधुओं को रोक लिया था। दरअसल, गोरक्षपीठाधीश्वर इस लड़ाई को वैध तरीके से जीतना चाहते थे। वह एक तरफ इसके लिए जनांदोलन चला रहे थे तो दूसरी ओर कानूनी कार्यवाहियों पर भरोसा भी रखे हुए थे। इसी बीच 1990 में हजारों की संख्या में तीर-धनुष लेकर नागा साधु अयोध्या की तरफ कूच करने लगे तो महंत अवेद्यनाथ ने उन्हें समझा-बुझाकर रोक लिया। गोरक्षनाथ मंदिर ने नागा साधुओं की सेवा कर उन्हें अयोध्या जाने देने के बजाए लौटा दिया था।
अयोध्या में विवादित ढांचे को लेकर 100-200 नहीं बल्कि तकरीबन 500 साल से जंग चल रही थी। राममंदिर निर्माण के लिए एक-दो नहीं कई बार जंग हुई। तमाम लोगों ने कुर्बानियां दी। अयोध्या की इस जंग को जीतने के लिए 80-90 के दशक में तमाम ऋषियों-मनीषियों, साधु-संतों तथा महंतों-पीठाध्सीश्वरों ने खुद को आगे किया। तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ एक मजबूत कड़ी रहे। साधु-संतों ने मंदिर आंदोलन की कमान खुद संभाल ली। धरना-प्रदर्शन, आम-अवाम को जगाने के लिए कथाएं-रामलीलाएं जगह-जगह होने लगी। गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ आंदोलन का नेतृत्व करने वालों में सबसे आगे रहने वालों में शामिल थे।
गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ अयोध्या की इस जंग को हर हाल में जीतना चाहते थे इसके लिए उन्होंने पूरे देश को जगाया। साधु-संतों को एक मंच पर लाने के लिए हिंदू संग का आयोजन कराया। जन-जन में राममंदिर के लिए उत्साह भरा। पर वह हमेशा इस जंग को वैध तरीके से जीतने के पक्षधर रहे। कई बार ऐसे हालात पैदा हुए जब टकराहट होने की आशंका पैदा हुई तो महंत ने आगे बढ़कर उत्साही साधु-संतों और नागरिकों को शांत कराया। वर्ष 1990 में जब महंत अवेद्यनाथ मंदिर आंदोलन में गिरफ्तार किए गए तो बड़ी संख्या में नागा साधुओं ने तीर-धनुष लेकर अयोध्या के लिए कूच कर दिया।
नाथ पंथ के जानकार और महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ.प्रदीप राव ने बताया कि श्री रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए एक तरफ महंत अवेद्यनाथ संसद में आवाज बुलंद कर रहे थे तो दूसरी तरफ उनकी अगुआई में जनांदोलन चल रहा था। उन्हें न्यायालय में चल रही कार्यवाही पर भी पूरा भरोसा था। वे अक्सर कहते थे कि सत्य के आधार पर निर्णय होगा, फैसला राममंदिर के पक्ष में ही आएगा। वह हमेशा संवाद के पक्ष में रहे।