हाइलाइट्स
रिपोर्ट के अनुसार भारत में टीबी की बीमारी महिलाओं के मुकाबले पुरषों में ज्यादा हो रही है.
टीबी के मरीजों के मामले में पहले नंबर पर दिल्ली है यहां प्रति लाख लोगों पर 534 टीबी के मरीज हैं.
Tuberculosis in India: ट्यूबरक्यूलोसिस यानि टीबी की बीमारी को जड़ से खत्म करने का ग्लोबल टार्गेट भले ही साल 2030 है लेकिन भारत में से इसे खत्म करने के लिए साल 2025 तक का लक्ष्य रखा गया है. हालांकि टीबी के बढ़ते मामलों के बाद सिर्फ इस बीमारी को खत्म करना ही चुनौती नहीं है बल्कि पोस्ट टीबी सेहत पर पड़ रहे प्रभाव और उनसे हो रहीं गंभीर बीमारियां भी चिंता पैदा कर रही हैं. टीबी की वजह से कई तरह की डिसेबिलिटी यानि दिव्यांगता भी बढ़ रही है. हाल ही में रिसोर्स ग्रुप फॉर एडुकेशन एंड एडवोकेसी फॉर कम्युनिटी हेल्थ (REACH) और यूनाइटेड स्टेटस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डिवेलपमेंट (USAID) की ओर से जारी की गई ट्यूबरक्यूलोसिस एंड डिसेबिलिटी रेपिड असेसमेंट रिपोर्ट इंडिया 2023 में टीबी के बाद हो रही दिव्यांगता को लेकर काफी चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं.
इस रैपिड अससेमेंट रिपोर्ट के अनुसार 49 देशों में की गईं 131 स्टडीज, जिनमें ज्यादातर भारत में की गई स्टडीज शामिल हैं, इनमें देखा गया है कि पोस्ट टीबी इफैक्ट के रूप में मरीजों में मेंटल हेल्थ के मामले 23.1 फीसदी, रेस्पिरेटरी संबंधी 20.7 फीसदी, मस्कुलोस्केलेटल 17.1 फीसदी, सुनने की शक्ति संबंधी 14.5 फीसदी, द्रष्टि संबंधी 9.8 फीसदी, रेनल के 5.7 फीसदी और न्यूरोलॉजिकल के 1.6 फीसदी मामले देखे गए हैं. हालांकि निम्न-मध्यम आय वाले देशों जैसे भारत-पाकिस्तान आदि में मरीजों में न्यूरोलॉजिकल नुकसान के सबसे ज्यादा 25.6 फीसदी मरीज देखे जा रहे हैं. जबकि अधिक इनकम वाले देशों में रेस्पिरेटरी परेशानियां 61 फीसदी और मेंटल हेल्थ की दिक्कतें 42 फीसदी पाई गई हैं.
टीबी के बाद 3 तरह ही दिव्यांगता
इस रैपिड असेसमेंट के अनुसार टीबी के बाद 3 तरह ही डिसेबिलिटीज देखी गई हैं. पहला जिसमें कोई दिव्यांग व्यक्ति दिव्यांगता के साथ टीबी की चपेट में आता है और टीबी ठीक होने के बाद भी उस दिव्यांगता से ग्रस्त रहता है. दूसरा, टीबी के इलाज के दौरान दिव्यांगता होती है और इलाज बंद होने के साथ ही खत्म भी हो जाती है. तीसरा, ऐसी दिव्यांगता जो इलाज के दौरान शुरू होती है लेकिन टीबी ठीक होने के बाद भी जीवनभर बनी रहती है. रिपोर्ट बताती है कि अधिकांश मामलों में टीबी की चपेट में आने के बाद ही दिव्यांगता देखी गई है, वहीं जो पहले से दिव्यांग हैं, उनमें टीबी संक्रमण के बाद स्थिति और भी गंभीर हो जाती है.
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पोस्ट टीबी दिव्यांगता की ये हैं वजहें
खासतौर पर भारत में पल्मोनरी टीबी के लॉन्ग टर्म प्रभावों को देखने के लिए की गई स्टडी में पाया गया है कि जहां भी टीबी की पहचान कर पाने या उसे डायग्नोस कर पाने में जितनी देरी हुई है, उतनी ही टीबी रोग की गंभीरता बढ़ गई है और श्वांस संबंधी विकलांगता देखी गई है. ऐसा मुख्य रूप ये बुजर्ग पुरुषों में देखा गया है. टीबी के बाद डिसएबिलिटी की दो वजहें हैं, पहली खुद टीबी संक्रमण और दूसरा है टीबी की कुछ दवाएं. एमडीआर टीबी के मामलों में एंटी टीबी ड्रग्स का साइड इफैक्ट ज्यादा देखा गया है जो डिसेबिलिटी के मामलों को बढ़ाता है.
विश्व में 15 फीसदी जनसंख्या दिव्यांग
डब्ल्यूएचओ के द्वारा दिव्यांगता की परिभाषा के अनुसार पूरे विश्व की कुल जनसंख्या के 15 फीसदी लोग किसी न किसी प्रकार की अक्षमता से जूझ रहे हैं. इसमें वातावरण की बाधाओं के कारण सामाजिक भागीदारी से लेकर सामाजिक सेवाओं में सहयोग न कर पाना भी शामिल है. भारत की जनगणना 2011 के अनुसार भारत में 26.8 फीसदी लोग दिव्यांग हैं. हालांकि समय के साथ और बुजुर्गों की संख्या बढ़ने के कारण ये आंकड़े भी काफी बढ़ गए हैं.
टीबी के मरीजों की लंबे समय तक देखभाल जरूरी
रीच और यूएसएआईडी की यह रिपोर्ट कहती है कि टीबी के मरीजों की लंबे समय तक सही देखभाल जरूरी है. ऐसा न होने पर टीबी के दोबारा होने की संभावना ही नहीं बढ़ती, बल्कि इससे डिसेबिलिटी, मौत या अन्य बीमारियां होने की संभावना भी बढ़ जाती है. टीबी का इलाज होने के बाद भी मरीज को दो साल, हर छह महीने पर फॉलोअप्स कराना जरूरी है. असेसमेंट रिपोर्ट में शामिल की गई एक स्टडी में बताया गया है कि टीबी सर्वाइवर्स में मृत्यु दर सामान्य लोगों के मुकाबले करीब 3 गुना ज्यादा है. वहीं एक अन्य स्टडी बताती है कि पोस्ट टीबी 117 मरीजों की एक्सरे जांच में सिर्फ 11 मरीज ही पूरी तरह ठीक हुए थे. 106 मरीजों के फेफड़े अभी भी किसी न किसी परेशानी से जूझ रहे थे और पूरी तरह काम नहीं कर पा रहे थे.
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Tags: World Tuberculosis Day
FIRST PUBLISHED : June 02, 2023, 19:25 IST