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आज पूरे भारतवर्ष में तुलसीदास जंयती मनाई जा रही है. तुलसीदास रामभक्त कहलाते हैं. भारत के सबसे अधिक प्रसिद्ध और धार्मिक ग्रंथ रामचरितमानस के रचियता तुलसीदास जी अपने जीवनकाल में कुल 12 पुस्तकों की रचना की थी. लेकिन सबसे अधिक ख्याति रामचरितमानस को मिली. उन्होंने वाल्मीकि रामायण का अध्ययन किया. संस्कृत भाषा के इस ग्रंथ को आम जन तक पहुंचाने के लिए उन्होंने इसे अवधीभाषा में रामचरितमानस की रचना की. तुलसीदास ने भगवान राम द्वारा साधारण मानव के रूप में किए गए सद्कर्मोकी कथा को सामान्य लोगों तक पहुंचाने के लिए ही रामचरितमानस की रचना की. हिंदी भाषा के विकास में इस ग्रंथ का योगदान अतुलनीय है.
तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी और अयोध्या शहर में बिताया. वाराणसी में गंगा नदी पर तुलसी घाट का नाम उनके नाम पर रखा गया है. उन्होंने वाराणसी में हनुमान को समर्पित संकटमोचन मंदिर की स्थापना की. माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां उन्हें भगवान के दर्शन हुए थे.
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस के अलावा ‘दोहावली’, ‘गीतावली’, ‘कृष्णगीतावली’, ‘विनयपत्रिका’ सहित कई अन्य पुस्तकों की भी रचना की. ‘गीतावली’ से एक बार श्रीकृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को दिए गीता के उपदेश वाली श्रीमद्भागवत गीता का भान होता है, लेकिन ऐसा नहीं है. गोस्वामी तुलसीदास की ‘गीतावली’ रामायण का ही पद वर्णन है.
तुलसीदास की ‘गीतावली’
तुलसीदास जी की श्रेष्ठ रचनाओं में रामचरितमानस के बाद गीतावली का ही उल्लेख होता है. गीतावली में संपूर्ण रामचरितमानस का पदों में वर्णन है. रामचरितमानस में साहित्य के सभी भावों का विस्तार से वर्णन है जबकि गीतावली में कवि का एक ही भाव दिखलाई देता है. वह है अपने इष्टदेव के प्रति ललित भाव. गीतावली में गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान राम के रूप माधुर्य तथा करुणारस का विस्तार से वर्णन किया है. जबकि रामचरितमानस के अन्य घटनाक्रमों को संक्षिप्त में प्रस्तुत किया है.
रामचरितमानस में तुलसीदास जी भगवान राम और उनके जीवन चरित को स्थापित करने के लिए भगवान शिव का सहारा लेते हैं. जबकि गीतावली में गोस्वामीजी स्वयं पूरी तरह से उपस्थित हैं. वे अपने आराध्य की सेवा में पूरी तरह से समर्पित दिखलाई पड़ते हैं. भगवान राम के जन्म वे लिखते हैं-
जो सुखसिंधु सकृत सीकर तें सिव- बिरंचि प्रभुताई।
सोई सुख अवध उमंगि रह्यो दस दिसि, कौन जतन कहौं गाई।।
जे रघुबीर चरन चिंतक, तिन्हकी गति प्रगट दिखाई।
अबिरल अमल अनूप भगति दृढ़ तुलसिदास तब पाई।।
जिस आनंद समुद्र की एक बूंद से ही शिवजी और ब्रह्माजी का जगत् में प्रभुत्व है, वही सुखसागर इस समय अवधपुरी में दसों दिशाओं में उमड़ रहा है. जो श्रीरामचंद्रजी के चरणों का चिंतन करने वाले हैं, यहां उनकी गति स्पष्ट दिखाई पड़ रही है. हे प्रभो, तुलसीदास ने आपकी अविरल, अमल और अनुपम सुदृढ़ भक्ति प्राप्त की है.
यहां बाबा तुलसीदास अपने प्रभु श्रीराम की सेवाभाव का कोई भी क्षण हाथ से गंवाना नहीं देना चाहते हैं. भगवान श्रीराम का जन्म होता है. माता कौसल्या उन्हें पालने में झुला रही हैं. यहां भी गोस्वामी जी कहते हैं-
पालने रघुपति झुलावै।
लै लै नाम सप्रेम सरस स्वर कौसल्या कल कीरति गावै।।
केकिकंठ दुति स्यामबरन बपु, बाल बिभूषन बिरचि बनाए।
अलकैं कुटिल, ललित लटकनभ्रू, नील नलिन दोउ नयन सुहाए।।
तुलसिदास बहु बास बिबस अलि गुंजत, सुछबि न जाति बखानी।
मनहुं सकल श्रुति ऋचा मधुप ह्वै बिसद सुजस बरनत बर बानी।।
माता कौसल्या पालने में रघुनाथजी को झुला रही हैं और प्रेमपूर्वक सुंदर स्वर में नाम ले-लेकर प्रभु की सुंदर कीर्ति गा रही हैं. मयूरकंठ की कांति के समान देपीप्यमान श्याम शरीर पर रचक-रचकर बालोचित विभूषण बनाये गए हैं. अलकावली घुंघराली है, भृकुटि पर ललित लटकन लटक रहा है और दोनों नेत्र नील कमल के समान शोभायमान हैं. तुलसीदास जी कहते हैं तीव्र सुगंध के कारण भौंरे गूंज रहे हैं. उनकी छवि का वर्णन नहीं हो सकता. ऐसा जान पड़ता है मानो वेद की ऋचाएं भ्रमर बनकर निर्मल वाणी से भगवान का विशद यश वर्णन कर रही हैं.
इस प्रकार गीतावली में गोस्वामी तुलसीदास भगवान के सौंदर्य, बल, यश, गुण आदि का वर्णन करते हैं. इस रचना में तुलसीदास ने राम के चरित की अपेक्षा कुछ घटनाएं, झांकियां, मार्मिक भावबिन्दु, ललित रस स्थल, करुणदशा आदि को प्रगीतात्मक भाव के एकसूत्र में पिरोया गया है. इस भाषा ब्रज है. कुछ साहित्यकारों का मानना है कि ‘गीतावली’ की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने सूरदास के अनुकरण पर ही की है. क्योंकि जिस प्रकार सूरदास ने भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं आदि का वर्णन किया है, ऐसा ही तुलसीदास ने भगवान राम के लिए किया है.
जहां सूरदास जी कहते हैं- “जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ, सो नंद भामिनि पावै.“
कुछ इस प्रकार ही गीतावली में तुलसीदास जी भगवान राम के पालने में झुलते हुए कहते हैं-
झूलत राम पालने सोहैं, भूरि जग जननीजन जोहैं।
तन मृदु मंजुल मेचकताई, झलकति बाल बिभूषन झांई।।
गीतावली को एक तरह से हम संक्षिप्त रामचरितमानस भी कह सकते हैं. गीतावली में कुल 328 पद हैं. इनमें बालकांड में 108 पद, अयोध्याकांड में 89 पद, अरण्यकांड में 17 पद, किष्किन्धाकांड में महज 2 पद, सुंदरकांड में 51, लंकाकांड में 23 और उत्तरकांड में 38 पद हैं.
रामचरितमानस और गीतावली के बारे में यह अंतर है कि ‘रामचरितमानस’ की रचना तुलसीदास ने सम्पूर्ण समाज के लिए की थी. इसमें गोस्वामी जी ने अपनी भावनाओं का अतिक्रमण नहीं किया है जबकि ‘गीतावली’ की रचना उन्होंने सम्भवत: केवल भक्त और रसिक समुदाय के लिए की है. इसलिए इसमें हमें तुलसीदास का अलग ही मानवीय रूप देखने को मिलता है.
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Tags: Books, Hindi Literature, Hindi Writer, Literature
FIRST PUBLISHED : August 23, 2023, 18:50 IST
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