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मुरादाबाद नगर निगम में मेयर पद पर भाजपा-कांग्रेस के बीच रोमांचक चुनावी मुकाबला हुआ। कांटे के मुकाबले में कांग्रेस आाखिरी राउंड में पिछड़ गई। भाजपा प्रत्याशी ने शुरुआत के कई राउंड तक लंबी लीड लेकर 38 हजार की बढ़त बनाई थी, लेकिन कांग्रेस ने अंतिम चरणों में ऐसा दम भरा कि जीत-हार का अंतर बेहद करीब आ गया। कांग्रेस केवल 3589 वोटों का अंतर पार न कर सकीं और भाजपा से हार गई। कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद रिजवान को एक लाख 17 हजार और भाजपा प्रत्याशी विनोद अग्रवाल को एक लाख 21 हजार वोट मिले।
भाजपा के विनोद अग्रवाल ने महापौर पद पर जीत की हैट्रिक लगाई है। विनोद अग्रवाल तीसरी बार महापौर बने जरूर पर भाजपा के लिए यह चुनाव एकदम आसान नहीं रहा। उपचुनाव और पिछला चुनाव जीतने वाले विनोद अग्रवाल पर भाजपा ने इस बार भी दांव खेला। कांग्रेस ने पिछली बार सर्वाधिक वोट लेने वाले कांग्रेस के मोहम्मद रिजवान कुरैशी पर ही दांव लगाया। इस बार भी मेयर चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ही मुख्य चुनावी मुकाबले में रहे। एक से 22 राउंड तक चली गिनती में शुरुआत में भाजपा बढ़त बनाए रही।
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मतगणना के सोलहवें राउंड में भाजपा और कांग्रेस के बीच 29 हजार का अंतर था जो आखिरी राउंड 22वें तक धीरे-धीरे घटता चला गया। हालांकि यह चुनाव भी 2017 जैसा ही रहा। पिछली बार भाजपा ने 94 हजार वोट लिए, जबकि कांग्रेस से रिजवान कुरैशी को 73 हजार वोट मिल सके। हालांकि पिछली बार कांग्रेस 21 हजार वोटों से हारी मगर इस बार साढ़े तीन हजार मतों के अंतर से उसके हाथ से जीत फिसल गई।
मिनी संसद में मजबूत हुई कांग्रेस
निगम में कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी दल होगा। निगम में कांग्रेस की ताकत बढ़ी है। निगम के इतिहास में कांग्रेस की इस बार ऊंची छलांग है। पिछली बार दस के मुकाबले इस बार बाइस वार्डो में कब्जा हुआ है। मुस्लिम वोटों के एक तरफा पोलिंग ने कांग्रेस को नई पहचान दी है। इसका असर निगम में दिखेगा। सदन में अब तक कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी थी। जबकि सपा ही मुख्य विपक्षी दल होता था। इस बार कांग्रेस को यह मौका मिला है। 2017 में कांग्रेस के दस पार्षद जीते थे। 1995 में दो पार्षदों से कांग्रेस का खाता खुला मगर 2012 तक नौ से आगे नहीं बढ़ सकीं। वरिष्ठ नेता असद मौलाई की माने तो मेयर के पहले चुनाव के बाद 2000 में कांग्रेस के पांच, 2006 व 2012 में 9-9 पार्षद सदन में पहुंचे।