अपने लेखों और विचारों से युवाओं को प्रेरित करने वाले 2010 बैच के भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी अंजनी कुमार पांडेय ने युवाओं का मार्गदर्शन करने और समाज के लिए कुछ करने के मकसद से इस्तीफा दे दिया है। वैसे तो उन्होंने अगस्त में ही इस्तीफा दे दिया था और अक्तूबर में मंजूरी मिली, लेकिन सोमवार को मकर संक्रांति के दिन जब सूर्य उत्तरायण हुए तो उसी दिन अंजनी ने भी अपने जीवन की दिशा में हुए बदलाव को सार्वजनिक किया। प्रतापगढ़ के रानीगंज स्थित प्रेमधरपट्टी के मूल निवासी और प्रयागराज के नैनी में रहने वाले अंजनी कुमार पांडेय ने वर्ष 2000 में यूइंग क्रिश्चियन कॉलेज में बीए में टॉप किया था।
वर्ष 2002 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पीजी अंग्रेजी साहित्य में टॉप किया और 2005 में एनआरईसी खुर्जा के बीएड टॉपर रहे। 2009 में संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा दी और 2010 बैच में आईआरएस अधिकारी बने।
चर्चित पुस्तक ‘इलाहाबाद ब्लूज’ लिखने वाले अंजनी ने अपने भविष्य की योजना पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि उनका लक्ष्य यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों का मार्गदर्शन और गांव-जमीन से जुड़कर समाज और देश सेवा करना है। छह महीने पहले अपनी यूपीएससी मेंस परीक्षा की मार्कशीट सोशल मीडिया (एक्स) पर साझा करने वाले अंजनी के इस कदम से उनके समर्थकों में उत्साह है। एक्स पर एक यूजर जय शुक्ला ने लिखा है ‘प्रयागराज का हर युवा जो आपको किसी भी माध्यम से जानता है वो आपके साथ है। आप जो भी कुछ नया करना चाहते हैं हम साथ हैं।’ समाजसेवी शशांक मिश्र ने उन्हें नवीन यात्रा के लिए शुभकामनाएं दीं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2009 में 314वीं रैंक हासिल कर आईआरएस अफसर बनने वाले अंजनी कुमार पांडेय ने कहा, ‘मेरा उद्देश्य यूपीएससी की तैयारी कर रहे युवाओं को प्रेरित करना और उनकी मेंटरिंग करना है। युवाओं को उद्यम के क्षेत्र में भी प्रेरित करना है ताकि वह नौकरी चाहने वाला न बनकर नौकरी देने वाले बनें। जरूरी नहीं ही कोई सिविल सेवा में जाए, दूसरे क्षेत्र में भी अवसर हैं।’
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अंजनी कुमार पांडेय ने क्या ट्वीट किया, पढ़ें पूरी बात
भारतीय राजस्व सेवा… एक खूबसूरत अध्याय का समापन … और उत्तरायण के साथ आशा का एक नया अध्याय, आगे का सफर नए लक्ष्य की ओर…..
एक उम्र बीत चुकी है। आंखों में आज कुछ है तो गंगा का मैदान,गंगा की धवल किरणों पर चमचमाती हुई सूर्य की किरणें,दूर एक बिंदु पर मिलती जगत माता गंगा और यमुना की धारा। कितनी दूर आ गया हूं चलते चलते, बहुत कुछ पीछे भी रह गया है। हमेशा की तरह आज भी अगर कुछ साथ है तो वरदायिनी गंगा मां का आशीर्वाद। प्रयाग की रज आज भी मेरी एक एक श्वास में समाहित है। मैंने बहुत लंबा सफर तय किया, हां एक बहुत लंबा सफर, और इस सफर में धूप और छांव के नीचे मैं जिंदगी की किताब लिख रहा हूँ। एक मामूली सी सड़क पर चलने वाला मैं एक आम सा लड़का जो जिंदगी की दौड़ में कछुए की तरह चलता रहा क्योंकि मैंने अपना लक्ष्य तय कर रखा था। वही लक्ष्य जो दिल्ली के राजेंद्र नगर,मुखर्जी नगर,इलाहाबाद के कटरा से लेकर देश के कई भागों में कई युवा देखते हैं, यूपीएससी को पास करने का लक्ष्य! यह तो कड़ी मेहनत और भाग्य की लड़ाई है। मैंने कड़ी मेहनत की और भाग्य की लकीरों का फैसला मेरे पक्ष में रहा और माता पिता परमात्मा की कृपा से मैंने यूपीएससी की परीक्षा पास की, अंततः 2010 में मैं भारतीय राजस्व सेवा का अधिकारी बना। ईश्वर के द्वारा प्रदत्त आशीष हमेशा मेरे साथ रहा,गंगा मां का हाथ हमेशा मेरे सिर पर रहा, प्रयाग की तपोस्थली से ही मैंने ऊंची उड़ान भरने का संकल्प लिया था। जिंदगी के कई साल बीत चुके हैं,आज भी मुझे मेरे हौसलों की वह पहली उड़ान याद आती है जो मुझे प्रयाग के एक मध्यमवर्गीय परिवार से दिल्ली के धौलपुर हाउस यूपीएससी भवन तक उड़ा लाई थी। जगतनियंता का आशीष हमेशा मेरे साथ रहा और मेरी हमेशा से यह कोशिश रही है कि कई नन्हे परिंदे जो मेरी ही तरह अपनी मंजिल को पाना चाहते हैं,वे अपने पंख खोलें,खुद पर विश्वास रखें,कड़ी मेहनत के साथ बस वे बढ़ चलें अपने सपनों की ओर,और जो दूरी मैंने तय की वही वो भी कर सकें इसके लिए मैं हमेशा जिंदगी के तमाम मोड़ पर भी उन्हें प्रेरित करता रहा। उम्मीद है एक दिन सब अपनी अपनी मंजिल तक पहुंचेंगे,अथवा वहां तक जहां के लिए जगत नियंता ने उनका सृजन कर रखा है।
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… ज्यों ज्यों उत्तर में आदित्य देव का आगमन हो रहा है,आशा की नई कोपले और सृजन के नए अंकुर फूटने को हैं। धन्यवाद के सिवा सृष्टि निर्माता के चरणकमलों में मैं भला और क्या अर्पित कर सकता हूं। श्रद्धा के सुमन बारंबार प्रभु की असीम कृपा के समक्ष मैं भेंट कर देता हूं। फिर मानो कि सूर्य की सारी किरणें मेरे भीतर के कहीं सूने स्थल में, जो इतनी लंबी दूरी तय करते करते अपनी एक विशिष्ट जगह निर्मित कर चुकी है,वहां आ मिलती हैं और चहुँ ओर आशा के नव पुंज प्रकाशमान होकर यह संकेत दे रहे हैं कि अभी तुम्हें और लक्ष्य साधने हैं,अभी और तपस्या करनी है। अभी ब्रह्माण्ड के अन्य कई बिंदुओं को स्पर्श करना है और अभी और चलना है। प्रभु उत्तरायण में आ चुके हैं और अब उनके साथ मैं भी उन्हीं की छत्रछाया के नीचे एक रोमांचक सफर शुरू करना चाहता हूं, साहसपूर्ण कारनामे करना चाहता हूं, दिव्य पुंज की ज्योति से आशान्वित होकर मैं चल पड़ा हूं एक नए लक्ष्य की ओर….
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महत्तवपूर्ण सेवा का त्याग, सेवा का परिवर्तन या नयी सेवा का प्रारंभ नहीं है, महत्वपूर्ण है सेवा का स्वभाव से संयोजन। स्वभाव स्वरूप सेवा के लिए ही संक्रान्ति अर्थात् संक्रमण अनिवार्य था……
एक प्रेरणादायक,ऊर्जात्मक,और प्रभु की परमसत्ता में विलीन समस्त जगत की लयबद्धता को साध कर एक छत्र उस परमाधीश के आशीष स्वरूप ब्रह्माण्ड की गतियों को शब्दों में पिरोते हुए एक अपने इस छोटे से जीवन को एक लंबा विस्तार देने की दिशा में ….
भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते ।
तथैव भवतां तेजो वर्धतामिति कामये ॥
मकरसंक्रांतिशुभाशया:।
– अंजनी कुमार पांडेय