Wednesday, April 23, 2025
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varun gandhi bjp mp attacks his own government regarding unemployment pilibhit – तेरी मोहब्बत में हो गए फना, मांगी थी नौकरी, मिला आटा दाल चना, बेरोजगारी को लेकर वरुण गांधी ने अपनी ही सरकार पर बोला हमला, उत्तर प्रदेश न्यूज


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पीलीभीत, संवाददाता। 

Varun Gandhi attacked his own government on unemployment: यूपी के पीलीभीत से भाजपा के सांसद वरुण गांधी ने बेरोजगारी को लेकर अपनी ही सरकार पर हमला बोला है। शायराना अंदाज में तंज कसते हुए उन्‍होंने कहा, ‘तेरी मोहब्बत में हो गए फना, मांगी थी नौकरी मिला आटा, दाल और चना।’ वरुण ने कहा कि निजीकरण की वजह से प्रदेश में पांच साल में 18 लाख लोग नौकरी से हटाए गए।

जनसंवाद के दौरान सांसद बोले कि आठ सालों में वास्तविक वेतन मात्र एक फीसदी बढ़ा है लेकिन महंगाई कई गुना बढ़ी है। इसका असर आम लोगों पर पड़ रहा है। लोगों के पास जो जमा पूंजी थी, वह महंगाई ने खत्म कर दी। सरकार स्थाई रोजगार सिर्फ इसलिए नहीं दे रहे क्योंकि आटा, दाल और चना दे रही है। चुनाव जीतने के लिए ऐसा किया जा रहा है। 

दो दिवसीय दौरे पर पीलीभीत पहुंचे सांसद वरुण गांधी का यहां समर्थकों ने स्वागत किया। सांसद ने बीसलपुर के अभय भगवंतपुर, सोरहा, मझगवां, रड़ेता, रोहनिया भूड़ा आदि गांवों में जनसंवाद किया। सांसद बोले कि कई बार सुनते हैं कि सरकार स्थिर और स्थायी है लेकिन क्या लोग खुश हैं और उनका जीवन मजबूत है, बिल्कुल नहीं। सांसद बोले कि यूपी पहले ही बेरोजगारी की चपेट में था। अब यह 18 लाख लोगों का आंकड़ा और बढ़ा है। इसका असर करीब एक करोड़ लोगों पर पड़ा है।

वरुण गांधी ने कहा कि सरकारी नौकरी पहले आम आदमी के लिए एकमात्र नौकरी थी। जबसे निजीकरण हुआ तब से नौकरी पाना तो दूर उसके बारे में सोचना भी कठिन है। यही वजह है कि दो भारत बन गए हैं। एक भारत में लोग आसानी से दौड़ रहे हैं और दूसरे भारत का भट्ठा बैठता जा रहा है। पिछले सात वर्षों में 28 करोड़ लोगों ने सरकारी नौकरी के लिए परीक्षाएं दीं पर नौकरी मात्र सात लाख लोगों को ही नौकरी मिली है। 

नौकरी मात्र 15 फीसदी को ही मिलती है

वरुण कहा कि पहले देश में इंजीनियर की बहुत बड़ी नौकरी मानी जाती थी पर अब इसका भी हाल खराब है। प्रत्येक वर्ष 15 लाख से अधिक इंजीनियर पढ़ाई कर निकलते हैं, लेकिन नौकरी मात्र 15 फीसदी को ही मिलती है। एक गांव का किसान कर्ज लेकर अपने बेटे को पढ़ाता है लेकिन जब उसको नौकरी नहीं मिलती है तो सोचिए उसके दिल पर क्या गुजरती होगी।

निजीकरण से ज्यादातर नौकरियां संविदा पर हैं। एक अफसर या आर्मी का योद्धा बनने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है। अग्निवीरों से पांच साल सेवा लेने के बाद उनको निकाला जाएगा। गांव लौटने के बाद जब उनके पास गांव में कोई काम नहीं होगा तब वह क्या करेगा? यह सेना का अपमान नहीं है।



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