verdict on demonetisation: आज देशभर की निगाहें सर्वोच्च अदालत पर टिकी हैं। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ मोदी सरकार के 5 साल पहले लिए उठाए नोटबंदी वाले कदम पर अहम फैसला सुनाने वाली है। नवंबर 2016 में मोदी सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों पर अचानक से प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार के इस फैसले ने कई लोगों को अर्श से फर्श पर ला दिया था। लोग कैश सुरक्षित कराने के लिए कई महीनों तक बैंकों के चक्कर लगाते रहे। सरकार की 2016 वाली इस अधिसूचना के खिलाफ 48 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में पहुंची। आज सुप्रीम कोर्ट इस पर अपना फैसला सुनाने वाली हैं।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 7 दिसंबर को सरकार और याचिकाकर्ताओं की विस्तृत दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ताओं ने मामले में तर्क दिया है कि नोटबंदी का निर्णय मनमाना, असंवैधानिक और भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के तहत निर्धारित शक्तियों और प्रक्रिया के विपरीत था। उधर, देश की शीर्ष अदालत, जो वर्तमान में शीतकालीन अवकाश के लिए बंद है, 2 जनवरी को फिर से खुलने जा रही है।
ये बेंच सुनाएगी फैसला
नोटबंदी पर निर्णय न्यायमूर्ति बीआर गवई की खंडपीठ द्वारा सुनाया जाएगा। यह फैसला सर्वसम्मति से लिया जा सकता है। इस पर फैसला लेने वाली बेंच में जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना भी शामिल हैं। न्यायमूर्ति एसए नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने शीतकालीन अवकाश से पहले दलीलें सुनीं और 7 दिसंबर को फैसले को स्थगित कर दिया। बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस बीआर गवई, बीवी नागरत्ना, एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यन हैं। पता चला है कि जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरथना ने दो अलग-अलग फैसले लिखे हैं।
केंद्र बोला- समय को पीछे नहीं किया जा सकता
नोटबंदी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अड़तालीस याचिकाएं दायर की गईं हैं। जिसमें तर्क दिया गया है कि यह सरकार का एक सुविचारित निर्णय नहीं था और अदालत द्वारा इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए। वहीं, सरकार ने इस मामले में तर्क दिया है कि जब कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है तो अदालत किसी मामले का फैसला नहीं कर सकती है। केंद्र ने कहा, यह “घड़ी को पीछे करना” जैसा होगा।
काले धन और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कदम
केंद्र ने कहा था कि नोटबंदी एक “सुविचारित” निर्णय था और नकली धन, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था। वहीं, केंद्र की दलील को खारिज करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने तर्क दिया था कि केंद्र ने नकली मुद्रा या काले धन को नियंत्रित करने के लिए वैकल्पिक तरीकों की जांच नहीं की है।
वहीं, विपक्ष का आरोप है कि नोटबंदी सरकार की नाकामी थी। जिसने कारोबार तबाह कर दी और नौकरियां खत्म की। कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, मोदी सरकार के इस ‘मास्टरस्ट्रोक’ के छह साल बाद जनता के पास उपलब्ध नकदी 2016 की तुलना में 72 प्रतिशत अधिक है। पीएम (नरेंद्र मोदी) ने अभी तक इस विफलता को स्वीकार नहीं किया है जिसके कारण अर्थव्यवस्था गिर गई थी।
8 नवंबर 2016 की रात अचानक से सबकुछ बदल गया था
बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे अचानक जनता के सामने आए और 500-1000 नोटों को रात 12 बजे से खारिज करने का ऐलान किया। टीवी पर अपने संबोधन में मोदी ने कहा था कि काले धन और आतंकवाद के खिलाफ सरकार यह कदम उठा रही है। उन्होंने कहा था कि रात 12 बजे के बाद ये नोट मान्य नहीं होंगे। पीएम मोदी की इस घोषणा के साथ ही देशभर में भूचाल आ गया था और लोग अगले ही सवेरे सुबह-सुबह बैंकों में पहुंचे। कई महीनों तक बैंकों में लोगों की कतार नजर आई।