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2.5 Billion People Facing Hearing Loos: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार आने वाले 25 वर्षों में दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी को सुनने की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान में 1 अरब 60 करोड़ से अधिक लोग किसी न किसी स्तर की सुनने की समस्या से जूझ रहे हैं, जिनमें से लगभग 4 करोड़ 30 लाख को सक्रिय पुनर्वास की आवश्यकता है. यह संख्या लगातार बढ़ रही है और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक यह आंकड़ा 2.5 अरब के पार पहुंच सकता है. इस बढ़ते संकट के पीछे एक ओर जहां उम्र बढ़ना एक सामान्य कारण है, वहीं दूसरी ओर युवाओं में भी तेज़ आवाज़ में संगीत सुनना, ट्रैफिक और शोरगुल जैसी आदतें बहरेपन का कारण बन रही हैं. वैज्ञानिक भाषा में इसे प्रेसबायक्यूसिस Presbycusis यानी उम्र से संबंधित सुनने की क्षमता में कमी है लेकिन एक्सपर्ट मानते हैं कि इसका समय रहते बचाव किया जा सकता है.
तेज़ आवाज़ और शहरों का शोर बन रहा है खतरा
शहरों की भीड़भाड़, कंस्ट्रक्शन के कामों का शोर, तेज़ आवाज़ में हेडफोन का इस्तेमाल और सड़कों का ट्रैफिक ऐसे कारण हैं जो धीरे-धीरे हमारे कानों को नुकसान पहुंचाते हैं. WHO का कहना है कि युवा वर्ग में एक अरब से ज्यादा लोग स्थायी सुनने की समस्या की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि वे हर दिन असुरक्षित रूप से तेज़ आवाज़ में म्यूजिक सुनते हैं. यही वजह है कि सुनने की शक्ति केवल बुजुर्गों तक सीमित समस्या नहीं रही, अब यह युवाओं और बच्चों को भी प्रभावित कर रही है. कई बार सुनने की शक्ति का धीरे-धीरे घटना लोगों को समय पर पता नहीं चलता. लोग बातचीत के दौरान बार-बार बात दोहराने को कहने लगते हैं या शोरगुल वाले माहौल में स्पष्ट सुनाई नहीं देता. इसे अक्सर उम्र से जुड़ी सामान्य बात मानकर अनदेखा कर दिया जाता है, जिससे समय पर इलाज नहीं हो पाता. लेकिन यह ट्रैंड गलत है. किसी भी उम्र में अगर सुनाई देने में कमी महसूस हो तो तुरंत डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.
60 प्रतिशत मामलों को रोका जा सकता है
WHO का मानना है कि सुनने की क्षमता को खत्म होने से रोका जा सकता है. कम से कम 60 प्रतिशत मामलों में इस समस्या को रोका जा सकता है. इसके लिए जागरुकता और सही उपाय किए जाएं. इनमें सुरक्षित सुनने की आदतें, समय पर टीकाकरण, ओटीओटॉक्सिक दवाओं से बचाव, सामान्य कान की बीमारियों का इलाज और मां-बच्चे की देखभाल जैसी बातें शामिल हैं. डब्ल्यूएचओ ने लोगों को सुझाव दिया है कि रेगुलर कान की जांच कराने से इन समस्याओं को होने से पहले रोका जा सकता है. विशेष रूप से जब व्यक्ति की उम्र 45 वर्ष से अधिक हो तो साल में एक बार कान की जांच जरुर करानी चाहिए. कई बार व्यक्ति को कोई लक्षण नहीं दिखते लेकिन धीरे-धीरे बहरेपन की शुरुआत हो चुकी होती है. ऐसे मामलों में समय रहते की गई जांच और उपचार से स्थायी नुकसान को रोका जा सकता है.
बचपन से चौकन्ना रहना जरूरी
एक्सपर्ट का मानना है कि कान में सुनाई देने की क्षमता कम न हो, इसके लिए बचपन से प्रयास करना चाहिए. इसके लिए समय पर टीकाकरण कराना ताकि कान से जुड़ी बीमारियों से बचा जा सके. अगर परिवार में किसी को कान से संबंधित परेशानी है तो शुरुआत से ही इस पर ध्यान दें. दवाइयों का सही तरीके से इस्तेमाल करें. कई दवाइयां कान को नुकसान पहुंचा सकता है. तेज़ आवाज़ से बचने की आदत डालनी चाहिए. जैसे कि हेडफोन का धीमे आवाज़ में और सीमित समय तक इस्तेमाल करना चाहिए. कान की सामान्य बीमारियों में डॉक्टर से इलाज कराना चाहिए. सुनने की शक्ति को सुरक्षित रखने के लिए बचाव जीवन के हर पड़ाव पर जरूरी होता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि लगभग साठ प्रतिशत मामलों में सुनने की समस्या को रोका जा सकता है. इसके लिए सही समय में बीमारी की पहचान जरूरी है.
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