Monday, July 8, 2024
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Why Prices End In 99: प्राइस टैग 99 और 199 जैसे क्यों रखती हैं कंपनियां, इसका ग्राहकों पर क्या होता है असर


नई दिल्ली: आज जब भी बाजार में या शॉपिंग मॉल में जाते होंगे तो वहां पर सामानों के रेट आपको ज्यादातर 99, 199, 399 और 999 जैसे ही देखने को मिलेंगे। कंपनियां सामानों के प्राइस टैग में 100, 300, 500 इस तरह के रेट कम ही लिखती हैं। ऑफलाइन मार्केट हो या ऑनलाइन आपको हर जगह सामानों के दाम इसी तरह से लिखे हुए मिलेंगे। यहां तक की मॉल में सैलून की दुकानों पर रेट आपको इसी तरह के दिखाई देंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कंपनियां इस तरह से एक रुपया घटाकर ही क्यों सामानों के रेट लिखती हैं? इससे क्या फर्क पड़ता है?

प्राइस टैग से ग्राहकों को लुभाने की कोशिश
इस तरह के प्राइस टैग से कंपनियां ग्राहकों को लुभाने की कोशिश करती है। इसे साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी कहते हैं। यह एक मार्केटिंग स्ट्रेटेजी है। इसी वजह से सेल में 99, 999 या 499 जैसे रेट लिखे हुए दिखाई देते हैं। साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी में लोगों को लुभाया जाता है। जानकारों के मुताबिक, जब किसी भी प्रोडक्ट की कीमत में ग्राहक 9 अंक को देखता है तो उसे वो कम लगती है। इसे ऐसे समझें अगर कोई ग्राहक 199 रुपये की कीमत देखता है तो पहली नजर में उसे यह कीमत कम लगती है। अगर वहीं कीमत को 200 रुपये लिखा जाए तो ज्यादा लगेगी।

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कीमतों को ऐसे लिखने के पीछे एक वजह ये भी
99 नंबर का लिखना एक थ्योरी पर आधारित है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, इंसान हमेशा लिखी हुई चीजों को दाईं से बाईं ओर पढ़ता है। इंसान के दिमाग में हमेशा पहला अंक ज्यादा याद रहता है। इसलिए भी कंपनियां 99 का अंक प्राइस टैग में जरूर रखती हैं, जिससे ग्राहकों को सामान की कीमत कम लगे। इसका एक फायदा दुकानदार को ये भी मिलता है कि सामान खरीदने में कैश पेमेंट करने के दौरान कई बार लोग एक रुपया वापस मांगने में हिचकिचाते हैं। ऐसे में इसका फायदा दुकानदार को मिल जाता है।

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कंपनियों को दिखता है फायदा
साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी को लेकर कई बार एक्सपेरिमेंट भी किया जा चुका है। इसमें देखा गया है कि जिन सामानों के रेट इस तरह से लिखे जाते हैं उन्हें लोगों ने ज्यादा खरीदा है।



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