गुलज़ार नाम से लोकप्रिय सम्पूर्ण सिंह कालरा आज 87 साल के हो जाएंगे. शायरों और कवियों की फेहरिस्त से अलग उनकी खास पहचान उनके रूहानी गीतों की दुनिया है. 18 अगस्त, 1936 को अविभाजित हिन्दुस्तान के पंजाब के झेलम जिले के दीना गांव में जन्मे गुलजार का बचपन दिल्ली के सब्जी मंडी इलाके में बीता. पेट्रोल पम्प पर नौकरी करते हुए शायरी गुनगुनाते-गुनगुनाते ऑस्कर तक का सफर तय करने वाले गुलज़ार साहब गीत और शायरी का वो सितारा है जिनके गीत आज की पीढ़ी को भी खूब भाते हैं.
ए. आर. रहमान के साथ गुलज़ार साहब को उनके गीत ‘जय हो, जय हो’ (स्लमडॉग मिलिनेयर) के लिए ऑस्कर अवार्ड से नवाजा गया. गुलज़ार के लिखे किनारा फिल्म का गीत ‘नाम गुम जाएगा, चेहरा यह बदल जायेगा, मेरी आवाज ही पहचान है’ दिल को गहरा सुकून देता है.
नौ भाई-बहन में गुलजार चौथे स्थान पर रहे. पेट्रोल पम्प पर काम करते हुए उन्होंने खुद पढ़ाई का खर्च पूरा किया और काम करते हुए ही उन्होंने शायरी लिखना शुरू किया. उर्दू, पर्शियन और बंगाली के बाद उन्होंने हिंदी में भी हाथ आजमाया. शायरी और गीत-संगीत की पहचान की हसरतों ने उन्हें दिल्ली से मुबंई पहुंचा दिया. मुबंई की आवो-हवा गुलज़ार साहब को खूब रास आई. गीत-संगीत की महफिलों से लेकर शायरी की दुनिया में उनका मन रमता गया.
गीतों में दिखाई देता है इलाकाई असर, बड़ी रोचक है गुलज़ार के फिल्मी गानों की कहानी
गुलज़ार द्वारा अनुवाद किए गए रवीन्द्रनाथ ठाकुर और शरतचंद्र की रचनाओं के उर्दू तर्जुमा को भी खूब सराहा गया. गीतकार के रूप में उनका सफर फिल्म ‘बंदनी’ फिल्म के गीत ‘मोरा गोरा अंग लई ले, मोहे श्याम रंग दई दे’ से शुरू होता है. संगीतकार सचिनदेव बर्मन के संगीत से सजाये गए इस गीत ने गुलज़ार को नई पहचान दी और वे बंगाल की मशहूर फिल्मी हस्तियों- बिमल राय, ऋषिकेश मुखर्जी जैसे फिल्मकारों के चेहते बन गए. गुलज़ार ने ऋषि दा के साथ ‘आनंद’, ‘गुड्डी’, ‘बावर्ची’ और ‘नमक हराम’ जैसी सफल फिल्म में काम किया. बाद में एन. सी. सिप्पी के साथ उनकी जोड़ी ने खूब नाम कमाया.
मीना कुमारी का साथ
मीना कुमारी और गुलज़ार के रिश्ते सही मायनों में गीत-संगीत से भरी भावनात्मक मिसाल हैं. मीना कुमारी ने अपनी मौत से पहले अपनी तमाम डायरी और शायरी की कापियां गुलज़ार को सौंप दी थीं. गुलज़ार ने बाद में उनकी रचनाओं को प्रकाशित भी करवाया. स्वतंत्र निर्देशक के तौर पर उन्होंने अपनी पहली फिल्म ‘मेरे अपने’ में मीना कुमारी को लीड रोल दिया. दोनों का अनुराग और स्नेह भाव भी सुर्खियों में खूब रहा.
कामयाबी की मिसाल
गुलज़ार का फिल्मी सफर गहरी भावनात्मक गीत सरीखी फिल्मों का सफर है. बदलते परिवेश में उनका सृजनात्मक संसार संवेदनाओं को उत्कृष्ट कलात्मक ऊंचाई पर ले जाता है. संवेदनाओं और भावनात्मक गहराई की बानगी उनकी फिल्म- ‘कोशिश’, ‘आंधी’, ‘मौसम’, ‘किनारा’, ‘खुशबू’, ‘अंगूर’, ‘नमकीन’, ‘इजाजत’, ‘लेकिन’ और ‘माचिस’ जैसी फिल्मों से उनके कौशल का अद्भुत परिचय मिलता है.
‘कोशिश’ फिल्म में जहां उनके द्वारा गूंगे मां-बाप की भावनाओं की प्रस्तुती में दिखाया गया है कि वे चाहते हैं कि उनका बेटा उन जैसा ना हो. वहीं, ‘इजाजत’ फिल्म में प्यार और संबंधों के टूटन की प्रस्तुती बेहतरीन है. ‘मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है…’ के मायने प्रेम में रिश्तों के अर्थ को रेखांकित करता है.
गुलज़ार की फिल्मों में रिश्तों की ख़्वाहिश और उसके जिंदा रहने और लरजते रहने में जो भावनाओं का मूक प्रदर्शन है, वो दिल की गहराइयों में उतरकर दर्शकों को बेचैन कर देता है.
निर्देशक गुलज़ार
‘मेरे अपने’, ‘परिचय’, ‘कोशिश’, ‘अचानक’, ‘खुशबू’, ‘आंधी’, ‘मौसम’, ‘किनारा’, ‘किताब’, ‘अंगूर’, ‘नमकीन’, ‘मीरा’, ‘इजाजत’, ‘लेकिन’, ‘लिबास’, ‘माचिस’ और ‘हू तू तू’ जैसी सफल फिल्मों के निर्देशन से गुलज़ार भारतीय सिनेमा के एक खास वर्ग के दर्शकों के लिए सामान्य परिपाटी से हटकर सुकुमार-सुकोमल भावनाओं को फिल्म का विषय बनाने में बेहद कामयाब रहे.
गुलज़ार की प्रमुख रचनाएं
चौरस रात (लघु कथाएं), जानम (कविता संग्रह), एक बूंद चांद (कविताए), रावी पार (कथा संग्रह), ‘रात, चांद और मैं’, रात पश्मीने की और खराशें उनकी बहुआयामी कल्पनाशीलता की दुनिया को उनके पाठकों तक पहुंचाने में सफल रही हैं.
अवार्ड की दुनिया
गुलज़ार साहब के नाम 5 राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड, दो सर्वश्रेष्ठ गीतकार, एक सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले, एक सर्वश्रेष्ठ फिल्म निर्देशक और एक सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फिल्म निर्देशक, 22 फिल्मफेयर अवार्ड्स, एक एकेडेमी अवार्ड और एक ग्रैमी अवार्ड हैं. उन्हें 2002 में हिंदी के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड, 2004 में पद्मभूषण और 2013 में भारतीय फिल्म जगत का सबसे बड़ा अवार्ड “दादा साहेब फाल्के” से सम्मानित किया गया.
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FIRST PUBLISHED : August 18, 2023, 12:47 IST