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नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) की किताबों में सिलेबस में बदलाव को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। देश के प्रमुख भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के 250 से अधिक इतिहासकारों ने इसके खिलाफ बयान जारी किया है। इसमें कहा गया कि कक्षा 12 के लिए इतिहास की किताबों से सामग्री हटाने का फैसला गहरी चिंता का विषय है। बयान जारी करने वालों में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, जादवपुर यूनिवर्सिटी, दिल्ली विश्वविद्यालय, हैदराबाद यूनिवर्सिटी के साथ ही अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के शिक्षाविद भी शामिल हैं। मालूम हो कि एनसीईआरटी की ओर से मुगलों के इतिहास से जुड़े कुछ चैप्टर, गुजरात में 2002 के सांप्रदायिक दंगे, नक्सली आंदोलन और दलित लेखकों के जिक्र को भी हटाया गया है।
शिक्षाविदों की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘एनसीईआरटी की किताबों के नए संस्करणों में सामग्री हटाने को सामान्य बना दिया गया है। भले ही हम लोग फिलहाल महामारी के बाद के समय में हों, जहां स्कूली शिक्षा वापस सामान्य स्थिति में आ चुकी है। यह बहुत परेशान करने वाली बात है कि 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब के भाग-2 से मुगलों पर एक अध्याय हटा दिया गया। साथ ही इतिहास की पुस्तक के भाग-III से आधुनिक भारतीय इतिहास के 2 लेशन हटाए गए।’ मालूम हो कि इस सार्वजनिक बयान पर रोमिला थापर, जयति घोष, मृदुला मुखर्जी, अपूर्वानंद, इरफान हबीब और उपिंदर सिंह समेत शैक्षणिक समुदाय के जाने-माने इतिहासकारों के हस्ताक्षर हैं।
‘चुनिंदा सामग्री डिलीट करना विभाजनकारी संकेत’
बयान के मुताबिक, इतिहास के अध्ययन को इस तरह से कम करके छद्म इतिहासों के लिए जमीन तैयार की जा रही है। इस तरह का ‘इतिहास’ आज व्हाट्सएप और सोशल मीडिया के अन्य के प्लेटफार्म पर सर्कुलेट हो रहा है। इतिहासकारों की ओर से कहा गया, ‘NCERT के सदस्यों के अलावा पाठ्यपुस्तकों को तैयार करने के लिए टीम बनाई गई। इसमें इतिहासकार और स्कूली शिक्षक शामिल थे मगर परामर्श करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। किताबों को परामर्श और चर्चाओं की लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार किया जाता है। यह सामग्री के साथ ही शिक्षाशास्त्र के लिए भी जरूरी है। पाठ्यपुस्तकों के संशोधन को लेकर जो यह दौर शुरू हुआ है, उसमें चुनिंदा तरह से सामग्री डिलीट करना शैक्षणिक सरोकारों पर विभाजनकारी राजनीति को तरजीह दिए जाने को दर्शाता है।’
क्या है NCERT का दावा
हालांकि, एनसीईआरटी ने यह दावा किया है कि इस वर्ष पाठ्यक्रम में कोई काटछांट नहीं की गई है। पाठ्यक्रम को पिछले वर्ष जून में युक्तिसंगत बनाया गया था। पिछले साल पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने और कुछ अंशों के अप्रसांगिक होने के आधार पर NCERT ने गुजरात दंगों, मुगल दरबार, आपातकाल, शीत युद्ध, नक्सल आंदोलन आदि के कुछ अंशों को पाठ्यपुस्तक से हटा दिया था। पाठ्यपुस्तक को युक्तिसंगत बनाने के नोट में महात्मा गांधी के अंश के बारे में कोई उल्लेख नहीं है। एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने कहा, ‘पाठ्यक्रम को युक्तिसंगत बनाने की कवायद पिछले वर्ष की गई और इस वर्ष जो कुछ हुआ है, वह नया नहीं है।’
एनसीईआरटी की वेबसाइट पर एक नोट में कहा गया, ‘कोविड-19 महामारी के मद्देनजर यह महसूस किया गया कि छात्रों पर पाठ्यसामग्री के बोझ को कम किया जाए। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में पाठ्य सामग्री के बोझ को कम करने और रचनात्मक सोच का उपयोग करके अनुभव के आधार पर सीखने पर जोर दिया गया है। इसे ध्यान में रखते हुए सभी कक्षाओं में और सभी विषयों में पाठ्यपुस्तकों को युक्तिसंगत बनाने का कार्य शुरू किया गया है। वर्तमान संस्करण बदलाव के बाद नए रूप में तैयार संस्करण है। वर्तमान पाठ्यपुस्तक युक्तिसंगत पुस्तक है। इन्हें वर्ष 2022-23 में युक्तिसंगत बनाया गया था और 2023-24 में भी जारी रहेगा।’
(एजेंसी इनपुट के साथ)
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