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श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद: हाईकोर्ट ने सभी पक्षकारों को दिया नोटिस, 2 मार्च को होगी अगली सुनवाई

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श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद: हाईकोर्ट ने सभी पक्षकारों को दिया नोटिस, 2 मार्च को होगी अगली सुनवाई

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मथुरा की जिला अदालत में चल रहा श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद- India TV Hindi

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मथुरा की जिला अदालत में चल रहा श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद

मथुरा के श्री कृष्ण जन्मभूमि विवाद से जुड़े मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड समेत सभी पक्षकारों को नोटिस दिया है। अभी इस मामले से जुड़े मुकदमे मथुरा की अदालत में चल रहे हैं। इन सभी मुकदमों की सुनवाई डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के बजाय इलाहाबाद हाईकोर्ट में हों, इस मांग को लेकर दाखिल याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में आज हुई सुनवाई। इसको लेकर हाईकोर्ट ने यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड समेत सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया है।

श्रीकृष्ण विराजमान और अन्य की तरफ से दाखिल याचिका

हाईकोर्ट ने इस मामले में मुकदमों को आपस में क्लब कर सुनवाई एक साथ हाईकोर्ट में किए जाने की मांग पर सभी पक्षकारों से 28 फरवरी तक जवाब देने को कहा है। दरअसल, आज भगवान श्रीकृष्ण विराजमान और अन्य की तरफ से दाखिल याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई की। इस याचिका में कहा गया है कि श्री कृष्ण जन्म भूमि विवाद को लेकर मथुरा की अदालत में तमाम मुकदमे चल रहे हैं। एक ही नेचर के इन सभी मुकदमों को एक साथ क्लब कर हाईकोर्ट सुनवाई करे। इसको लेकर याचिकाकर्ताओं की दलील है कि हाईकोर्ट में सुनवाई होने से मामले का निपटारा जल्द हो जाएगा। यह नोटिस शाही मस्जिद ईदगाह की प्रबंधन समिति, श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, कटरा केशव देव, दीग गेट और श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान मथुरा को जारी की गई है।

2 मार्च को होगी मामले की अगली सुनवाई
इस मामले में सुनवाई जस्टिस नलिन कुमार श्रीवास्तव की बेंच में हुई। अदालत ने याचिका को फिलहाल सुनवाई के लिए माना है और इसके लिए 2 मार्च की तारीख मुकर्रर की है। याचिका मे अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन और प्रभाष पांडेय ने बहस की है। बता दें कि इस मामले में हिंदू भक्तों ने उस जमीन पर अधिकार का दावा किया है जहां ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया है। याचिकाकर्ताओं ने ईदगाह मस्जिद पर हिंदू समुदाय के अधिकार का दावा करते हुए सिविल जज (सीनियर डिवीजन) के समक्ष वाद दायर किया था जिसमें कहा गया कि इस मस्जिद का निर्माण हिंदू मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया गया और इस तरह का निर्माण एक मस्जिद नहीं हो सकता क्योंकि कभी किसी वक्फ का गठन नहीं किया गया और वह भूमि कभी मस्जिद निर्माण के लिए समर्पित नहीं थी। 

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