हाइलाइट्स
भगवान शिव को सोमवार का दिन समर्पित किया गया है.
महादेव को प्रसन्न करने के लिए उनका अभिषेक किया जाता है.
Abhishek of Lord Shiva : भगवान शिव का अभिषेक तो हम सभी ने किया ही है, जिसका सनातन धर्म में विशेष महत्व भी है. माना जाता है कि अभिषेक करने से भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों को मन चाहा वरदान प्रदान करते हैं. क्या आप जानते है कि क्यों किया जाता है भगवान शिव का अभिषेक या कैसे हुई इसकी शुरुआत? अगर नहीं तो आइए जानते हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा से भगवान शिव के अभिषेक से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में.
महाप्रलय के कारण सभी अनमोल रत्न और जरूरी औषधियां समुंद्र में समा गई थीं तो श्रीहरि विष्णु ने उन सभी वस्तुओं को पुनः प्राप्त करने के लिए देवों और दानवों को समुन्द्र मंथन का आदेश दिया. इतने विशालकाय समुन्द्र की मथनी भी विशाल होनी चाहिए, इसलिए भगवान विष्णु के ही कहने पर मंदरांचल पर्वत को मथनी, वासुकी नाग को रस्सी व मंदरांचल को सभालने का कार्य स्वयं श्रीहरि ने कच्छप अवतार लेकर किया. समुन्द्र मंथन का आरम्भ हुआ.
हलाहल विष की उत्पत्ति
सबसे पहले समुन्द्र से प्राप्त हुआ विष और यह कोई मामूली विष नहीं था. यह संसार का सबसे विषैला विष था जिसका नाम था हलाहल. इस विष से निकलने वाली गंध से ही देव, दैत्य समेत सम्पूर्ण विश्व में हाहाकार मच गया.
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शिव ने ग्रहण किया विष
कोई उपाय ना निकलता देख भगवान विष्णु ने सभी देवों और दैत्यों को त्रिपुरारी भगवना शिव शंकर के पास भेजा. सभी जन भगवान शिव के पास गए और उनसे रक्षा की भीख मांगने लगे. कोई उपाय ना मिलने और विष से होने वाले दुष्प्रभाव से सम्पूर्ण जगत को बचाने के लिए महादेव ने खुद विष का पान किया, यह देख माता पार्वती ने अपने हाथ से विष को भोलेनाथ के कंठ में ही रोक लिया. विष के दुष्प्रभाव से भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और तभी से उनका नाम नीलकंठ पड़ा.
तभी से शुरू हुई अभिषेक की परंपरा
अत्यधिक विषैला होने के कारण उस विष ने भोलेनाथ के शरीर का तापमान बढ़ा दिया, जिससे उन्हें कष्ट होने लगा. कैलाश जैसी ठंडे स्थान पर भी भोलेनाथ पसीने-पसीने हो गए, जिसे देख सभी देवताओं और दैत्यों ने उनका जल से अभिषेक कर उनकी सहायता की. मन्यता है कि तभी से भोलेनाथ को जल चढ़ाया जाने लगा. तभी से अभिषेक की शुरु्रत हुई.
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समुद्र मंथन से निकली और भी वस्तुएं
समुन्द्र से और अमूल्य वस्तुओं की प्राप्ति हुई, जैसे कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कल्प वृक्ष, माता लक्ष्मी, चन्द्रमा, पांचजन्य शंख, कौस्तुभ मणि, अप्सरा रम्भा, वारुडी मदिरा, पारिजात वृक्ष, भगवान धन्वंतरि और अमृत कलश, जिसे देवता और दैत्यों ने आपस में बांट लिया था और समुन्द्र मंथन का कार्य सफलता पूर्वक संपन्न हुआ.
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Tags: Dharma Aastha, Lord Shiva, Religion
FIRST PUBLISHED : September 11, 2023, 06:30 IST