हाइलाइट्स
चंद्रयान-1 को इसरो ने हरिकोटा से 22 अक्टूबर 2008 को छोड़ा गया
ये मिशन केवल 10 महीने ही काम कर पाया लेकिन बहुत अहम खोज की इसने चंद्रमा पर
देश में लोग चंद्रयान-3 के चांद के आरबिट में पहुंचने के बाद उसकी घूमने की कक्षा को कम करने की खबरें पढ़ रहे है. क्या आपको मालूम है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि इसरो ने 14 साल 10 महीने पहले चंद्रयान -1 को जब श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से छोड़ा था तो उसका क्या हुआ. उसने चांद पर पहुंचकर क्या किया था. उसने ऐसी कौन सी खोज की थी, जिसका लोहा अब सारी दुनिया मानती है.
चन्द्रयान -1 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के मून मिशन के तहत चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान था. इस अभियान में मानवरहित यान को 22 अक्टूबर 2008 को चन्द्रमा पर भेजा गया. ये मिशन करीब 10 महीने तक सक्रिय रहा.
ये 05 दिनों में चांद की कक्षा तक पहुंचा
इसे पीएसएलवी के एक संशोधित संस्करण वाले राकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से छोड़ा गया था. ये केवल 05 दिनों में ही चांद की कक्षा तक पहुंच गया. हालांकि इसे चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिनों का समय लग गया.
चंद्रयान को पीएसएलवी रॉकेट से छोड़ा गया था, ये चांद तक 05 दिनों में ही पहुंच गया था लेकिन फिर चांद की कक्षा में स्थापित होने में इसे करीब 15 दिन लग गए, ये काम काफी कठिनाई भरा था. (Courtesy ISRO)
इसने चांद की सतह पर क्या उतारा
इसके साथ एक छोटा सा मून इम्पैक्ट प्रोब भी गया था, जो 14 नवंबर 2008 को चंद्र सतह पर उतरा, ये पहला मौका था जब भारत का कोई रिसर्च उपकरण चांद पर उतरा और उसने वहां कुछ महीनों तक रिसर्च का काम भी किया. जिससे भारत चंद्रमा पर अपना झंडा लगाने वाला चौथा देश बन गया.
इसका आर्बिटर क्या करता रहा
इस चंद्रयान का आर्बिटर चांद की कक्षा में चक्कर लगाता रहा. चंद्रयान का उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर पानी के अंश और हीलियम की तलाश करना था. ये चंद्रमा से १०० किमी की ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया. इस उपग्रह ने रिमोट सेंसिंग (दूर संवेदी) उपकरणों के जरिये चंद्रमा की ऊपरी सतह के चित्र भेजे.
इसे दो साल तक काम करना था लेकिन कंट्रोल रूम से संपर्क टूटने के कारण इसे उससे पहले बंद कर दिया गया.
चंद्रयान-1 के प्रोब ने चांद की सतह पर उतरकर करीब 10 महीने तक काम किया. उसी ने पूरी दुनिया को पहली बार बताया कि चांद पर पानी है. पहले तो लोगों को विश्वास नहीं हुआ लेकिन फिर सभी ने इस खोज का लोहा माना.
चंद्रयान के साथ रॉकेट लेकर गया था 10 सेटलाइट भी
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र ‘इसरो’ के चार चरणों वाले इस मिशन में 316 टन वजनी और 44.4 मीटर लंबा अंतरिक्ष यान इस यात्रा का वाहक बना था. वो चंद्रयान -1 के साथ 11 और उपकरण लेकर आसमान में उड़ा. इसमें 05 सेटेलाइट भारत और 06 अमेरिका की थीं.
इस अभियान में रॉकेट पर पृथ्वी के बाहरी आरबिट में अलग हुआ तो उसने वहां सभी 11 सेटेलाइट्स भी कक्षा में छोड़ीं. फिर चंद्रयान आर्बिटर के साथ आगे बढ़ गया. फिर इसरो कंट्रोल रूम से इसे ऊपर उठाया जाता रहा. इसे अलग अलग चरणों में अलग बूस्टर और रॉकेट की मदद मिली
कब चांद की कक्षा में स्थापित हुआ
08 नवंबर 2008 को चन्द्रयान भारतीय समय अनुसार करीब 5 बजे सबसे मुश्किल दौर से गुजरते हुए चांद की कक्षा में स्थापित हो गया. फिर जब ये चंद्रमा के करीब 15 नवंबर को पहुंचा, तभी इसने अपना प्रोब को चांद की सतह पर छोड़ा. चंद्रयान-1 10 महीने तक काम करता रहा. फिर 29 अगस्त 2009 को इसका संपर्क टूट गया. ये मिशन खत्म हो गया.
इसी ने दुनिया को बताया कि चांद पर पानी है
चंद्रयान के मैपर ने ही चंद्रयान पर पानी की बर्फ होने की पुष्टि की. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने दावा किया कि चांद पर पानी भारत की खोज है. चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता चंद्रयान-1 के मून इंपैक्ट प्रोब [एमआईपी] ने लगाया था, जिसे उसने चांद पर उतार दिया था. बाद में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के उपकरण ने भी चांद पर पानी होने की पुष्टि की.
इस तरह चंद्रयान-1 के प्रोब की ये ऐसी खोज थी, जिसने दुनिया में इसरो का लोहा मनवा दिया. प्रोब ने चंद्रमा की सतह पर पानी के कणों की मौजूदगी के पुख्ता संकेत दिए थे, जिसे इस सदी की सबसे खोज माना गया. इसरो के अनुसार चांद पर पानी समुद्र, झरने, तालाब या बूंदों के रूप में नहीं बल्कि खनिज और चंट्टानों की सतह पर मौजूद है. चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी पूर्व में लगाए गए अनुमानों से कहीं ज्यादा है.
चंद्रयान-1 की खास बातें
- चंद्रयान -1 चांद पर भेजा गया भारत का पहला मिशन था.
- चंद्रयान -1 भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन PSLV-C II से 22 अक्टूंबर 2008 को श्री हरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से छोड़ा गया था.
- इस अंतरिक्ष यान ने चांद की 3400 से ज्याादा परिक्रमाएं कीं और यह 312 दिन अर्थात 29 अगस्त् तक काम करता रहा.
- चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी होने की पक्की पुष्टि की, यह खोज सबसे अलग थी. चंद्रयान-1 ने चांद के उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में बर्फ के रूप में पानी जमा होने के बारे में पहली बार बताया.
- इसने चांद की सतह पर मैग्निशियम, एल्युमिनियम और सिलिकॉन होने का भी पता लगाया.
- चंद्रमा का वैश्विक मानचित्र तैयार करना इस मिशन की एक और बड़ी उपलब्धि थी.
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Tags: Chandrayaan 2, Chandrayaan-3, ISRO, Mission Moon, Moon
FIRST PUBLISHED : August 09, 2023, 17:24 IST